प्रयागराज (ब्यूरो)।अपराधियों पर लगाम कसने के उद्देश्य से शहर में लगाए गए सीसीटीवी कैमरे उद्देश्य और मंशा की पूर्ति से काफी दूर हैं। इस व्यवस्था पर सरकार के खजाने से खर्च हुए करोड़ों रुपये का इंवेस्टमेंट अब पब्लिक का चालान करने में ही काम आ रहा है। वैसे आज तक ऐसा नहीं हुआ कि इस कैमरे की मदद से किसी घटना स्थल पहुंच कर पुलिस अपराधी को दबोच ली हो। घटना के बाद पुलिस तभी पहुंची है जब पब्लिक के द्वारा कॉल किया गया या फिर सोशल मीडिया पर वारदात की कोई तस्वीर या वीडियो वायरल हुई। अब लोगों में जगह-जगह लगाए गए इन कैमरों की सार्थकता पर सवाल उठने लगे हैं। इन कैमरों व लगह-जगह लगाए गए आनलाइन चालान सिस्टम सिर्फ आम लोगों को ही डराने के सिवाय किसी काम में नहीं आ रहे।

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सीसीटीवी कैमरे शहर भर में लगे हैं
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चौराहों पर लगी है सिग्नल लाइट
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सीसीटीवी कैमरे में जूमिंग की क्षमता
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चौराहों पर ऑनलाइन चालान व्यवस्था
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चौराहों पर हो रहा ऑनलाइन चालान

कैमरों को भी गच्चा दे रहे अपराधी
स्मार्ट सिटी के तहत शहर को चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे बिछा दिए गए हैं। इससे जिले को कंट्रोल करने व सुरक्षा देने के लिए आई ट्रिपलसी बिल्डिंग में वेशकीमती कम्प्यूटर आदि लगाए गए हैं। इन कैमरों को लगाने के पीछे सरकार की मंशा थी कि सुरक्षा व्यवस्था काफी मजबूत हो जाएगी। हर पल चौराहों और सड़कें पुलिस व अफसरों के नजर में होंगे। फिर जाम हो या घटना बगैर किसी के द्वारा सूचना देने से पहले पुलिस खुद मौके पर मदद के लिए पहुंच जाएगी। मगर यह कैमरे सरकार व पब्लिक की मंशा पर खरे नहीं उतर रहे। बहुत पुरानी या ज्यादा नहीं, हाल में 24 फरवरी को हुई उमेश पाल की हत्या को ही बतौर उदाहरण देखा जा सकता है। यदि घटना स्थल सुलेमसराय जयंतीपुर में दुकानों के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज वायरल नहीं हुए होते तो शायद आज भी पुलिस शूटरों की पहचान को लेकर हलकान हो रही होती। घटना के वक्त सारे आरोपित जिले में ही थे। वारदात को अंजाम देने के बाद सभी बाई रोड ही भागे। बावजूद किसी किसी भी कैमरे से यह पता नहीं चल पा रहा कि आखिर पांच लाख का इनामी गुड्डू मुस्लिम व साबिर और 50 हजार रुपये की इनामी शाइस्ता परवीन किस रास्ते से जिला छोड़कर भाग निकली। पिछले दिनों शहर के लूट व छिनैती की कई घटनाएं हुई थीं। इन घटनाओं के खुलासे में भी यह कैमरे सिर्फ हाथी दांव ही साबित हो रहे हैं।


सिर्फ चालान के लिए ही कैमरे हैं क्या?
शहर में लगाए गए कैमरों व 19 चौराहों पर आनलाइन चालान सिस्टम केवल पब्लिक को डराने के लिए ही हैं? इनका डर दबंगों व अपराधियों में तनिक भी नहीं दिखाई दे रहा। इन आटोमेटिक कैमरे से गाडिय़ों के चालान भी जिनके हो रहे उसके मैसेज तमाम लोगों के पास मोबाइल पर एक से डेढ़ महीने के बाद पहुंच रहे हैं। जानकारी के अभाव में लोग समय से चालान का जुर्माना जमा नहीं कर पाते। नतीजा कागजात विभाग कोर्ट भेज देता है। लोग कहते हैं कि कोर्ट जाने पर 500 के चालान के लिए 500 रुपये वकील को फीस देने पड़ते हैं। इस तरह यह चालान उन्हें महंगा पड़ जाता है। आनलाइन चालान का मैसेज देर से क्यों पहुंच रहा है? इसका कोई संतोष जनक जवाब अफसरों के पास नहीं है।


वर्चुअल कोर्ट में खुद ऐसे करें पैरवी
ट्रैफिक पुलिस विभाग के एक्सपर्ट बताते हैं कि चालान होने के तीन दिन बाद कागज कोर्ट भेज दिए जाते हैं।
इसके पहले कोई चालान जमा कर दिया तो ठीक नहीं उसे कोर्ट जाना पड़ता है। बताते हैं कि ज्यादातर चालान के कागज सबसे पहले वर्चुअल कोर्ट जाते हैं।
पब्लिक इस कोर्ट में अपनी पैरवी खुद कर सकती है। इसके लिए जिसकी गाड़ी है वह आरसी और कागज लेकर मोबाइल या कम्प्यूटर पर बैठ जाए।
इसके बाद वर्चुअल कोर्ट को सर्च करें। साइट खुल जाए तो उसमें डिपार्टमेंट के आप्शन आते हैं। इसमें उत्तर प्रदेश ट्रैफिक डिपार्टमेंट पर क्लिक करें।
फिर चार आप्शन स्क्रीन पर होंगे। इसमें चालान नंबर या गाड़ी नंबर फिल कर दें। यदि रजिस्ट्रेशन में मोबाइल नंबर नहीं है तो उसे भी लिख दें।
इसे बाद एक ओटीपी मोबाइल पर आएगा। इसे वेरीफाई करके ओके या सेंड कर दें। इसके बाद सात दिनों तक इंतजार करें।
इसके बाद कोर्ट से मोबाइल पर मैसेज आएगा आप निर्धारित चालान राशि जमा कर दें।
यदि कागज सीजेएम कोर्ट पहुंच गया है तो आप को अधिवक्ता के माध्यम से ही पैरवी करनी पड़ेगी।

आनलाइन चालान प्रॉपर हो रहे हैं। लोगों के पास मैसेज कभी कभी सर्वर में दिक्कत आने या स्लो होने पर देर से पहुंचते हैं। मैसेज भेजने का काम जिले में विभाग से नहीं होता। यह सब आटोमेटिक प्रक्रिया है। कैमरों से लगने वाले की जानकारी पर अक्सर फोर्स बगैर पब्लिक से सूचना मिले भेजी जाती।
सीता राम
डीसीपी ट्रैफिक