- आपदाओं से होने वाले खतरों को कम करने के लिए बनाई गई है 'अर्बन रिस्क रिडक्शन कमेटी'

- यूएनडीपी और भारत सरकार की ओर से बनाई गई है कमेटी, एडमिनिस्ट्रेशन की डिमांड पर जिले में किया जाता है एप्वाइंटमेंट

- चार सालों से सो रहे जिला प्रशासन के अफसर, अब तक नहीं भेजी डिमांड

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KANPUR : प्राकृतिक आपदाओं को रोक पाना किसी के बस में नहीं। हालांकि, अलर्टनेस से नुकसान की इनटेंसिटी को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस काम का जिम्मा 'अर्बन रिस्क रिडक्शन अथॉरिटी' का होता है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि प्रशासनिक अफसरों की लापरवाही की वजह से चार सालों से कानपुर इस विभाग से महरूम है। ऐसे में लाखों की आबादी हर पल खतरे में जिंदगी बिता रही है।

ऑफिस का अता-पता नहीं

शहरी इलाकों में भूकम्प आदि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भारत सरकार और यूएनडीपी के संयुक्त तत्वावधान में 'अर्बन रिस्क रिडक्शन अथॉरिटी' का गठन किया गया है। देश के सभी राज्यों के हर जिले में इसका एक ऑफिस भी है, जो जिला प्रशासन के अन्तर्गत कार्य करता है। इसके लिए जिले में परियोजना अधिकारी भी अप्वाइंट किया जाता है। हालांकि, कानपुर में न तो ऑफिस का अता-पता है, न ही परियोजना अधिकारी।

चार सालों से नहीं की डिमांड

सन-ख्0क्0 में फॉर्मर डीएम डॉ। मुकेश मेश्राम ने शासन के माध्यम से भारत सरकार से कानपुर में परियोजना अधिकारी नियुक्त करने की अपील की थी। डिमांड के बेसिस पर भारत सरकार ने मानस द्विवेदी को यहां का परियोजना अधिकारी बनाकर भेजा था। उनका कार्यकाल करीब दो साल कर रहा। समय पूरा होने के बाद मानस का ट्रांसफर हिमांचल प्रदेश हो गया। हालांकि, उसके बाद किसी भी जिलाधिकारी ने भारत सरकार से डिमांड करने की जरूरत ही नहीं समझी। लिहाजा, चार सालों से यह विभाग खाली चल रहा है।

क्00 वा‌र्ड्स की डिटेल्ड रिपोर्ट

अर्बन रिस्क रिडक्शन कमेटी सिटी में करीब दो सालों तक सन-ख्0क्0 से लेकर ख्0क्क् तक एक्टिव रही। इस दौरान शहर के क्00 वा‌र्ड्स की डिटेल्ड रिपोर्ट तैयार भी बनवाई गई। इनमें कैंटोमेंट एरिया के क्0 वा‌र्ड्स को शामिल नहीं किया गया था। जिसमें इन बातों का जिक्र था कि आपदा की स्थिति में कानपुर के कौन-कौन से इलाकों में सबसे ज्यादा तबाही होगी? राहत और बचाव के इंतजाम क्या-क्या हैं? कौन-कौन से इलाकों में पार्क, ग्राउंड्स हैं और कहां-कहां हॉस्पिटल्स और फायर ब्रिगेड हैं? विभिन्न इलाकों में रेजीडेंशियल-कॉमर्शियल बिल्डिंग्स व स्कूल्स की लिस्ट भी बनी थी। जोकि मानकों के विपरीत बने थे।

खतरे में ब्भ् लाख जिंदगियां

अर्बन रिस्क रिडक्शन प्रोग्राम शहर में पूरी तरह से ठप पड़ा है। इस कारण शहर के करीब ब्भ् लाख लोगों की जिंदगी हर पल खतरे में बीत रही है। कमेटी के तत्कालीन परियोजना अधिकारी मानस द्विवेदी ने तब जारी अपनी रिपोर्ट में कानपुर को आपदा के लिहाज से सेंसिटिव सिटी डिक्लेयर किया था। इनमें भी घनी आबादी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए खतरे की आशंका सबसे ज्यादा जताई गई थी। उस वक्त विभाग ने कई लोगों को नोटिसें भी जारी की थीं। हालांकि, प्रशासनिक हीलाहवाली की वजह से दोषियों पर प्रभावी कार्यवाही नहीं हो सकी।

सिविल डिफेंस का फ्लॉप शो

अर्बन रिस्क रिडक्शन प्रोग्राम के तहत सिविल डिफेंस के करीब क्ख् हजार वॉलेंटियर्स के जिम्मे राहत और बचाव का काम होता है। मगर, शनिवार को आये भूकम्प के तगड़े झटकों के बावजूद सिविल डिफेंस ने किस तरह से राहत कार्य किए। इसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं, क्योंकि सिविल डिफेंस का कोई भी वॉलेंटियर जरूरत की जगह पर नजर नहीं आया। अफसरों व वॉलेंटियर्स की इस कार्यप्रणाली ने विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाया है।

हर विभाग की जिम्मेदारी

कानपुर में आपदा प्रबंधन की जो रिपोर्ट तैयार की गई थी, उसमें विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी भी तय की गई थी। जैसे राहत-बचाव कार्य में नगर निगम, केस्को, जलनिगम की क्या-क्या जिम्मेदारी है? जिला प्रशासन और पुलिस के अफसर कैसे अपना काम करेंगे, इस बात का जिक्र भी किया गया था। हालांकि, यह बात अलग रही कि इतने सालों में किसी भी विभाग ने इन जिम्मेदारियों के हिसाब से खुद को अपडेट नहीं किया।