डॉक्टर पहले कठोर मोतियाबिंद के मरीजों को फेको तकनीक से ऑपरेशन कराने की अनुमति नहीं देते थे और पारंपरिक विधि से मोतियाबिंद के ऑपरेशन करते थे। पर नई तकनीक से यह संभव हो गया है।


लखनऊ (ब्यूरो)। पुराने, कड़े व भूरे मोतियाबिंद से परेशान मरीजों को केजीएमयू में अब सफल इलाज मिल सकेगा। इसके लिए नेत्र रोग विभाग ने नई तकनीक हॉरिजॉन्टल डायरेक्ट चॉप इजाद की है। नेत्र रोग विभाग के डॉ। संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि बहुत से लोग मोतियाबिंद का समय पर इलाज नहीं कराते हैं, जिसकी वजह से यह न केवल भूरा हो जाता है, बल्कि आगे चलकर कठोर भी हो जाता है। इसके कारण फेको इमल्सीफिकेशन से ऑपरेशन करना डॉक्टर के लिए कठिन हो जाता है। यह सुरक्षित भी कम होता है। इस समस्या को दूर करते हुए विभाग के विशेषज्ञों ने हॉरिजॉन्टल डायरेक्ट चॉप तकनीक विकसित की है।काफी सुरक्षित है यह तकनीक


डॉक्टर पहले कठोर मोतियाबिंद के मरीजों को फेको तकनीक से ऑपरेशन कराने की अनुमति नहीं देते थे और पारंपरिक विधि से मोतियाबिंद के ऑपरेशन करते थे। पर नई तकनीक से यह संभव हो गया है। यह तकनीक ब्लंट टिप्ड नागहारा फाको चॉपर नामक एक नए उपकरण से की जाती है। नेत्र रोग विभाग के डॉक्टर उन रोगियों में भी सफलतापूर्वक फेको सर्जरी कर रहे हैं, जिन्हें पहले इस सर्जरी की सलाह नहीं दी गई थी। डॉ। विशाल कटियार ने बताया कि मोतियाबिंद के ऐसे ही पुराने मरीजों को चिन्हित कर उनके ऑपरेशन किए जा रहे हैं। यह तकनीक काफी सुरक्षित भी है।********************************************सही ब्रश और ब्रशिंग से 80 फीसदी तक बीमारियों से बचावलोग टूथपेस्ट तो सोच समझ कर लेते हैं, पर ब्रश को नजरअंदाज कर देते हैं। डेंटिस्ट के अनुसार, ब्रश दांतों और मसूड़ों की बनावट को देखकर लेना चाहिए। सही ब्रश और सही ब्रशिंग से मुंह से संबंधित करीब 70-80 फीसदी तक बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। केजीएमयू के डेंटल विंग के पीरियडोनटोलॉजी के प्रो। पवित्र कुमार रस्तोगी के मुताबिक, हर 10 में से 6-7 लोगों में दांत के रोगों या मुंह रोगों से जुड़ी परेशानियां जरूर होती हैं। दांतों की अच्छी सेहत के लिए रात को सोने से पहले ब्रश करना और सही टूथब्रश का चुनाव सबसे महत्वूपर्ण है। टूथब्रश दांतों की सफाई के लिए ज्यादा महत्पवूर्ण होता है, क्योंकि वही दांतों की सभी परतों तक पहुंचता है।अपनी दिनचर्या में लाएं बदलाव

डॉ। पवित्र रस्तोगी आगे बताते है कि ब्रश कौन से लेना चाहिए, यह दांतों की कंडीशन के अनुसार लेना चाहिए। इसके लिए साल में एक बार डेंटिस्ट को दिखाना चाहिए। साथ ही, छह माह में दांतों की स्केलिंग प्रोफेशनल से करवानी चाहिए। विभाग में रोजाना 50-60 मरीज पायरिया से संबंधित रोगों के इलाज के लिए ओपीडी में आते हैं। मसूड़ों से खून, मसूड़ों में दर्द रहना, मुंह से बदबू आना, खाने को ठीक से चबा न पाना आदि उनकी आम परेशानियां होती हैं, इसलिए दांतों से जुड़ी किसी भी परेशानी का हल आपकी दिनचर्या में बदलाव से हो सकता है।

Posted By: Inextlive