कटती रहेगी ‘चांदी’
क्यों महंगी हो रही है चांदी?
चांदी का इस्तेमाल ज्वैलरी के अलावा दूसरे काम में भी काफी होता है। यह मेटल मजबूत होने के साथ ही किसी भी टेंपरेचर को झेल सकता है। इस वजह से इसे इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर फार्मा इंडस्ट्री तक में इस्तेमाल किया जाता है। पिछली एक सेंचुरी में इसकी सप्लाई के मुकाबले डिमांड काफी बढ़ी है। चांदी की कीमत बढऩे की यह बड़ी वजह है। 2008 के बाद से कीमतों में तेजी के पीछे ग्लोबल इकॉनमिक कंडीशन का स्टेबल न होना और रुपए में गिरावट जैसी भी वजहें अहम रही हैं। दुनिया भर में सेंट्रल बैंक और सरकारों ने अपना सिल्वर रिजर्व बेचना बंद कर दिया है। इस वजह से इसकी सप्लाई कम हुई है। मनी और फाइनेंशियल सिस्टम पर भरोसा कम होने से समय-समय पर चांदी इनफ्लेशन के खिलाफ ढाल का काम करती है।
ऐसे कर सकते हैं इनवेस्ट
क्वॉइन एंड बार: इन्हें मौजूदा कीमत पर ज्वैलर्स से खरीदा जा सकता है। डेकोरेटिव क्वॉइंस के साथ मेकिंग चार्ज भी देना पड़ता है। वैसे यह सोने की ज्वैलरी के मेकिंग चार्ज के मुकाबले काफी कम होता है। हालांकि, अगर आप क्वॉइन बेचने जाएंगे, तो आपको मेकिंग चार्ज का नुकसान उठाना होगा।
ई-सिल्वर: नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) ने अप्रैल 2010 में ई-सिल्वर लांच किया था। यह 99.9 परसेंट प्योर होता है और इसे 100 ग्राम या इसके मल्टीपल में खरीदा जा सकता है। ई-सिल्वर को डीमैट अकाउंट में रखा जाता है। इस वजह से आपको इसकी सिक्योरिटी को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं होती। आप सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए भी ई-सिल्वर में इनवेस्टमेंट कर सकते हैं.
सिल्वर फ्यूचर्स: सिल्वर के कमोडिटी बिजनेस में ट्रेडिंग सोने के जैसी ही होती है। सिल्वर फ्यूचर्स में लेवरेज पोजीशन का फायदा मिलता है।
यूएस सिल्वर ईटीएफ और माइनिंग कंपनियां: इस समय इंडिया में सिल्वर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) अवेलबल नहीं हैं। हालांकि, अगर आप चाहें तो अमेरिकन सिल्वर ईटीएफ में इनवेस्टमेंट कर सकते हैं। इनवेस्टर्स फंड डाओ या नैस्डेक पर लिस्टेड सिल्वर माइनिंग कंपनियों के शेयर भी खरीद सकते हैं।