-स्वाइन फ्लू का इलाज करने वाले डॉक्टर्स को अभी तक नहीं दी गई वैक्सीन

- डॉक्टरों को दी जाने वाली एच1एन1 वैक्सीन के असर को लेकर भी असमंजस

- वायरस के म्यूटेशन की जांच व स्टेन की पहचान को लेकर भेजे जाएंगे कई सैंपल

KANPUR: स्वाइन फ्लू तय सीजन से दो महीने पहले दस्तक देकर ब् जानें ले चुका है, लेकिन इस गंभीर स्थिति में भी स्वास्थ्य विभाग चैन की नींद सो रहा है। लापरवाही का आलम ये है कि इसका इलाज करने वाले डॉक्टर्स को इससे बचाव के लिए जो वैक्सीन लगाई जानी चाहिए थी वह भी अभी तक नहीं लगी है। ऐसे में बिना 'सुरक्षा कवच' के डॉक्टर्स इस खतरनाक वायरस से मरीज को कैसे बचा पाएंगे।

स्टेन की पहचान बनी पहेली

एक मुश्किल यह भी आ रही है कि स्वाइन फ्लू के जल्दी आने की वजह से डॉक्टर्स को इसके असर और इसके स्टेन की भी पहचान नहीं हो पा रही है। ऐसे में कौन सी दवा मरीज पर असर करेगी यह भी साफ नहीं है। क्योंकि एक वैक्सीन एक बार में दो से तीन स्टेन से ही लड़ पाती है ऐसे में वैक्सीन की पहचान के लिए मरीजों के सैंपल पुणे स्थित नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे भेजे जाएंगे। मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग और मेडिसिन विभाग इसके लिए स्वाइन फ्लू के मरीजों के सैंपल लेंगे।

स्टेन की पहचान से सही इलाज

दरअसल स्वाइन फ्लू के मामले बढ़ने पर जो डॉक्टर्स उन पेशेंट्स का इलाज करते हैं उन्हें एचक्एनक् वैक्सीन लगाई जाती है। चूंकि स्वाइन फ्लू का वायरस हर दो से तीन साल में म्यूटेट होता है, ऐसे में वैक्सीन को भी अपडेट करना होता है और वही प्रोटेक्टिव वैक्सीन डॉक्टर्स को भी लगाई जाती है।

'स्टेन की पहचान को लेकर माइक्रोबॉयोलॉजी विभाग के सहयोग से कुछ सैंपल पुणे वायरोलॉजी लैब में भिजवाएं जाएंगे। इसका पता चलने पर मरीज का इलाज करना ज्यादा आसान होगा। साथ ही वैक्सीन को लेकर भी स्थिति साफ होगी.'

- डॉ। प्रेम सिंह, हेड मेडिकल विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive