प्रयागराज (ब्‍यूरो)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि आपसी सहमति से तलाक के समय पत्नी ने गुजारा भत्ता सहित सभी अधिकार छोड़ दिया है तो उसे बाद में पूर्व पति से गुजारा भत्ते की मांग करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने गौतमबुद्धनगर के अपर प्रधान न्यायाधीश परिवार अदालत के पत्नी को प्रतिमाह 25 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने संबंधी आदेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने संबंधी आदेश के खिलाफ पति की पुनरीक्षण याचिका मंजूर कर ली और पत्नी की तरफ से गुजारा भत्ता बढ़ाने की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। जस्टिस विपिन चन्द्र दीक्षित ने पति गौरव मेहता व पत्नी अनामिका चोपड़ा की पुनरीक्षण याचिकाओं पर यह आदेश दिया है।

तलाश के समय ही कर दिया था स्पष्ट
कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने पति के खिलाफ भविष्य के सारे अधिकार छोड़ कर तलाक लिया है, इसलिए उसे अंतरिम गुजारा भत्ता पाने का अधिकार नहीं है। मुकदमे के तथ्यों के अनुसार 27 फरवरी 2004 को शादी हुई। बेटा पैदा हुआ, जिसका नाम अभिमन्यु रखा गया। दोनों ने विवाद के कारण 16 जून 2006 को आपसी सहमति से तीस हजारी कोर्ट नई दिल्ली में तलाक का केस दायर किया। अदालत में बयान दर्ज हुए। पत्नी ने यहां तक कहा कि भविष्य में वह पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं मांगेगी। बेटा बालिग होने तक मां के साथ रहेगा और पिता को बेटे से नियत समय पर मुलाकात करने की अनुमति होगी। इस पर 20 अगस्त 2007 को तलाक हो गया। दोनों अलग रह रहे हैं। पत्नी ने बेटे की तरफ से गौतमबुद्धनगर परिवार अदालत में गुजारा भत्ता दिलाने के लिए धारा 125 में अर्जी दायर की। अदालत ने बेटे को 15 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। इसके बाद पत्नी ने भी धारा 125 में पूर्व पति की आय का 25 प्रतिशत गुजारा भत्ते की मांग की और उसमें 50 हजार रुपये अंतरिम गुजारे की अर्जी दी। इसे स्वीकार करते हुए परिवार अदालत ने 25 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता पाने का हकदार माना। इसकी वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि पत्नी ने सारे अधिकार छोड़ दिए हैं। इसलिए यह आदेश रद किया जाय। कोर्ट ने कहा कि परिवार अदालत ने गलती की है।