नई दिल्ली (पीटीआई)। प्राइवेटाइजेशन के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (डीआईपीएएम) के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने बताया कि टाटा ग्रुप की एक होल्डिंग कंपनी ने एयर इंडिया को खरीदने के लिए सबसे ज्यादा बोली लगाई है। टाटा एयर इंडिया को खरीदने के लिए सन्स ने स्पाइसजेट प्रमोटर से ज्यादा महंगी बोली लगाई।

एयर इंडिया पर 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज

डीआईपीएएम सचिव ने कहा कि टाटा ने 18 हजार करोड़ रुपये की बोली लगाई है। इसमें एयर इंडिया पर बकाया 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज भी शामिल है। शेष राशि टाटा सरकार को कैश के रूप में देगी। दोनों बोली कर्ताओं ने रिजर्व प्राइज से ज्यादा बोली लगाई थी। रुपयों का ट्रांजेक्शन दिसंबर तक खत्म हो जाएगा।

एयर इंडिया एक बार से टाटा के स्वामित्व में

सचिव ने कहा कि मंत्रियों के समूह जिसमें गृहमंत्री अमित शाह, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल तथा सिविल एविएशन मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 4 अक्टूबर को एयर इंडिया के लिए सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले के हक में मंजूरी दे दी थी। इसके साथ ही एयर इंडिया एक बार फिर से टाटा के स्वामित्व में चली गई।

जेआरडी टाटा ने स्थापित की एयर इंडिया

जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने 1932 में इस एयरलाइन की स्थापना की थी। उस समय इस एयरलाइन को टाटा एयरलाइंस के नाम से जाना जाता था। 1946 में टाटा सन्स की एविएशन डिविजन ने इसे एयर इंडिया के तौर पर पंजीकरण कराया। यूरोपीय तक उड़ानों के साथ 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल लांच किया गया।

100 प्रतिशत हिस्सेदारी एआई एक्सप्रेस की

इंटरनेशनल सर्विस भारत में पहली बार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत शुरू की गई। इसमें सरकार की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी थी जबकि टाटा की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी। शेष हिस्सेदारी पब्लिक की थी। 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। सरकार एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रही है। इस सौदे में एआई एक्सप्रेस की 100 प्रतिशत तथा एयर इंडिया की एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी शामिल है।

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