अमरीका की क्रेडिट रेटिंग में कटौती
स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने अमरीका के बढ़ते बजट घाटे की चिंताओं के बीच उसकी लंबी अवधि की क्रेडिट रेटिंग एएए+ से घटाकर एए+ कर दी है। क्रेडिट रेटिंग में इस कटौती की वजह बढ़ती अफ़वाहों के बीच अमरीका के एक अधिकारी ने अमरीकी मीडिया से कहा है एसएंडपी ने जो आर्थिक स्थिति का जो विश्लेषण किया है वह ग़लत है।इस बीच अमरीका और यूरोप के शेयर बाज़ारों में गिरावट का दौर जारी है और सरकारें अपने अपने स्तर पर इस गिरावट को थामने के प्रयासों में लगी हुई हैं। भारत में भी शेयर बाज़ार ने कल लंबा गोता लगाया और एक बार तो सूचकांक का आंकड़ा 17 हज़ार से भी नीचे चला गया था। आख़िर वह 387.31 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ।'पर्याप्त क़दम नहीं'
एसएंडपी ने अमरीका की कर्ज़ की स्थिति पर चिंता ज़ाहिर करते हुए उसकी क्रडिट रेटिंग एक स्तर नीचे गिरा दी है। एजेंसी ने कहा है कि मंगलवार को कर्ज़ की सीमा बढ़ाने का विधेयक पारित हो जाना पर्याप्त नहीं था। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अमरीका के वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है, "इस आकलन में दो करोड़ ख़रब डॉलर की ग़लती है और वही अपने आपमें बहुत कुछ कहता है।"प्रवक्ता ने इसके बारे में और कुछ नहीं कहा है। लेकिन जब क्रेडिट रेटिंग कम करने की अफ़वाहें चल रहीं थी तो एक अधिकारी ने कहा था कि एसएंडपी का आकलन ग़लत है। लेकिन एसएंडपी ने शुक्रवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है, "क्रेडिट रेटिंग घटाने के हमारे फ़ैसले से हमारी ये राय ज़ाहिर होती है कि हाल ही में संसद ने कर्ज़ सीमा बढ़ाने वाला जो विधेयक पारित किया वो हमारी दृष्टि में सरकार के मध्यम अवधि के कर्ज़ प्रबंधन को स्थिर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"एजेंसी ने कहा है कि उसकी राय में वित्तीय और आर्थिक संकट के समय में अमरीकी नीति निर्धारक और राजनीतिक संस्थाओं का प्रभाव और स्थिरता कमज़ोर हुई है। एसएंडपी ने चेतावनी दी है कि अगर अगले दो साल में बजट घाटा कम करने की दिशा में उठाए गए काम पर्याप्त नहीं दिखाई दिए तो वह अमरीका की क्रेडिट रेटिंग एए से एक स्तर और घटा सकती है।
एजेंसी मानती है कि कर्ज़ की सीमा बढ़ाने के लिए जो विधेयक पारित किया गया उसमें राजस्व जुटाने के पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए। उल्लेखनीय है कि बराक ओबामा कुछ टैक्स बढ़ाना चाहते थे लेकिन रिपब्लिकन ने ऐसा करने का विरोध किया था।संवाददाताओं का कहना है कि अमरीका की क्रेडिट रेटिंग घटाने से दुनिया भर के निवेशकों का भरोसा दुनिया की सबसे ऐसी बड़ी अर्थव्यवस्था पर और घटा सकता है, जो पहले से ही भारी भरकम कर्ज़ के तले दबी हुई है और जहाँ बेरोज़गारी की दर 9.1 प्रतिशत है। उनका कहना है कि इससे दोहरी मंदी का भय भी पैदा हो रहा है।ओबामा को उम्मीदहालांकि क्रेडिट रेटिंग में कटौती की घोषणा से पहले अमरीका में जारी हुए रोज़गार और नौकरियों के अवसर संबंधी आंकड़ों ने एक बेहतर तस्वीर दिखाने की कोशिश की है। और इन आंकड़ों को सकारात्मक मानते हुए राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बाज़ारों के हालात सुधरने की उम्मीद जताई थी और कहा था कि अमरीका इस स्थिति से बाहर ज़रुर निकलेगा.ओबामा ने कहा, ''मैं चाहता हूं कि अमरीकी नागरिक और दुनियाभर में हमारे सहयोगी देश इस बात को समझें कि अमरीका इस मुश्किल दौर से बाहर आएगा। चीज़ें बेहतर होंगी और हम मिलकर इसके सामना कर पाएंगे।
''हालांकि जानकारों का मानना है कि कर्ज़ संकट से जुड़े समझौते पर विपक्षी दल के साथ हुई खींचतान के बाद राष्ट्रपति ओबामा के पास अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुत अधिक राजनीतिक विकल्प नहीं हैं। आर्थिक अस्थिरता का संकटइस बीच यूरोज़ोन में आर्थिक अस्थिरता के संकट का केंद्र बन चुके इटली, के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने कहा है कि वो जल्द से जल्द खर्च में कटौती संबंधी घोषणाएं करने की कोशिश में जुटे हैं। इस मसले पर विचार के लिए अगले कुछ दिनों में जी-7 देशों की एक बैठक बुलाए जाने की बात भी कही गई है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में अस्थिरता के चलते शुक्रवार को यूरोप में अधिकतर बाज़ार शुरुआती कुछ घंटों में दो से तीन प्रतिशत तक गिर गए.ब्रिटेन में भी बैंकों के शेयरों में काफ़ी बड़ी गिरावट दर्ज हुई जहाँ रॉयल बैंक ऑफ़ स्कॉटलैंड के शेयर आठ प्रतिशत और लॉयड्स बैंकिग समूह के शेयर तीन प्रतिशत तक गिर गए। इससे पहले जापान का शेयर बाज़ार 3.7 प्रतिशत और हॉन्गकॉन्ग 4.6 प्रतिशत गिरा।
दरअसल अधिकतर निवेशकों को डर है कि दुनिया में अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिशों का दम निकल रहा है। यूरोप में ऋण संकट गहराता जा रहा है जहाँ स्पेन या इटली के ऋण से निबट नहीं पाने का डर और ज़्यादा हो गया है। इन दोनों ही देशों में बैंक पैसा जुटाने में विफल हो रहे हैं और अब ये चिंता हो गई है कि इससे पूरे यूरोप में ऋण के लिए धन मिलना मुश्किल हो जाएगा और इसका असर देशों के विकास पर पड़ सकता है।निवेशकों का डरअब सबसे बड़ी चिंता अमरीकी अर्थव्यवस्था की सेहत की है। पिछले कुछ महीनों में इस अर्थव्यवस्था में एक ठहराव सा आ गया है जबकि आर्थिक प्रगति रुक गई है और बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। यूरोप को लेकर एक ये छवि बन रही है कि यूरोपीय नेता एकजुट होकर इस क्षेत्र के संकट से निबटने में विफल हो रहे हैं और इस क्षेत्र में एक स्पष्ट नेतृत्त्व नहीं है। अमरीका में भी ऋण की सीमा बढ़ाने को लेकर जितनी खींचतान हुई उसके बाद अमरीकी नेताओं की कड़ी आलोचना हुई है। इन सबका नतीजा ये हो रहा है कि अनिश्चितता की स्थिति बढ़ती जा रही है जहाँ अब तक सुरक्षित लगने वाले निवेश भी ख़तरे से भरे दिख रहे हैं और निवेशक इससे बचने की राह तलाशने में लग गए हैं।