- उन्नाव कांड में माखी थाने के पुलिसकर्मियों ने फिर खाकी को किया शर्मसार

- पहले भी कई मामलों में पुलिसकर्मियों की आपराधिक भूमिका आ चुकी है सामने

- सीबीआई ने कई पुलिसकर्मियों को सजा दिलाने में पाई है सफलता, कई राडार पर

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW :

उन्नाव कांड में माखी थाने पर तैनात पुलिसकर्मियों ने खाकी को शर्मसार कर दिया। सीबीआई के अफसरों की मानें तो पुलिसकर्मियों का गुनाह आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उनके भाई अतुल सिंह से ज्यादा संगीन है क्योंकि उन्होंने बुरी तरह पिटाई से घायल पीडि़ता के पिता को बिना इलाज झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भेज दिया। ऐसा नहीं है कि सूबे में पुलिसकर्मियों की अपराधियों के साथ संलिप्तता होने अथवा आपराधिक साजिश रचकर बेगुनाहों को ठिकाने लगाने का यह पहला मामला है। इससे पहले भी सीबीआई खाकी की करतूतों को बेनकाब कर दोषियों को सजा दिलाती रही है। वर्तमान में भी सीबीआई के राडार पर सूबे के तमाम ऐसे पुलिसकर्मी है जिनमें एक आईपीएस भी शामिल है।

पीलीभीत कांड में 47 को हुई सजा

सूबे में करीब तीन दशक पहले तराई इलाके में आतंकवाद के बीज पनपे तो पुलिस ने उन्हें तलाश कर एनकाउंटर करना शुरू कर दिया। पीलीभीत में 12 जुलाई 1991 को पुलिसकर्मियों ने तीर्थ यात्रियों से भरी बस से दस सिख युवकों को उतारकर उन्हें गोलियों से भून दिया। इस मामले की जांच बाद में सीबीआई के सुपुर्द कर दी गयी। करीब दो साल पहले राजधानी स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने 47 पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए सजा सुना दी। सात साल पहले लखीमपुर खीरी के निघासन थाने में नाबालिक लड़की से बलात्कार और हत्या के मामले में दो आरोपी पुलिसकर्मियों को सीबीआई ने सलाखों के पीछे भेजा था। इसी तरह 38 साल पहले गोण्डा में फर्जी एनकाउंटर के मामले में पांच साल पहले सीबीआई कोर्ट ने तीन पुलिसकर्मियों को फांसी और पांच को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। ध्यान रहे कि 1982 में हुई इस घटना में डिप्टी एसपी केपी सिंह समेत 13 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी थी। बाद में केपी सिंह की आईएएस पुत्री किंजल सिंह ने इस मामले की जोरदार पैरवी की जिसके बाद पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई जा सकी।

कई मामले अब भी जारी

उन्नाव कांड ही नहीं, कई अन्य मामलों में भी सूबे के तमाम पुलिसकर्मी सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं। बदायूं में कंप्यूटर ऑपरेटर मुकुल गुप्ता का फर्जी एनकाउंटर करने वाले आईपीएस जे। रवींद्र गौड़ समेत तमाम पुलिसकर्मी सीबीआई जांच के घेरे में हैं। इतना ही नहीं, मुकुल गुप्ता के मां-बाप की हत्या में भी सीबीआई आरोपी पुलिसकर्मियों की भूमिका की पड़ताल कर रही है। इसी तरह राजधानी में हुए श्रवण साहू हत्याकांड में भी तमाम पुलिसकर्मियों पर जांच की तलवार लटक रही है जिनमें राजधानी की पूर्व एसएसपी मंजिल सैनी, सीओ एलआईयू, आरआई पुलिस लाइंस के अलावा श्रवण साहू के खिलाफ झूठा मुकदमा लिखने वाले पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।

माज हत्याकांड का आरोपी था इंस्पेक्टर

करीब पांच साल पहले राजधानी के इंदिरानगर में 13 साल के किशोर माज की हत्या में इंस्पेक्टर संजय राय को आरोपी बनाया गया था। बाद में उसने सरेंडर कर दिया था जिसके बाद उसे जेल भेज दिया गया था और पुलिस महकमे से बर्खास्त कर दिया गया था। इस मामले ने भी खाकी की साख को गहरा झटका दिया था। वहीं लखनऊ में तीन वर्ष पूर्व हुए मोहनलालगंज कांड की जांच भी सीबीआई को सौंपी गयी थी लेकिन बाद में सीबीआई ने इसे टेकओवर करने से इंकार कर दिया था।

महिलाओं के साथ हुए बड़े मामले

- फैजाबाद का शशि कांड

- बांदा का शीलू कांड

- कानपुर का दिव्या कांड

- बदायूं का ज्योति शर्मा कांड

- बुलंदशहर का शीतल बिड़ला कांड

- उन्नाव का कविता कांड

- लखनऊ का मोहनलालगंज कांड

- लखीमपुर खीरी का सोनम कांड

Posted By: Inextlive