सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि घूस चाहे 50 रुपए की ही क्यों ना ली गई हो भ्रष्ट अधिकारी नरमी बरते जाने के हकदार नहीं हैं.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए अधिकारियों को कम से कम छह माह की सज़ा होनी चाहिए और इस सज़ा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी कम किया जाना ठीक नहीं होगा। अदालत ने ये टिप्पणियां गुजरात के दो अधिकारियों के मामले में की मंगलवार को की हैं।

नरेंद्र चंपकलाल त्रिवेदी और हरजीभाई देवजीभाई चौहान को गजेंद्र जगतसिंह जाडेजा से 50 रुपए की रिश्वत मांगने का दोषी पाया गया था।

'नरमी के हकदार नहीं'इन दो अधिकारियों ने ये रिश्वत 15 मार्च 1994 प्रॉपर्टी के कुछ रिकॉर्ड मुहैया करवाने के एवज में मांगी गई थी। निचली अदालत ने इन अधिकारियों को दोषी पाकर छह माह जेल की सज़ा सुनाई थी। इस सज़ा पर गुजरात हाई कोर्ट ने भी मुहर लगाई थी।

बचाव पक्ष ने ये कहते हुए नरमी बरते जाने की गुहार लगाई थी कि घटना 18 साल पहले घटी थी और इसबीच उनके मुव्वकिलों को कई दिक्कतों से गुजरना पड़ा क्योंकि उनकी नौकरी जाती रही थी।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस गुहार को खारिज करते हुए कहा, “ये बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार किसी प्रकार के सहानुभूति या नरमी बरते जाने का हकदार नहीं है। भ्रष्टाचार देश की रीढ़ पर आघात है और ये अर्थव्यवस्था को निर्जीव बनाता है। ”

दोषी पाए गए अधिकारियों ने मांग की थी कि धारा 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करके सज़ा को कम करे।

Posted By: Inextlive