करीब दो साल पहले ही आया था गांव से
नाम उसका दिनेश है। खिवकी, कोरांव गांव का रहने वाले दिनेश द्विवेदी का जन्म 15 अगस्त 2001 में हुआ था। पिता गांव में ही किसानी करके परिवार का पेट पालते हैं। परिवार में तीन बहनें और दो भाई में सबसे छोटा दिनेश गांव में रहकर कभी स्कूल नहीं गया। पिता हरिवंश ने बताया कि एक बार उसे बचपन में स्कूल भेजा गया था लेकिन टीचर की मार पडऩे पर वह फिर कभी स्कूल नहीं गया। पिता ने बताया कि उसका बड़ा भाई ओमकार ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 2010 में एमएससी की थी। बड़ा भाई के यहंा दिनेश दिसंबर 2010 में शहर आया। पिछले साल उसका नाम माधव ज्ञान केंद्र स्कूल में आठवीं में लिखवाया गया था लेकिन दिनेश ने एग्जाम नहीं दिया.

सभी सवाल हल कर लिए
भाई ओमकार की मानें तो उन्होंने खुद गांव के एक सरकारी स्कूल में सीधे पांचवीं में दाखिला लिया था। इंटर के बाद ओमकार शहर आ गए थे। मुट्ठीगंज में रहकर सिविल की तैयारी कर रहे ओमकार की मानें तो
2010 में जब वह गांव गए तो उन्होंने दिनेश को पढऩे के लिए कहा। उसे उस दौरान केवल पहाड़ा, मात्रा, गिनती, जोडऩा-घटाना ही आता था। इसके बाद मैंने उसे गुणा-भाग पढ़ाकर कुछ सवाल हल करने को कहा। उसने हल कर लिया। फिर दशमलव प्रतिशत बताया तो उसे भी हल कर लिया। करीब एक महीने में उसने क्लास छह, सात, आठ की मैथ्स के सभी सवाल हल कर लिए। फिर उसे जब नाइंथ में दाखिला लेने के लिए कहा तो दिनेश ने कहा कि ऐसे ही नाइंथ और टेंथ की बुक्स पढ़ लेगा और कहने लगा कि और पढ़ाओ.

जब स्टूडेंट्स को लगा पढ़ाने
ओमकार की मानें तो एक दिन वह हाईस्कूल के स्टूडेंट्स को घर पर ही कोचिंग दे रहे थे। इस बीच दिनेश भी बैठकर पढ़ता और स्टूडेंट्स से जल्दी आंसर दे देता। उसने मुझसे पूछ-पूछ कर पूरी मैथ्स
, फिजिक्स और केमेस्ट्री पढ़ डाली। एक दिन मैं क्लास में मौजूद नहीं था तो बाद में पता चला कि दिनेश ने ही क्लास ले ली। स्टूडेंट्स से पूछने पर पता चला कि उसने मुझसे बेहतर तरीके से कॉन्सेप्ट क्लीयर किए। इसके बाद उसने इंटर और अब आईआईटी कॉम्पिटिशन के लिए बच्चों को पढ़ाने लगा.

छोटे गुरुजी हैं तो क्या हुआ
हम दिनेश से मिलने मुट्टीगंज स्थित उसके किराए के मकान में पहुंचे तो देखा तो यकीन नहीं हुआ। करीब
20 से ज्यादा स्टूडेंट्स को दिनेश एक छोटे से कमरे में आईआईटी टारगेट बैच की क्लास ले रहा था। दिनेश से पूछने पर पता चला कि उसने आईआईटी कॉम्पिटिशन के लिए बुक्स से पढ़कर तैयारी की। दिनेश का कहना है कि क्वेश्चंस को पढऩे के बाद उसे समझता है कि आखिर यह कैसे सॉल्व हुआ? क्या ट्रिक लगी? और कैसे इसे सॉल्व किया जा सकता था। इसके बाद इस कॉन्सेप्ट के जरिए स्टूडेंट्स को पढ़ाता हंू। स्टूडेंट्स से बात करने पर उन्होंने कहा कि गुरु जी भले ही उम्र में छोटे हों लेकिन उनका कॉन्सेप्ट क्लीयर है। दूसरी जगह भी जाकर कोचिंग की लेकिन जैसा दिनेश सर पढ़ाते हैं वैसा कॉन्सेप्ट किसी और के पास नहीं है। इस समय दिनेश छह बैच चला रहा है जिसमें करीब दो सौ बच्चे पढ़ रहे हैं.

कैचिंग पॉवर है खास
दिनेश ने बताया कि वह जो कुछ भी पढ़ता या फिर सुनता है
, उसे याद हो जाता है। स्कूल केवल इसलिए नहीं गया कि वह सीधे इंटर का ही एग्जाम देना चाहता है। दिनेश सीबीएसई, आईएसई और यूपी बोर्ड के स्टूडेंट्स की भी क्लास लेता है। इंग्लिश मीडियम के पैटर्न को भी वह इंग्लिश लैंग्वेज में ही ट्रीट करता है। दिनेश ने बताया कि उसे पता नहीं ये सब कैसे याद हो जाता है लेकिन उसकी कैचिंग पॉवर अच्छी है। एक बार पढऩे के बाद उसे दुबारा पढऩे की जरूरत नहीं होती है। दिनेश ने पांच हजार से भी ज्यादा फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ्स के फॉर्मूले रटे हुए हैं.

सत्यम है आइडियल
बिहार के आरा के रहने वाले सत्यम दिनेश के आइडियल हैं।
12 साल के सत्यम ने इसी साल आईआईटी क्वालीफाई किया। इतनी कम उम्र में आईआईटी क्वालीफाई करने वाले सत्यम को देखकर दिनेश को इंस्प्रेशन मिली। दिनेश का कहना है कि आईआईटी टॉप कर इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल सर्विसेज ज्वाइन कर साइंटिस्ट बनना चाहता है। वह खुद दूसरों के लिए आइडियल बनना चाहता है।

'लास्ट ईयर दिनेश को देखकर मैंने उसका गृह शिक्षा के आधार पर आठवीं में एडमिशन लिया। वह सामान्य स्टूडेंट नहीं है। उसकी कैचिंग पॉवर सामान्य स्टूडेंट्स से काफी तेज है। वह तो इंटर तक के सवालों को सॉल्व कर देता है। मैंने खुद उसकी जांच की है। कोशिश कर रहा हूं कि बोर्ड से बात कर स्कूल से इंटरमीडिएट एग्जाम देने के लिए परमिशन दिलाऊं.'
-दयाराम पाल, प्रिंसिपल, माधव ज्ञान केंद्र स्कूल


Report by, Anurag Shukla

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