संन्यासी बनना जरूरी नहीं
तिरुवल्लुवर का जन्म मायलापुर में एक़ जुलाहा परिवार मैं हुआ था। उनकी पत्नी वासुकी थी। तिरुवल्लुवर ने लोगों को बताया कि एक व्यक्ति गृहस्थ या गृहस्थस्वामी का जीवन जीने के साथ-साथ एक दिव्य जीवन या शुद्ध और पवित्र जीवन जी सकता है।  उन्होंने लोगों को बताया कि शुद्ध और पवित्रता से परिपूर्ण दिव्य जीवन जीने के लिए परिवार को छोड़कर सन्यासी बनने की आवश्यकता नहीं है।  उनकी ज्ञान भरी बातें और शिक्षा अब एक पुस्तक के रूप में मौजूद है जिसे ‘थीरूकुरल’ के रूप में जाना जाता है। इसमें कुल 133 अध्याय हैं और हर अध्याय में 10 दोहे हैं। इसे आप फ्लिपकार्ट से घर बैठे खरीद सकते है।

133 फुट ऊंची मूर्ति
भारतीय उपमहाद्वीप (कन्याकुमारी) के दक्षिणी सिरे पर संत तिरुवल्लुवर की 133 फुट लंबी प्रतिमा बनाई गई है जहां अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर मिलते हैं। 133 फुट, तिरुक्कुरल के 133 अध्यायों या अथियाकरम का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी तीन अंगुलिया अरम, पोरूल और इनबम नामक तीन विषय अर्थात नैतिकता, धन और प्रेम के अर्थ को इंगित करती हैं।

संत तिरुवल्लुवर के प्रेरणादायक कथन :-

- इंसान भीतर से जितना मजबूत होगा उतना ही ऊंचा उसका कद होगा।

- बुरे व्यवहार या बुरी आदतों वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है,  जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना।

- सबसे बड़ा मूर्ख वही है जिसने काफी कुछ सीखा हो, काफी कुछ पढ़ा-लिखा हो, लेकिन अभी भी उसे संतुष्टि हासिल न हुई हो।

- एक अच्छा शिक्षक वही है जो अपने छात्रों के लिए पढ़ाई आसान बना देता है। यहां तक की शिक्षक के जाने के बाद भी छात्र उनके पढाए पाठ के बारे में हैं।

- जो आदमी नशे में मदहोश है उसकी सूरत उसकी माँ को भी बुरी लगती है।

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