इस चरण में पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों की किस्मत का फ़ैसला होगा. इनमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी पौड़ी से, रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार से, भगत सिंह कोशियारी नैनीताल से, बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सारण से और आंध्र प्रदेश में तेलुगुदेशम के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू कप्पम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से, भाजपा नेता वरुण गांधी सुल्तानपुर से, भाजपा उपाध्यक्ष स्मृति ईरानी अमेठी, पूर्व केंद्रीय मंत्री डी पुरंदेश्वरी राजमपेट से, अनुराग ठाकुर हमीरपुर से और साकेत बहुगुणा टिहरी से चुनाव लड़ रहे हैं.

इनके अलावा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत हरिद्वार से, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह मंडी से और केंद्रीय मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा गोंडा से उम्मीदवार हैं. वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी पुलिवेंदुला विधानसभा सीट से उम्मीदवार हैं.

संख्या के लिहाज़ से सबसे ज़्यादा अहम आंध्र प्रदेश नज़र आता है. कांग्रेस के लिए यूपीए-टू सरकार बनाने में आंध्र प्रदेश की अहम भूमिका थी.

राहुल,वरुण और लालू की प्रतिष्ठा दांव पर

तेलंगाना अलग हो जाने के बाद बची जिन 25 सीटों पर आज मतदान है उनमें बीते चुनाव में कांग्रेस ने ठोस प्रदर्शन किया था. निवर्तमान लोकसभा में यहां से कांग्रेस को 19 सीटें हासिल थीं. तेलुगुदेशम पार्टी के हाथ सिर्फ़ चार और वाईएसआर कांग्रेस के पास दो सीटें थीं. इसी चरण में आंध्र प्रदेश विधानसभा की 175 सीटों पर भी मतदान है.

आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के छात्र प्रभाकर कहते हैं, "नरेंद्र मोदी ने देश को हिला दिया है. मैं चाहता हूं कि सरकार बदले. भ्रष्टाचार यहां बड़ा मुद्दा है. मैं सही आदमी को वोट देना चाहता हूं."

जहां सीमांध्र में युवाओं को बेरोज़गार और भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा लगता है वहीं इस इलाक़े के कुछ बुज़ुर्गों को तेलंगाना बनने से तकलीफ़ हुई है.

विजयवाड़ा के ही वलीउल्लाह कहते हैं, "तेलंगाना बनने से मेरे को बड़ी तकलीफ़ मालूम हुई है. एक साथ था तो अच्छा था. यहां सब मुद्दे हैं लेकिन शुरू से ही मैं कांग्रेसी हूं तो कांग्रेस को ही वोट करूंगा."

'कांग्रेस के लिए हालात बदतर'

वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती कहती हैं कि 30 साल पहले जब तेलुगुदेशम ने आंध्र प्रदेश में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया था कांग्रेस के लिए हालात आज उससे भी बदतर हैं.

वो बताती हैं, "1984 में तेलुगुदेशम विपक्ष के रूप में उभरी थी लेकिन इस बार कांग्रेस में से ही जगनमोहन रेड्डी एक ताक़त के रूप में उभरे हैं. वो कांग्रेस की जड़ें काट रहे हैं, कांग्रेस के दलित, अल्पसंख्यक और ग़रीब तबकों में आधार को वो चुनौती दे रहे हैं. कांग्रेस के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण स्थिति है."

-वलीउल्लाह, विजयवाड़ा

विजयवाड़ा के वलीउल्लाह कहते हैं कि तेलंगाना बनना ठीक नहीं रहा.

तो क्या केंद्र सरकार बनाने में इन 25 सीटों की अहम भूमिका हो सकती है. इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक कल्याणी शंकर कहती हैं. "कांग्रेस को एक सीट मिल जाए तो वही बहुत है बाक़ी मुझे कहीं कांग्रेस जीतती नज़र नहीं आती."

वो आगे कहती हैं, "वाजपेयी के ज़माने में चंद्रबाबू नायडू इसीलिए ताक़तवर थे, जो वो चाहते थे उन्हें मिलता था. राजशेखर रेड्डी के वक़्त में कांग्रेस को 2004 में 29 और 2009 में 33 सीटें मिलीं. लेकिन जिस आंध्र प्रदेश को कभी कांग्रेस का गढ़ बोलते थे आज वहां शायद कुछ न मिले."

वहीं आठवें चरण में उत्तर प्रदेश की पंद्रह सीटों पर भी मतदान है.

कांग्रेस के लिए 2009 में ये सीटें काफ़ी मुनाफ़े वाली रही थीं. इन 15 सीटों में से उसे सात सीटें यानी क़रीब आधी सीटें मिली थीं. जबकि भाजपा को इनमें से एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी. यानी भाजपा के पास यहां खोने को कुछ नहीं है.

राहुल,वरुण और लालू की प्रतिष्ठा दांव पर

'जाति हावी या धर्म'

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा मानते हैं कि भाजपा को हिंदू राष्ट्रवाद से ज़्यादा फ़ायदा होता नहीं दिख रहा इसीलिए नरेंद्र मोदी जाति का भी नारा बुलंद कर रहे हैं और उन्होंने चुनाव के एक दिन पहले अपने पिछड़े होने का हवाला दिया.

वो कहते हैं, "हिंदू राष्ट्रवाद ऊंची जाति को अपील करता है. दलित समाज बसपा के साथ है लेकिन जहां तक पिछड़ों का सवाल है, भाजपा के साथ यादव तो नहीं गए लेकिन उनकी कोशिश है कि उन्हें ग़ैर यादव पिछड़ों के वोट मिल जाएं. देखना यह है कि जाति हावी होती है या धर्म का नारा हावी होता है या दोनों का समन्वय होता है."

राहुल,वरुण और लालू की प्रतिष्ठा दांव पर

बिहार में राबड़ी देवी और रामविलास पासवान भी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं. रामविलास पासवान पिछला लोकसभा चुनाव हार गए थे और राबड़ी देवी अपने पति लालू प्रसाद यादव की सारण सीट से उम्मीदवार हैं. पिछली बार इन सात सीटों में से ज़्यादातर जदयू के खाते में गई थी.

इनके अलावा हिमाचल प्रदेश की चार सीटों और उत्तराखंड की पांच सीटों पर भी इसी चरण में चुनाव हैं. विनोद शर्मा कहते हैं कि इन दोनों राज्यों का महत्व बहुत कम है क्योंकि सीटें कम हैं. उनका आकलन है कि भाजपा और कांग्रेस को यहां बराबर सीटें मिलेंगी.

वहीं पश्चिम बंगाल में वाम दलों के सामने चुनौती अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की है. बांकुरा से नौ बार के सांसद बासुदेब आचार्य के सामने अभिनेत्री मुनमुन सेन हैं तो आसनसोल से भाजपा के प्रत्याशी और गायक बाबुल सुप्रियो की चुनावी किस्मत भी यहां दांव पर लगी है.

इस चरण के बाद 12 मई को सिर्फ़ 41 सीटों पर मतदान बचेगा जिनमें बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की 24 सीटें शामिल हैं.

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