- एसएन में थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों के लिए आया था 50 लाख का बजट

- मार्च में वापस चला जाएगा बजट

आगरा। थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझने वाले मासूमों के इलाज को सुगम करने के लिए छह महीने से बजट पड़ा है। अब, जब बजट वापस जाने वाला है तो दो महीने में 50 लाख के बजट की बंदरबांट करने की तैयारी की जा रही है। यह हाल है एसएन मेडिकल कॉलेज का। यहां थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चों के लिए शासन की ओर से दिए गए 50 लाख के बजट खर्च हो जाएगा। मार्च में बजट वापस शासन को चले जाएगा अस्पताल प्रशासन का दावा है कि दो महीने में प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा।

यह काम होने थे बजट में

शासन द्वारा दिए गए बजट में पीडियाट्रिक विभाग के अंतर्गत थैलेसीमिया क्लिनिक बनना है। इसमें बच्चों को खून चढ़ाने के लिए ब्लड ट्रांसलेशन किट्स लाना, ब्लड टेस्टिंग मशीन और बच्चों के लिए थैलेसीमिया में काम आने वाली दवाइयां आनी है। ब्लड चढ़ाने से शरीर में होने वाली आयरन की कमी को दूर करने के लिए होने वाली थैरेपी भी इस क्लिनिक में की जानी है। लेकिन अभी इसके टेंडर ही निकालने में ही अस्पताल प्रशासन फंसा हुआ है।

शहर 105 पीडि़तों को पड़ती है 250 से 300 यूनिट ब्लड की जरूरत

जीवन रक्षक सोसायटी के रघुवीर सिंह ने बताया कि शहर में करीब 105 बच्चे थैलेसीमिया से पीडि़त है। देखने में यह संख्या बहुत छोटी लगती है लेकिन इन बच्चों को प्रतिमाह 250 से 300 यूनिट खून की आवश्यकता होती है। प्रोजेक्ट से इन बच्चों को काफी मदद मिलती लेकिन अब भी ये बच्चे बाहर से महंगा इलाज कराने को मजबूर हैं।

14 को लखनऊ में है बैठक

आगामी 14 जनवरी को लखनऊ में थैलेसीमिया प्रबंधन के संबंध में विस्तृत रणनीति तैयार करने के लिए बैठक आयोजित की जा रही है। चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में होने जा रही इस बैठक में एसएन से पीडियाट्रिक के हेड बैठक में हिस्सा लेंगे और थैलेसीमिया प्रबंधन में सुधार को लेकर विचार प्रस्तुत करेंगे। लेकिन उनके विभाग में हालात यह है कि प्रोजेक्ट शुरू भी नहीं हो पाया है।

क्या होता है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रोग है। इसमें शरीर की रेड ब्लड सेल्स के बनने की प्रक्रिया में गड़बड़ी आ जाती है और लगातार खून की कमी बनी रहती है। इससे बच्चे को बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है। थैलेसीमिया का इलाज सिर्फ बोनमैरो ट्रांसप्लांट से ही संभव है। लेकिन यह अत्याधिक खर्चीला है इसीलिए हर कोई इसे वहन नहीं कर पाता।