कोरोना के बाद लोगों में डायबिटीज के मामले बढ़े हैं। इसको लेकर डॉ. भाटिया कहती हैं कि मामले बढ़े जरूर हैं पर सही तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह कोरोना है। हालांकि इसको लेकर स्टडी की जा रही है। क्योंकि कोरोना के चलते लोग समय पर जांच कराने नहीं आ सके।


लखनऊ (ब्यूरो)। डायबिटीज अगर कंट्रोल से बाहर हो जाये तो बेहद खतरनाक हो सकता है। क्योंकि डायबिटीज पेशेंट में फंगल इंफेक्शन होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके अलावा न्यूरोपैथी समस्या के चलते अल्सर और झनझनाहट होनी लगती है। इसका पता न चलने पर इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में जिनको डायबिटीज है, उन्हें एहतियात बरतने की जरूरत है। साथ ही, स्कूलों में अवेयरनेस और सपोर्ट सिस्टम खड़ा करने की भी जरूरत है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को जागरूक किया जा सके। पेश है वल्र्ड डायबिटीज डे पर स्पेशल रिपोर्टफंगल इंफेक्शन का खतरा ज्यादा


केजीएमयू में माइक्रोबायलॉजिस्ट प्रो। शीतल वर्मा के मुताबिक, जिनको डायबिटीज की समस्या है उनमें फंगल इंफेक्शन होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। जिसमें कान, नाक और गले में इंफेक्शन सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में, अगर किसी को डायबिटीज है और उसके कान में दर्द हो या डिस्चार्ज हो रहा है, तो बहुत सर्तक रहने की जरूरत है। यह फंगल इंफेक्शन का लक्षण हो सकता है। ऐसे में तुरंत अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसके अलावा कई बार न्यूरोपैथी की समस्या हो जाती है, जिससे उस जगह की नर्व शून्य हो जाती है, जिससे कई बाद पैर में अल्सर होने या घाव के बारे में पता नहीं चलता है। जो आगे चलकर इंफेक्शन में बदल जाता है। ऐसे में अपना ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल रखना बेहद जरूरी होता है।जागरूकता से समय पर मिल रहा इलाजपीजीआई के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग की डॉ। विजय लक्ष्मी भाटिया के मुताबिक, डायबिटीज को लेकर लोगों में पहले के मुकाबले जागरूकता ज्यादा बढ़ी है। जिसकी वजह से फैमिली वाले बच्चों में प्यास ज्यादा लगना, पेशाब ज्यादा जाना या थकावट जैसे लक्षण दिखते ही वे तुरंत डॉक्टर को दिखाते हैं और जांच कराते हैं। इससे यह बीमारी समय पर ही पता लग जा रही है, जिसकी वजह से बिगड़े हुए केस के मामलों में काफी कमी आई है। क्योंकि बच्चों में पता लगते ही इंसुलिन शुरू कर दी जा रही है। बच्चे को क्या खाना है, इंसुलिन कब लगाना है, कब खेलना है, शुगर लेवल मॉनिटरिंग करना आदि सब पैरेंट्स को ही देखना होता है।स्टडी की जा रही

कोरोना के बाद लोगों में डायबिटीज के मामले बढ़े हैं। इसको लेकर डॉ। भाटिया कहती हैं कि मामले बढ़े जरूर हैं, पर सही तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसकी वजह कोरोना है। हालांकि, इसको लेकर स्टडी की जा रही है। क्योंकि कोरोना के चलते लोग समय पर जांच कराने नहीं आ सके। वहीं, स्थिति सामान्य होने के बाद जांच के लिए पहुंचे। ऐसे में अचानक से तेजी देखने को मिल रही है।आर्टिफिशियल पेनक्रियाज मददगारडॉ। भाटिया के मुताबिक, डायबिटीज के इलाज के लिए नई तकनीक आई है। जिसे आर्टिफिशियल पेनक्रियाज कहा जाता है। इसमें सेंसर और एक पंप होता है, जो एक साफ्टवेयर बेस्ड होता है। इसे स्किन को पकड़कर तीन-चार मिलीमीटर अंदर करके उसको चिपका देते है। जो तीन दिन वहीं रहता है। शुगर लेवल के कम या अधिक होने को सेंस करके उसी अनुसार इंसुलिन इंजेक्ट करने का काम करता है। यह डिवाइस देश में उपलब्ध है, लेकिन काफी महंगी है। यह करीब 10 लाख रुपये के आसपास आती है।सपोर्ट सिस्टम की जरूरतबच्चों में कोई क्रोनिक बीमारी होने पर उनको सपोर्ट सिस्टम की जरूरत होती है। ऐसे में स्कूलों को चाहिए कि वे खुद इसके प्रति जागरूक हों और दूसरे बच्चों को भी जागरूक करें। क्योंकि कई बार स्कूल में एक्स्ट्रा खाना, शुगर जांचना या इंसुलिन लेना पड़ जाता है। ऐसे में दूसरे बच्चे यह देखकर भेदभाव न करें। ऐसे में साइकोलॉजिकल सपोर्ट सिस्टम बेहद जरूरी है।डायबिटीज के लक्षण- पेशाब ज्यादा आना- थकावट होकर सांस का तेज चलना- वजन कम होना

- कमजोरी महसूस होना
पहले के मुकाबले डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ी है, जिससे समय पर इलाज शुरू हो पा रहा है। साथ ही स्कूलों में अवेयरनेस और सपोर्ट सिस्टम की भी जरूरत है, ताकि कोई भेदभाव न हो।-डॉ। विजय लक्ष्मी भाटिया, पीजीआई

Posted By: Inextlive