बात ज़्यादा पुरानी नहीं हैं कुछ नौ महीने पहले भारतीय क्रिकेट टीम ने एकदिवसीय क्रिकेट में अपनी विजयी पताका लहराई और विश्व कप पर कब्ज़ा किया.

इस जीत पर क्रिकेट प्रेमी भारतीय जनता की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। लेकिन 2012 के आते-आते भारतीय टीम की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल चुकी हैं। भारतीय क्रिकेट टीम विदेशी ज़मीन पर सात टेस्ट मैच हार चुकी है जिनमें से चार टेस्ट में भारतीय टीम को पारी की हार झेलनी पड़ी है।

इस हार से भारतीय दर्शकों का मनोबल तो गिरा ही है लेकिन सवाल ये है कि क्या क्रिकेट की लोकप्रियता पर इस हार का कोई असर होगा।

इस सवाल के जवाब में हिन्दुस्तान अख़बार के खेल सलाहकार प्रदीप मैगज़ीन कहते हैं, “इंगलैंड दौरे पर हार के बाद इंगलैंड के खिलाफ़ वन डे सीरीज़ में भी स्टेडियम खाली रहे थे। इस दौरे के तुरंत बाद आईपीएल है, हालांकि आईपीएल एक सफल फ़ार्मेट है लेकिन उसकी भी कुछ सालों से रेटिंग गिर रही हैं। इस हार का असर अबकी बार आईपीएल पर भी पड़ सकता है। ”

इस हार का असर दिखने भी लगा है। टीवी के दर्शक नापने वाली संस्था टैम के अनुसार जहां पहले टेस्ट मैच को 0.89 की रेटिंग मिली वहीं दूसरे टेस्ट में रेटिंग गिरकर सिर्फ 0.70 रह गई।

'गिरेंगे क्रिकेटरों के दाम'

ये सिर्फ़ खेल प्रेमियों की दिलचस्पी का सवाल नहीं हैं। ये बाज़ार है और यहां क्रिकेटर दंत-मंजन से लेकर कार तक हर चीज़ बेचते हैं और बदले में लेते हैं करोड़ों रूपए। 'परसेप्ट एडवर्टाइंज़िंग' के दिलीप चेरियन कहते हैं कि इस हार से क्रिकेटरों के दाम गिरेंगे।

दीलीप चेरियन कहते हैं, “भारत में क्रिकेट की ब्रांड वैल्यू हमेशा से ही उंची रही है और ये वैल्यूएशन मार्केट में कॉरपोरेट जगत के लिए भी यथार्थ से दूर हो रहा है। मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलिया में जो हार हुई है उसकी वजह ये थोड़ा रिएलिज़म आएगा। क्रिकेट की ब्रांड वैल्यू कम होगी.” दिलीप कहते हैं कि क्रिकेटरों की कीमतों में गिरवट क्रिकेट के लिए भी अहम होगी और कॉरपोरेट्स के लिए भी।

टीम के अलावा अगर खिलाड़ियों की बात की जाए तो ब्रांड के तौर पर सबसे ज़्यादा नुकसान किस खिलाड़ी का हुआ। प्रदीप मैगजीन कहते हैं, “इस हार का धोनी पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। धोनी का जो ऑरा था कि वो भारत के सबसे बेहतरीन कप्तान, उन्होंने भारत को विश्व कप जितवाया… वो सब गायब हो गया है। अब हम ये बात नहीं कर रहे हैं कि धोनी कमाल के नायक है कप्तान हैं.”

इस तरह की लगातार हार की वजह से क्या असल में विज्ञापनों पर नकारात्मक असर पड़ता है। दिलीप चेरियन कहते हैं। “अगर उपभोक्ता के नज़रिए से देखें तो प्रदर्शन का असर बहुत पड़ता है। उपभोक्ता सोचता है कि हम ये ब्रांड क्यों खरीदें या इस ब्रांड से आशा क्यों रखें। ये आशा शब्द ब्रांड के लिए बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है और इस वक्त भारतीय टीम की आशा कमज़ोर है.”

भारतीय टीम से आशा कम है तो क्या इस बदलती तस्वीर से ये समझा जाए कि क्रिकेटरों के बजाय विज्ञापन जगत में फिर से बॉलीवुड सितारों का बहुमत होगा। दिलीप चेरियन इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते, “क्रिकेट खिलाड़ियों की कीमतें कम होने का असर ये होगा कि कई नए ब्रांड ये सोच सकते हैं कि अब हम क्रिकेटर को इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही भारतीय क्रिकेट टीम का जो प्रदर्शन रहा है ये भी हो सकता है कि कम दाम में अब क्रिकेटर को साइन किया जाए, दो साल के लंबे कॉन्ट्रेक्ट पर और बाद में टीम का प्रदर्शन सुधरने के बाद उनका इस्तेमाल किया जाए.”

वैसे आस्ट्रेलिया में राहुल द्रविड़ ने अपने भाषण में कहा था कि टेस्ट के दौरान खाली दर्शक दीर्घा अच्छा टेलीविज़न नहीं बनाती। बुरे टेलीविज़न से टीवी रेटिंग बुरी होगी और बुरी रेटिंग यानी बाज़ार अपने लिए और अवसर तलाशने पर मजबूर होगा।

राहुल द्रविड़ के इस भाषण में क्रिकेट के लिए चेतावनी थी और ये चेतावनी इसलिए भी मायने रखती है कि क्रिकेट बहुतायत में हो रहा है और इतने क्रिकेट के बीच इन मुक़ाबलों को ताकने वाली आंखे भी कम होती जा रही है और ये उदासीनता क्रिकेट के बाज़ार को सीमित कर सकती है।

Posted By: Inextlive