Maintain the right posture to keep at bay.
एक आईटी कम्पनी में काम करने वाले 29 साल के रवि को करीब छह महीने पहले बाएं हाथ में दर्द महसूस हुआ और उन्होंने इसे कोई छोटा-मोटा दर्द समझकर इग्नोर कर दिया. कुछ दिनों बाद जब दर्द हाथ से होते हुए गर्दन तक पहुंच गया तो उन्होंने ऑएंटमेंट और पेनकिलर से काम चला लिया, ये सिलसिला करीब छह महीने तक चलता रहा. एक दिन अचानक जब उन्हें वॉमेटिंग के साथ चक्कर आने लगा तो डॉक्टर के पास पहुंचे और तब उन्हें पता चला कि उन्हें स्पांडिलाइटिस है. रवि ऐसे अकेले नहीं हैं. आर्थोपेडिक सर्जन एएस प्रसाद के मुताबिक स्पांडिलाइटिस एक गठिया ही है जो रीढ़ की हड्डी में हो जाता है. करीब 25 की उम्र के बाद स्पांडिलाइटिस किसी को भी हो सकता है. डॉ. प्रसाद के मुताबिक डेस्क जॉब कर रहे इसकी चपेट में जल्दी आ सकते हैं. डॉ. प्रसाद कहते हैं, ‘स्पांडिलाइटिस प्रोग्रेसिव डिसीज है. आमतौर पर उम्र बढऩे के साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं लेकिन अगर आप देर तक लगातार बैठते हैं, बैठने का पोश्चर सही नहीं है या एक्सरसाइज नहीं करते तो स्पांडिलाइटिस होना कोई ताज्जुब की बात नहीं है.’ प्रसाद के मुताबिक हम एक्सरसाइज और खान-पान को लेकर पहले से अलर्ट रहें तो स्पांडिलाइटिस से काफी हद तक खुद को बचा सकते हैं.
कैसे बचें Spondylitis से?
किसी भी एक पोश्चर में एक घंटा से ज्यादा ना बैठें. हर एक घंटा बाद पांच मिनट का ब्रेक लें.- पैर की पोजिशन को बदलते रहें.
- चेयर पर बैठे-बैठे दाएं-बाएं घूमते रहें.
- दिन भर में कम से कम आधे घंटे की एक्सरसाइज डेली करें.
- ऐसी डायट लें जिसमें कैल्शियम और विटामिन डी हो.
- अगर आप स्पांडिलाइटिस की चपेट में आ गए हों तो ऊपर के प्वॉइंट्स आपकी हेल्प करेंगे. यहां दिया जा रहे दो केसेज साफ बताते हैं कि हेल्दी रूटीन आपको किस तरह हेल्प कर सकते हैं.
Case 1: Ravi Pandey, Age-29, Software engineer
प्रॉब्लम की शुरुआत: छह महीने पहले
डॉक्टर से मिलने से पहले रवि का रूटीन
वर्किंग ऑवर्स: डेस्क जॉब, 8 से 10 घंटे की सिटिंग, कभी-कभी ओवरटाइम भी.
सिटिंग पोश्चर: काम करने के दौरान झुककर बैठना.
काम के बीच ब्रेक: रेग्युलर ब्रेक नहीं ले पाते.
डायट में कैल्शियम: ध्यान नहीं दिया.
स्लीपिंग ऑवर्स: 5 से 6 घंटे की नींद लेकिन गहरी नींद कम ही आती थी.
बेड: सॉफ्ट बेड
सोने के लिए पिलो: कॉमन पिलो
एक्सरसाइज़: पिछले दो साल से छोड़ रखी है.
डॉक्टर से मिलने के बाद बदला रूटीन
वर्किंग ऑवर्स: 10 घंटे से ज्यादा नहीं, ओवरटाइम बंद.
सिटिंग पोश्चर: पीठ सीधी करके बैठना, सर्वाइकल कॉलर पहनना.
काम के बीच ब्रेक: बे्रक के लिए हर एक घंटे बाद का अलॉर्म लगाना.
डायट: हेल्दी डायट के साथ, कैल्शियम और विटामिन डी सप्लीमेंट.
स्लीपिंग ऑवर्स: अच्छी नींद
बेड: हार्ड बेड
पिलो: दो फोल्ड करके टॉवल लगाना.
एक्सरसाइज़: गर्दन की एक्सरसाइज के साथ आधे घंटे नॉर्मल एक्सरसाइज.
नोट: रवि ने डॉक्टर के रूटीन को पूरी तरह फॉलो किया. वह बेहतर फील कर रहे हैं.
Case 2:Sonal Mathur, Age-40, House wife
प्रॉब्लम शुरू हुई: करीब चार साल पहले डॉक्टर से मिलने से पहले सोनल का रूटीन
वर्किंग ऑवर्स: ब्रेकफास्ट से डिनर तक की तैयारी, घर के ढेरों काम.
सिटिंग पोश्चर: पीठ बिल्कुल सीधी करके बैठना.
काम के बीच ब्रेक: हमेशा नहीं बल्कि काम के अकॉर्डिंग ब्रेक लेना.
डायट में कैल्शियम: ध्यान नहीं दिया.
स्लीपिंग ऑवर्स: 5-6 घंटे, वैसे कई बार लेट नाइट नींद आना. कई बार तो नींद नहीं भी आती है.
बेड: सॉफ्ट बेड
सोने के लिए पिलो: मोटी पिलो
एक्सरसाइज़: कभी नहीं.
सोनल का पे्रजेंट शेड्यूल...
वर्किंग ऑवर्स: काम से छुटकारा नहीं मिल पाता. दिनभर कुछ न कुछ करते ही बीतता है.
सिटिंग पोश्चर: पोश्चर का हमेशा ध्यान रखती हैं. सर्वाइकल कॉलर दर्द बढऩे पर ही लगाती हैं.
काम के बीच ब्रेक: रेग्युलर नहीं.
डायट: कोई खास डायट नहीं
स्लिपिंग ऑवर्स: 5-6 घंटे
बेड: हार्ड बेड
पिलो: टॉवल फोल्ड करके लगाना.
एक्सरसाइज़: एक्सरसाइज नहीं करतीं लेकिन इवनिंग वॉक रेग्युलर करती हैं.
नोट: सोनल चार साल में करीब पांच डॉक्टर चेंज कर चुकी हैं और पेन पहले से ज्यादा है.