किसी भी हादसे में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए गोल्डन ऑवर का है खास महत्व शहर के सभी गेट-वे और बीच शहर में जाम से परेशानी रोजाना एक से दो पेशेंट की चली जाती है जान

वाराणसी (ब्यूरो)सोनभद्र के करन की मां गंभीर रूप से बीमार थीं। स्थानीय अस्पताल में इलाज के बनारस के लिए रेफर किया गया। बनारस में प्रवेश करते ही शहर में लगे जाम में एंबुलेंस इस कदर फंस गया कि करन की मां ने दम तोड़ दिया। ये तो महज एक केस है, जबकि शहर के जाम में फंसकर महीने में 20 से अधिक लोगों की जान चली जाती है। स्मार्ट शहर बनारस की बदनसीबी यह है कि आज भी नागरिकों को घंटों भर जाम से जूझना पड़ता है। कभी-कभी इसी जाम में आसपास के इलाकों से गंभीर रूप से घायल या हॉस्पिटल से रेफर मरीजों की एंबुलेंस फंस जाती है। चूंकि, जाम इतना भीषण और बेतरतीब होता है कि यातायात के जवान चाहकर भी उन्हें जल्द से जल्द आगे रवाना नहीं कर पाते हैैं.

लापरवाह लोग

शहर के दर्जनभर चौराहों की भीड़ और जाम में गोल्डेन ऑवर में सीरियस पेशेंट को एंबुलेंस में एक-एक सांस के लिए मौत से जंग लड़ते हुए देखा जा सकता है। लापरवाह पब्लिक में से कुछ लोग रोड पर दुकान लगाकर अतिक्रमण, रोड पर आटो, ई-रिक्शा, बाइक, कार और बस की अवैध पार्किग से समय बेसमय जाम की स्थिति से सभी को परेशानी का सामना करना पड़ता है। अब जाम की मार से स्कूल बस और एंबुलेंस नहीं बच पा रहे हैैं.

पूर्वांचल का हब बनारस

पूर्वांचल के दर्जनभर जिले और बिहार के आधा दर्जन जिलों से रोजाना सौ से अधिक की संख्या में सीरियस पेशेंट बेहतर इलाज के बनारस के बीएचयू, मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा, कैंसर अस्पताल, जिला अस्पताल समेत सैकड़ों प्राइवेट अस्पतालों में आते हैैं। कमोबेश 20 जिलों का सेंटर होने की वजह से दिन-रात गोल्डेन ऑवर से सीरियस पेशेंट को लिए एंबुलेंस शहर में दाखिल होती है।

क्या है गोल्डेन ऑवर

चिकित्सक रवि शंकर मौर्य बताते हैैं कि गोल्डन ऑवर उस समय को कहा जाता है जब मरीज को कोई गंभीर चोट आई हो या फिर कोई अन्य मेडिकल इमरजेंसी हो। दुर्घटना या फिर सड़क हादसों के बाद का पहला एक घंटा बेहद महत्वपूर्ण होता है। सही इलाज और प्रबंधन से न सिर्फ मरीज की जान बचाई जा सकती है, बल्कि उसके शरीर के अंगों को खराब होने से बचाया जा सकता है। इस दौरान इमरजेंसी मेडिसिन का मिलना भी बेहद अहम होता है.

आंकड़ों पर एक नजर

पेशेंट को लेकर आने और जाने वाले पेशेंट की संख्या- 2000 से अधिक

बीएचयू और ट्रामा सेंटर - 700 से 1000

कबीरचौरा मंडलीय अस्पताल- 150 से अधिक

जिला अस्पताल वाराणसी- 50 से अधिक

प्राइवेट अस्पताल- 700 से अधिक

नोट- सुदूर जनपदों से पेशेंट को लेकर आने-जाने वाले एंबुलेंस की संख्या.

शहरवासियों का यह है कहना

शहर और इसके आसपास के इलाकों के लिए जाम की समस्या नई नहीं है। पहले से अवरनेस तो पब्लिक में आई है। फिर भी चाहे जो भी हो किसी की जान बचाने के लिए रोड तो खाली कर ही देनी चाहिए।

भोलानाथ विश्वकर्मा, यूथ

एंबुलेंस के हूटर का आवाज सुनते ही जागरूक और सुलझे हुए लोग वाहन को रास्ता दे देते हैैं। लेकिन, शहर में रहने वाले कुछ लापरवाह लोगों के चलते जाम लगता है और बदनामी सभी को होती है। लोग आगे बढ़कर अपने दायित्व निभाएं।

कमलेश सिंह गहरवार, नागरिक

रोड पर इमरजेंसी हालात यथा एंबुलेंस और स्कूल बस आदि को पब्लिक अपनी जिम्मेदारी मानते हुए इन्हें प्राथमिकता से रास्ता देने का काम करे। स्कूल, एनएसएस और एनसीसी के छात्रों से अभियान भी चलवाएं जाएं।

कन्हैया सिंह कुशवाहा, नागरिक

धरती पर किसी भी इंसान की जान बचाने की कोशिश किसी इबादत कम नहीं है। लोगों को समझना चाहिए और इनको अपने समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्वों को निभाना चाहिए।

नशीम खान, नेता

गोल्डन ऑवर के दौरान गंभीर रूप से घायल पेशेंट को तत्काल नजदीकी हॉस्पिटल में पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए वायरलेस पर सूचना जारी होती है और एंबुलेंस के लिए मानिटरिंग भी की जाती है। रूट बिजी होने पर इमरजेंसी और शार्टकट रूट का सहारा लिया जाता है। हमारी पूरी कोशिश रहती है कि जितना जल्दी हो सके एंबुलेंस को रास्ता दिया जाए ताकि पेशेंट को इलाज मिले और उसकी जान बच जाए.

पंकज कुमार तिवारी, निरीक्षक, ट्रैफिक पुलिस

Posted By: Inextlive