बेटी के अपहरण से लगा सईद की छवि को झटका

राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार के गठन के पांचवे दिन 2 दिसंबर 1989 को सईद की बेटी रूबिया का अपहरण कर लिया गया था। अपनी राजनीतिक निष्ठाओं को बदलते रहने वाले सईद उस समय केन्द्र सरकार में गृह मंत्री थे। घाटी में रूबिया की रिहाई के बदले में आतंकवादियों की रिहाई के संवेदनशील मामले का जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दूरगामी प्रभाव पड़ा। उसी समय 1990 में वादियों से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की कुख्यात कहानी शुरू हुई। सईद ने अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ 1999 में खुद की राजनीतिक पार्टी शुरू की। सईद ने उसे जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोके्रटिक फ्रंट जेकेपीडीपी नाम दिया। पार्टी का गठन करने से पहले सईद ने अपने राजनीतिक करियर का लंबा समय कांग्रेस में बिताया था।

गोल्फ प्रेमी थे सईद

जीएम सादिक की कमान में साल 1950 में वह डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य भी रहे। नेशनल कांफ्रेंस के प्रतिद्वंद्वी फारूक अब्दुल्ला की तरह सईद भी गोल्फ प्रेमी थे। सईद ने अपनी पार्टी के गठन के तीन साल के भीतर ही कांग्रेस के समर्थन से जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाई थी। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में सईद की पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। उस समय उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में अपनी पार्टी को जीत दिलाई थी। सईद की चुनावी सफलता का श्रेय उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को दिया जाता है।

कानून के जानाकर थे मोहम्मद सईद

12 जनवरी 1936 को अनंतनाग जिले के बिजबेहरा में पैदा हुए सईद श्रीनगर के एस पी कालेज और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं। उन्होंने कानून और अरब इतिहास में डिग्री भी हासिल की थी। सईद की बेटी महबूब ने पार्टी के लिए कैडर को सक्रिय और संगठित किया। महबूब को तगड़ा मोलभाव करने वाला माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके मोलभाव के कौशल के चलते ही प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आई। माना जाता है कि महबूबा मुफ्ती ने ही अपने पिता को छह साल का पूरा कार्यकाल दिलाने के लिए बीजेपी को मनाने में कड़ी मेहनत की।

मेरठ दंगो के बाद दिया था कांग्रसे से त्यागपत्र

डीएनसी की कमान संभालने के बाद सईद ने 1962 में अपने जन्मस्थान से चुनाव जीत कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।1967 में भी इसी सीट से जीत हासिल की। जिसके बाद सादिक द्वारा उन्हें उप मंत्री बनाया गया। 1972 में वह कैबिनेट मंत्री बने साथ ही विधान परिषद में कांग्रेस पार्टी के नेता भी। 1975 में उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। जिसके बाद वह अगले दो चुनाव हार गए। 1986 में केंद्र में राजीव गांधी की सरकार में सईद बतौर कैबिनेट मंत्री पर्यटन का पद संभाला। सईद ने एक साल बाद मेरठ दंगों से निपटने में कांग्रेस के तौर तरीकों और इनमें पार्टी की कथित संलिप्तता का आरोप लगाते हुए त्यागपत्र दे दिया।

16 सीटों से बनाई थी जम्मू कश्मीर में सरकार

कांग्रेस के गठबंधन के साथ साल 2002 में जब सईद मात्र 16 सीटें लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय जम्मू कश्मीर कई मोर्चो पर समस्याओं का सामना कर रहा था। संसद पर हमले के बाद सेना और पाकिस्तान एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले खड़े थे। राज्य में निजी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग दिए गए थे। एक दूरदर्शी नेता चुस्त राजनीतिक रणनीतिकार और समझदार राजनेता के रूप में देखे जाने वाले मुफ्ती के परिदृश्य में आने के बाद बड़े सधे तरीके से राजनीतिक समीकरणों को संतुलित करने की उनकी कला के चलते हालात में तेजी से बदलाव आया। यह बदलाव दोनों स्तर पर था राज्य के भीतर भी और क्षेत्रीय संबंध में भी।

सईद ने की थी अटल बिहारी बाजपेई को बुला कर शांति की पहल

दो दशकों में पहली बार मुफ्ती ने पीडीपी के मंच से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रीनगर में हुई एक रैली को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था। जिसे शांति के नए प्रयासों के रूप में देखा गया था। इसकी परिणति अग्रिम इलाकों से सेना की वापसी हुई। सीमाओं पर संघर्षविराम के साथ विशेष कार्य बल एवं पुलिस के विशेष अभियान समूह को खत्म करने के साथ ही पोटा को समाप्त करने और राजनीतिक कैदियों की रिहाई के रूप में हुई। जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच व कश्मीर में अलगाववादियों और केंद्र के बीच सीधा संपर्क कायम हुआ।

 

सुलझे हुए नेता के रूप में रहेगी सईद की छवि

श्रीनगर और मुजफ्फराबाद के बीच बस सेवा शुरू होने के समय भी मुफ्ती ही राज्य के मुख्यमंत्री थे। 2002 में राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद मुफ्ती ने जनता की शांति और गरिमा की पुकार सुनी। जिससे लोगों के टूटे दिलों को जोड़ने उनकी गरिमा को बहाल करने उनके दिलों में एक नई उम्मीद जगाने की मुहिम शुरू हुई। राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी के जरिए उन्हें अपनी नियती तय करने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में भी कदम उठाया। आज सईद हमारे बीच नहीं है लेकिन राज्य के तमाम नेता मानते हैं कि सईद का अनुभव और सबकों साथ लेकर चलने का कौशल जम्मू कश्मीर राज्य के हित में रहा।

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