पश्चिमी घाटों से 15 मीटर तक गंगा का पानी पूरी तरह हो गया प्रदूषित इस समय भी अस्सी से सीवेज का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है

वाराणसी (ब्यूरो)गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए सरकार की ओर से एक्शन प्लान में ये स्पष्ट था कि सीवेज को पूरी तरह से रोका जाए। लेकिन ये अब तक संभव नहीं हो पाया है। इसी वजह से गंगा के पश्चिमी तटों पर स्थित घाटों से लगभग 15 मीटर की दूरी तक गंगा पूरी तरह से मैली है। इस समय भी हाफ ट्रीटेड पानी को ही गंगा में छोड़ा जा रहा है। शहर में पर्यावरण व गंगा को लेकर काम करने वाले लोगों का कहना है कि जब शहर में अब तक डायवर्जन हुआ ही नहीं है तो आप ट्रीटमेंट प्लांट में सीवेज कैसे पहुंचा देंगे। वर्तमान में कई ट्रीटमेंट प्लांट ऐसे भी हैं जो क्षमता से कम काम कर रहे हैं और सीवेज के पानी को वरुणा में छोड़ा जा रहा है।

15 मीटर तक पॉल्यूटेड

काशी के पश्चिमी तरफ से गंगा घाटों के किनारे बनारस का पूरा मल-जल जाता है। पश्चिमी साइड से गंगा का लगभग 15 मीटर अंदर तक का जो हिस्सा है, वो हाइली पॉल्यूटेड है। बीच में गंगा के जल की गुणवत्ता अच्छी है, योंकि साइड की गंदगी वहां तक नहीं पहुंच पाती है। गंगा पार भी पानी साफ नजर आ रहा है। हालांकि पिछले दो साल से कुछ हद तक गंदगी उधर भी नजर आने लगी है.

क्षमता से कम ट्रीटमेंट प्लांट

अस्सी से लेकर वरुणा के बीच 350 एमएलडी पानी गंगा में जाता है। 1986 में जब ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का प्लान बना तो 102 एमएलडी का प्लांट वाराणसी में बनाया गया, जबकि 150 एमएलडी के करीब जेनरेट होता था। यही नहीं 102 एमएलडी का प्लांट भी उस समय कारगर साबित नहीं हुआ, क्योंकि उसमें फेकल क्यूलि फार्म बैक्टीरिया मारने की क्षमता थी ही नहीं। तब इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ था।

धंस रहे हैं मकान

वर्तमान में अस्सी पंपिंग स्टेशन से रमना पंप करके सीवेज को ले जाया जाता है। इसके लिए अधिक पावर की आवश्यकता होती है। पंपिंग स्टेशन की पाइलिंग और ज्वांइटस तो मजबूत हैं, इसलिए फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आसपास के मकानों पर इसका प्रभाव नजर आने लगा है। ये मकान धीरे-धीरे नीचे खिसक रहे हैं। कई बार तो अधिक दबाव पर पाइपों में भी दरार आने लगती है.

अंग्रेजों के जमाने का सीवर

जानकारों की मानें तो वाराणसी ब्रिटिश टाइम से ही सीवर सिटी है। लगभग सौ साल पहले ब्रिटिश सरकार ने वाराणसी में ड्रंक सीवर डाला था। ये अस्सी से राज घाट तक जाता था और खिड़किया घाट पर जाकर गंगा के डाउन स्ट्रीम में गिरा दिया जाता था.

पांच किमी गंगा अर्ध चंद्राकार

अस्सी से लेकर वरुणा के पांच किमी तक में बना रीवर स्टे्रच अर्ध चंद्राकार है। ये स्टे्रच धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। यहां सीधे लोगों का गंगा से संपर्क होता है। वेद पुराणों में भी कहा गया है कि गंगा के दर्शन और आचमन से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। लेकिन यहां सोचने वाली बात ये है कि जहां आचमन की बात आती है तो वहां जल की गुणवत्ता पेयजल के बराबर हो जाती है।

गंगा घाट के किनारे लगभग 15 मीटर तक पानी काफी गंदा है। आज भी सीवेज पानी गंगा में डायरेक्ट जा रहा है। इस पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। अगर यूं ही गंगा में सीवेज जाता रहा तो गंगा को पूरी तरह से प्रदूषित होने से कोई नहीं रोक सकता है।

विश्वंभर नाथ मिश्र

वाराणसी में 421 एमएलडी क्षमता के साथ एसटीपी बनाए गए हैं। अभी 350 एमएलडी ट्रीट करके गंगा में पानी गिराया जाता है। यदि इस बीच कोई शिकायत मिलती है तो जांच भी की जाती है.

कालिका सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

Posted By: Inextlive