दिल्ली में सोमवार को इसराइली दूतावास की गाड़ी पर हुए हमले के बाद इसराइल और ईरान के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. लेकिन क्या ये घटना इन दोनों देशों के 'शीत युद्ध' के भारत पहुँचने का संकेत है?

मध्य पूर्व मामलों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर कमाल पाशा ज़ोर देकर इस हमले को मध्य पूर्व के 'शीत युद्ध' के भारत पहुंचने का संकेत मानते हैं।

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “चाहे इस हमले के पीछे इसराइल का हाथ हो, या फिर ईरान का, एक बात तो तय है कि मध्य पूर्व का युद्ध अब भारत का रुख़ करने लगा है। ऐसे में भारत को दोनों देशों के साथ अपने कूटनयिक संबंधों की समीक्षा करनी होगी क्योंकि अगर ऐसे हमले बार-बार होने लगे तो दूसरे देशों का युद्ध भी भारत पहुंचने में समय नहीं लगेगा.”

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अब भारत के लिए इसराइल और ईरान से संबंधों में संतुलन बनाना कितना कठिन होगा?भारत के ईरान और इसराइल दोनों के साथ करीबी संबंध हैं। जहाँ भारत इसराइल से अन्य चीज़ों के अलावा ख़ासा सैन्य साज़ो-सामान ख़रीदता है वहीं ईरान से भारत लगभग 12 प्रतिशत तेल आयात करता है। ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या भारत का ईरान के प्रति रुख़ कड़ा करने के मकसद से इसराइल बार-बार ईरान पर आरोप लगा रहा है?

दोनों देशों से रिश्तों और इस पूरे मामले पर मध्य पूर्व में भारत के राजदूत रह चुके चिन्मय गरे खान ने कहा, “अगर इसराइल का ऐसा मकसद है तो वो उसमें कामयाब नहीं रहेंगे क्योंकि ईरान के साथ भारत के रिश्तों को पारिभाषित करने में इसराइल का कोई हाथ नहीं है। अगर इसराइल भारत पर ज़्यादा ज़ोर डालता भी है, तो वो इसराइल के खिलाफ़ ही जाएगा.”

रिश्तों पर असरवैसे मध्य पूर्व मामलों के जानकार और जेएनयू के प्रोफ़ेसर कमाल पाशा का कहना है कि सोमवार को हुए हमले का प्रतिकूल असर भारत और ईरान के रिश्तों पर पड़ेगा। लेकिन चिन्मय गरे खान का कहना है कि इस घटना का असर न तो भारत-इसराइल के रिश्तों पर पड़ेगा और न ही भारत-ईरान के रिश्तों पर।

बीबीसी से बातचीत में चिन्मय गरे खान ने कहा, “जहां तक भारत और इसराइल के आपसी रिश्तों की बात है, तो वो सकारात्मक ही है। अब तक इसराइल ने इस बात का भी कोई इशारा नहीं दिया है कि भारत की इस हमले के पीछे कोई भूमिका हो सकती है। इसराइल ने अभी तक भारत की गुप्तचर एजेंसी पर भी सवाल नहीं उठाए हैं। तो संकेत सकारात्मक ही हैं। जहां तक भारत-ईरान के आपसी रिश्तों की बात है, तो मेरा मानना है कि उस पर भी किसी तरह का प्रतिकूल असर नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन अगर ये साबित हो जाता है कि इस हमले के पीछे ईरान का हाथ था, तब पासा ज़रूर पलट सकता है.”

जब उनसे पूछा गया कि ऐसी स्थिति में भारत अपने दो मित्र देशों के बीच संतुलन कैसे बनाएगा, तो उन्होंने कहा कि भारत को न तो इसराइल के दबाव में आना चाहिए और न ही ईरान के।

प्रतिबंध से संबंध?ग़ौरतलब है कि यूरोपीय संघ और अमरीका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का भारत ने समर्थन नहीं किया है। जब चिन्मय गरे खान से पूछा गया कि क्या इस वैश्विक समीकरण का हमले से कोई लेना-देना है या नहीं, तो उन्होंने कहा कि ये मानना मुश्किल है कि भारत में एक वैश्विक युद्ध चल रहा है।

हालांकि कमाल पाशा ने कहा, “मेरा मानना है कि जिस समय ये हमला हुआ है, उसे ईरान पर लगे प्रतिबंधों से जोड़ कर देखा जा सकता है क्योंकि इसराइल का ये मानना है कि अगर भारत-अमरीका के साथ अच्छे संबंध चाहता है, तो उसे अमरीका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन करना चाहिए। लेकिन भारत ने इस बाबत अपनी पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किया है। इसराइल भारत और ईरान के बीच बची-खुची दोस्ती को भी ख़त्म करवाना चाहता है और हो सकता है कि ईरान भारत को इस बाबत एक चेतावनी देना चाहता हो.”

कमाल पाशा ने दोहराया कि अगर इसराइल-भारत-ईरान के रिश्तों के बीच त्रिकोणीय रिश्ते और ज़्यादा बिगड़ते हैं, तो भारत को दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों की समीक्षा करनी होगी।

Posted By: Inextlive