एसएसपीजी में प्रति माह 10 से 12 किशोर में नशे के सेवन के केस सिगरेट गांजा भांग बियर और शराब के हो रहे आदि काउंसिलिंग से कइयो ने किया नशे से तौबा

वाराणसी (ब्यूरो)बनारस के बिगड़े युवाओं में नशे का सेवन कोई नई बात नहीं है। लेकिन, जब किशोरवय बच्चे यानि टीनएजर्स ही सिगरेट, बियर, शराब गांजा व भांग को आजमाने लगे व फिर आहिस्ता-आहिस्ता लती हो जाए तो बनारस के भविष्य का क्या होगा? यह सवाल सभी के जेहन में बरबस ही बिजली के तरह कौंधना लाजमी है कि जिस उम्र में टीनएजर्स को खेलने-कूदने, पढऩे-लिखने व अन्य पाजिटीव हॉबी को डेवलेप करना चाहिए। उस उम्र में ये टीनएजर्स क्लास बंक कर, कोचिंग के बाद, पार्टी के नाम पर, डिसेंट व कूल दिखने के के साथ मौज व फन के लिए शहर के एकांत में गांजा, सिगरेट फूंकते हैैं व भांग, बियर, शराब का सेवन करते हैैं। साइकाटिस्ट के अनुसार शुरुआत में मौजमस्ती के लिए टीनएजर्स द्वारा ट्राई किए जाने वाले नशे कब उनकी आदत में शुमार हो जाता है। इस बैड हैबिट की परवाह तक नशेड़ी बन रहे टीनएजर्स तक को नहीं होती है। एसएसपीजी के मानसिक ओपीडी में प्रति महीने 10 से 12 केस टीनएजर्स में नशे के सेवन के आते हैैं। इनमें समाज के मिडल क्लास से लेकर पॉश इलाके के बच्चे शामिल होते हैैं।

केस-1

चितईपुर निवासी कोमल (उम्र -16 वर्ष, बदला हुआ नाम) की काउंसिलिंग एसएसपीजी में चल रही है। यह अपने दोस्तों के प्रभाव में आकर क्लास आदि बंक कर गांजा फूंकता था। कम उम्र में ही उसके बदले व्यवहार को देखकर पैरेंट्स को थोड़ा डाउट हुआ। लगातार मानिटरिंग करने पर उसके बैग से पैरेंट्स को गांजे की पुडिय़ा मिल गई। फिर क्या उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि उनका लाडला नशे की गिरफ्त में जा फंस चुका है। लंबे इलाज के बाद यह लगभग ठीक हो चुका है.

केस-2

शहर के आदित्य नगर का मोनू (उम्र-13 वर्ष, बदला हुआ नाम) अपने नशेड़ी पिता से नशा करना सीख लिया था। वह भांग, सिगरेट व मिलने पर शराब आदि का नशा करने लगा था। एक एनजीओ के माध्यम से उसकी काउंसिलिंग कर व्यसन की लत को छुड़ाया गया है। अब वह सामान्य टीनएजर्स की तरह पढ़ाई व खेलकूद में अपना समय बिताता है.

एडिक्शन और इसका इलाज

-एडिक्शन मानसिक बीमारी है.

-ज्यादा समय तक नशा करने पर दिमाग में बदलाव होने लगता है, जिसे बिना इलाज के ठीक करना मुमकिन नहीं है.

-इसमें लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ती है। इलाज के दौरान दवाई, काउंसिलिंग और सामाजिक मेल-मिलाप जरूरी होता है.

-इलाज के बाद भी बहुत सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इसकी आशंका बनी रहती है कि एडिक्शन खत्म होने के बाद, यह फिर से शुरू हो जाए.

यूं रखें टीनएजर्स का ध्यान

-प्रकृति से प्रेम करने की भावना करें विकसित

-बच्चों को पार्क, पिकनिक और तालाब की सैर पर ले जाएं.

-किशोर को किताबें पढऩे के लिए प्रेरित करें.

-घर के छोटे-छोटे कामों में बच्चों की हेल्प लें.

-बच्चों के साथ मस्ती और हंसी-मजाक करना न भूलें.

-बच्चों की गतिविधियों की मानिटरिंग भी कर सकते हैैं।

आमतौर पर टीनएजर्स किसी की देखा-देखी ही नशे की तरफ आकर्षित होते हैैं और धीरे-धीरे लती हो जाते हैैं। इससे पैरेंट्स को घबराने की आवश्यकता नहीं है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, टाइम स्पेंड करने के तरीकों, फ्रेंड्स सर्किल और खानपान की हैबिट्स पर नजर रखें। यदि किशोर नशे का लती है तो घबराएं नहीं, उसे काउंसलर के पास ले जाएं। मानसिक थेरेपी और इलाज से उसे सामान्य जीवन में वापस लाया जा सकता है.

डॉरवींद्र कुशवाहा, साइकाट्रिक, एसएसपीजी कबीरचौरा

नशे व अन्य असामाजिक गतिविधियों में लिप्त बच्चों व किशोर की जानकारी मिलने पर हमारी संस्था उन्हें तलाश कर काउंसलिंग कराती है। यदि वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होते हैैं तो इनके पुर्नवास व शिक्षा आदि का निशुल्क प्रबंध किया जाता है। अब तक 30 बच्चों को मुख्य धारा में लाया जा चुका है.

प्रतिभा सिंह, सेक्रेटरी, उर्मिला मेमोरियल देवी सोसाइटी, नेवादा

Posted By: Inextlive