इमामबाड़ो में सजाए गए अलम, ताबूत व ताजिया

सोमवार से शुरू हुआ मजलिस, मातम का दौर

माहे मोहर्रम के चांॅद की तसदीक के साथ नवासा-ए रसूल व 71 शोहदा-ए-कर्बला की याद मनाने का सिलसिला शुरू हो गया। घरों व इमाम बारगाहों में अलम नसब कर मजलिसे बरपा होने लगी। रानी मण्डी, दरियाबाद, करैली, बख्शी बाजार, दायरा शाह अजमल सहित विभिन्न जगहों पर अलम, ताबूत, ताजिया, सजा कर गमगीन माहौल में मजलिस, मातम व नौहा पढ़ा गया। प्रात: नमाज के बाद से शुरू हुआ मजलिस का सिलसिला देर रात तक जारी रहा घरों में महिलाओं की मजलिस भी हुई।

महिलाओं ने तोड़ी सुगाह की चूडि़यां

सुहाग की चुडि़या तोड़कर और काले लिबास पहन कर हजरत इमाम हुसैन और 71 जॉनिसारों की कुरबानी पर महिलाओं ने जम कर नौहा और मातम का नज़राना पेश किया। अन्जुमन गुन्चा-ए-कासिमया के प्रवक्ता सै। मो। अस्गरी ने बताया की चक स्थित इमामबाड़ा डिप्टी जाहिद हुसैन में दस दिवसीय मजलिस के प्रथम दिन मौलाना रज़ी हैदर साहब ने करबला के शहीदों को याद करते हुए ग़मगीन मसाएब पढ़े। सैय्यद मियॉं के इमामबाड़े पर आयोजित मजलिस को मौलाना रज़ा अब्बास ने खिताब किया। पान दरिबा स्थित इमामबाड़ा मिर्जा सफदर बेग में 1836 से शुरू कि गई अज़ादारी का सिलसिला भी माहे मोहर्रम की पहली तारीख से शुरू हो गया। अन्जुमन गुन्चा-ए-कासिमया ने दायराशाह अजमल स्थित नवाब अब्बन शाहब के अज़ाखाने पर नौहा और मातम का नजराना पेश किया।

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दरगाह हजरत फिरोजअली उर्फ सन्दल शाह बाबा रहमत उल्ला अलैह के सालाना उर्फ के तीन दिवसीय आयोजन के तहत सोमवार को सुबह से ही जायरीनो का आना-जाना लगा रहा। खास बात यह थी कि इसमें मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में हिन्दू भी शामिल थे। मुतवल्ली जमील अहमद ने बताया कि एडिशनल सिटी मजिस्ट्रेट प्रथम द्वारा उर्स के लिए दो जार्न लगाकर उर्फ सम्पन्न कराने की परमिशन दिये जाने के बाद भी उद्वान अधीक्षक व चौकी इंचार्ज ने न तो हार्न लगाने दिया और न ही कव्वाली के साथ चादर चढ़ाने दिया। इससे जायरीनो में रोष दिखा। यहां पहुंचने वालों में कन्हई लाल, अबरार अहमद, एखलाख हुसैन आदि प्रमुख थे।