-पर्यटक की स्थिति का लपके करते लेते हैं आंकलन

-सौदा तय होने के बाद एक ही व्यक्ति करता है डीलिंग

आगरा। ताजमहल के पश्चिमी गेट, पुरानी मंडी चौराहे पर पर्यटकों की बोली लगाई जाती है। भले ही ये अजीब लगे, लेकिन स्मारक के पास रोज ऐसा नजारा देखा जा सकता है। हैरानी तो ये है कि बिकने वाले पर्यटक को भी इसकी जानकारी नहीं होती। झांसे में आने वाले पर्यटकों को इसका खामिया व्यापारिक प्रतिष्ठानों को मोटी रकम देकर चुकाना पढ़ता है।

ताजमहल का दीदार करने को बड़ी संख्या में रोज देशी-विदेशी पर्यटक आगरा पहुंचते हैं। यहां उन्हें पता भी नहीं चलता और उनकी बोली भी लगा दी जाती है। पर्यटकों की डीलिंग के एवज में तय रकम के साथ मोटी रकम कमीशन के रूम में मिल जाती है। पश्चिमी गेट से ताज दर्शन को जाने वाले पर्यटकों को इसका अंदाजा तक नहीं होता है। ताजमहल की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी भी इस नजारे को खामोशी से देखते रहते हैं।

बोली में लेना होता है रिस्क

ताजमहल के आसपास घूम कर सामान बेचने वालों को स्थानीय लोगों द्वारा लपके का नाम दिया गया है। ताज के पास सामान बेचने वाले सुहेल का कहना है कि पर्यटक की बोली में अक्सर रिस्क रहता है, वाहनों से उतरने वाले पर्यटकों की बोली 100 से 500 तक लगा दी जाती है। यदि पर्यटक अच्छी खरीदारी करता है, तो कमीशन भी 30 से 50 फीसदी तक बन जाता है। इसके अलावा टिप भी अलग से मिल जाती है। कभी ऐसा भी होता है कि पर्यटक कुछ भी नहीं लेता।

पर्यटकों का करते हैं आंकलन

ताज के पश्चिमी गेट पर जमा हुए लपके वाहनों से उतरने वाले पर्यटकों की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर लेते हैं। इसके बाद बोली की प्रक्रिया शूरू होती है। लपकों का नियम है कि जो व्यक्ति पहले पर्यटक से बात करता है और पर्यटक भी उसमें इंट्रेस्ट लेता है, तो दूसरा व्यक्ति इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। यदि पहले वाला व्यक्ति बात करने में ना कामयाब रहता है, तो दूसरे को मौका मिल सकता है।

सुरक्षाकर्मियों पर भी हावी लपके

ताजमहल के आस-पास तैनात सुरक्षाकर्मियों के सामने लपके पर्यटकों से सौदेबाजी करते देखे जा सकते हैं। सुरक्षाकर्मी यदि कोई कार्रवाई करते हैं, तो सभी लपके सैकड़ों की संख्या में एक जुट हो जाते हैं। कई बार लपकों को पकड़ने की कार्रवाई की गई है, लेकिन सिफारिश के चलते उन्हें छोड़ दिया जाता है। लपकों पर ठोस कार्रवाई नहीं होने से उनकी संख्या में इजाफा होता जा रहा है।