प्रयागराज (ब्‍यूरो)। रमजान माह में रोजा सिर्फ पुरुष नहीं रखते हैं। बराबरी में महिलाएं भी नियमित रोजा रखती हैं। इन पर रोजा रखने के साथ ही घरेलू जरूरतों को पूरा करने के साथ ही सेहरी और इफ्तार तैयार करना भी जिम्मेदारी है। जिम्मेदारियां होने के बाद भी महिलाएं इसे हंसी खुशी पूरा करती हैं। रोजा रखने के साथ ही पाचों वक्त की नमाज पढऩा उनकी रुटीन का हिस्सा है। इतना सब कुछ वे महिलाएं कैसे मैसेज कर पाती होंगी जो जॉब भी करती हैं? इस जवाब का जवाब पाने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट पहुंचा मजीदिया इस्लामिया इंटर कॉलेज। यहां काम करने वाली महिलाओं ने खुलकर अपने मन की बाद शेयर की। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जिस प्रकार हम अपनी कमाई का एक हिस्सा जकात के रूप में निकालते हैं उसी प्रकार रमजान के महीने में रोजा रखने के साथ घर की जिम्मेदारियां निभाना और जॉब पूरा करना हमारे शरीर का जकात है।

अल्लाह हमारे मुल्क में अमन-जैन और सुकून कायम कर दे
रमजान के पाक महीने में काम करने वाली ख्वातीन की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। जॉब वाली महिलाओं को धर के साथ-साथ बाहर की जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। रमजान के दिनों में हमारा दिन सुबह 3 बजे से शुरू होता है। कैसे पूरा दिन इबादत, सहरी, कालेज और इफ्तार के इन्तेजाम में निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। यह सब करने से हमको थकान नहीं बल्कि खुशियां ही मिलती है। इस महीने का साल भर इंतजार रहता है। तब जाकर ऐसी खुशियां नसीब होती हैं। रमजान के पाक महीने में हम अल्लाह से यह दुआ मांगते हैं कि ऐ अल्लाह हमारे मुल्क और पूरी दुनिया में अमन-जैन और सुकून शान्ति कायम कर दे।
इरम अब्बास

दुनिया हमारी मेहनत की कद्र करले ये ही काफी है
रमजान रहमत और बरकतों वाला महीना है। रमजान में साल भर के सारे गुनाहों से बख्शीश मिलती है। तो महिलाओं के लिए जिम्मेदरियां भी लेकर आता है। खासकर हम जैसे जॉब करने वाली महिलाएँ, जो घर और बहार की दोनों कर्तव्यो का बखुबी निभाती है, कि कल अल्लाह के घर अपना हिसाब देना होगा। नौकरी करने के बाद रोजा रखकर घरवालों के लिए इफ्तार और सहरी बनाना आसान काम नहीं होता। लेकिन अफसोस तो यह है के समाज ये सारे काम महिलाओं की ड्यूटी के रूप में ही देखता है, ना कि एहसान के तौर पर। बाकी ये दुनिया हमारी मेहनत की कदर करले ये ही काफी है।
जैनब सिद्दीकी

इंसान के जिस्म की जकात है रोजा
रोजा बुराइयों से बचने के लिए ढाल है। जहान्नम से आजादी का एक अहम जरिया है। रोजा नूर है। हजरत सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम ने कहा है कि 'हर शह की एक जकात होती है, इंसान के जिस्म की जकात रोजा है। जिस तरह से जकात से माल (धन-दौलत प्रॉपर्टी) पाक होता है। इस तरह रोजा से जिस्म पाक हो जाता है.Ó रहा सवाल नौकरी का तो मैं सर्विस साथ रोजा रखना भी मेरी ही ड्यूटी है। किसी भी हालत से रोजा माफ नहीं है। इससे मुझे दिली तसल्ली होती है। मैं रोजा रखते हुए सर्विस की जिम्मेदारी को अंजाम देना मेरे लिए दोहरी खुशी है। इसके अलावा घर की जिम्मेदारियों के साथ रोज़ा रखना मुझे अच्छा लगता है। मैं बाकी लोगों से भी यही कहूंगी कि रोजी के साथ-साथ अपनी जितने भी जिम्मेदारियां हैं उनको भी अच्छे से निभाएं। अल्लाह के घर में हर चीज का हिसाब देना होगा।
बिन्ते फातिमा

इबादत और रोजे के साथ कॉलेज की ड्यूटी भी उतनी ही जरूरी
रमजान का पाक महीना चल रहा है। रमजान की इबादत और रोजे हम पर फर्ज है, तो कॉलेज की ड्यूटी भी उतनी ही जरूरी है। सुबह 3 बजे उठकर परिवार के साथ सहरी सुबह की नमाज बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना खुद तैयार होकर स्कूल जाना, ये सभी काम मुझे पसंद है। मैं पहले से ही शिक्षक बनना चाहती थी। बच्चों का अच्छा भविष्य बनाना ही मेरी प्राथमिकता रही है। यही वजह है कि विद्यालय में शिक्षण कार्य के बाद कालेज की एक्टीविजीज में भी समय देती, घर पहुंचकर कर कुरान की तिलावत, नमाज इफतार की तैयारी करना सब मेरी जिंदगी का एक हिस्सा है। यह बात अलग है कि रमजान के चलते कुछ जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं।
शमा बानो

जिम्मेदारियां ठीक से निभाने से इबादत कई गुना बढ़ जाती है
मैं विज्ञान की शिक्षिका और कामकाजी महिला होने के साथ-साथ मैं एक गृहिणी भी हूं। रमजान और दैनिक जीवन की सभी ड्यूटीज निभाना वाकई कठिन जिम्मेदारी है। रमजान के दौरान कॉलेज के काम और घरेलू जि़म्मेदारियों को अच्छी तरह से कर लेने से हमारी इबादत भी कई गुना बढ़ जाती है। सभी काम को बिना परेशानी से करने के लिए टाइम मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। रमजान के दौरान मैं अपने काम टाइम टेबल के हिसाब से ही करती हूं। यही वजह है कि मैं अपनी सभी जिम्मेदारी बखूबी निभा लेतीं हूं।
राहिल फातिमा