जीएसटी एक साल : क्या खोया, क्या पाया
फैक्ट फाइल
36 से 42 प्रतिशत तक टैक्स जीएसटी से पहले एफएमसीजी प्रोडक्ट पर पहले लगता था।
42 से 28 प्रतिशत पर सिमटा जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स का अधिकतम दायरा।
-टैक्स कम हुआ लेकिन एफएमसीजी कंपनियों ने प्रोडक्ट का रेट कम नहीं किया।
-कुछ कंपनियों ने तो वजन कम कर दिया और रेट भी वही रखा।
-100 ग्राम पैकेट वाला बिस्किट पहले जिस रेट में बिकता था, आज भी उसी रेट में बिक रहा है।
-प्राइवेट कंपनियों ने कर दिया खेल, टैक्स कम होने के बाद भी नहीं घटाया रेट
ALLAHABAD: एक जुलाई 2017 को पूरे देश में जीएसटी लागू हुआ, जो 30 जून को इसे लागू हुए एक साल पूरे हो गए। एक वर्ष पूरा करने जा रहा है। इस एक वर्ष में जीएसटी का विभिन्न ट्रेड के व्यापार पर क्या असर पड़ा? व्यापारियों और पब्लिक पर टैक्स का बोझ कम हुआ या अधिक हुआ। इस पर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट आज से कर रहा है एनालिसिस रिपोर्ट
कंपनियों ने कर दिया खेल
वैट में जिन सामानों पर 12 प्रतिशत तक टैक्स लगता था, जीएसटी में वे पांच प्रतिशत तक के दायरे में आ गई हैं। टैक्स का दायरा कम होने के बाद एफएमसीजी प्रोडक्ट का दाम कम होना चाहिए था, लेकिन यहां दुकानदारों ने नहीं बल्कि कंपनियों ने खेल किया। शुरुआत में तो थोड़ा असर दिखाई दिया। लेकिन बाद में कंपनियों ने रॉ मैटेरियल महंगा बताते हुए व अन्य कारण दिखाते हुए रेट में कोई बदलाव नहीं किया। यानी जीएसटी लागू होने और टैक्स कम होने के बाद भी सामान सस्ता नहीं हुआ।
30 प्रतिशत कम हुआ एनुअल टर्न ओवर
कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र गोयल ने बताया कि इलाहाबाद में एफएमसीजी प्रोडक्ट का एनुअल टर्नओवर 700 से 800 करोड़ के करीब है। इसमें इस साल 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि इस गिरावट का कारण जीएसटी नहीं बल्कि नोटबंदी, ऑनलाइन बिजनेस, शहर में चारों तरफ हो रहा तोड़फोड़ और महंगाई है।
आम खाद्य सामग्री पर असर
चावल, गेहूं, सब्जियां, दूध, आदि जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। वहीं शहरी उपभोक्ताओं के लिये पैक्ड और फ्रोजन आइटम्स जैसे पनीर, मटर आदि 5 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में रखी गई हैं। यह दर वैट में निर्धारित 4 प्रतिशत के लगभग करीब है। लेकिन ड्राई फ्रूट्स, चीज, मक्खन, घी, आदि के दामों में इजाफा हुआ है। इन सभी सामानों को 12 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में रखा गया है। जबकि पहले इन पर 5 प्रतिशत तक टैक्स था।
क्या कहते हैं एफएमसीजी के व्यापारी
कंसोलिडेटेड ई-वे बिल की व्यवस्था को समाप्त किया जाना चाहिए। कर की दरों को पांच के बजाय तीन प्रतिशत किया जाना चाहिए। एक पेज के आसान रिटर्न की व्यवस्था होनी चाहिए।
-अजय गुप्ता
पारले सी एंड एफ
हर गाड़ी के साथ ई-वे बिल लगाना मुश्किल हो जाता है। हमारे माल पर 28 प्रतिशत टैक्स और 12 प्रतिशत सेस दर कम होनी चाहिए। पानी पर भी टैक्स ज्यादा है। शुरू में जीएसटी को समझने में दिक्कत थी, अब नहीं है।
-आशुतोष गोयल
कोल्ड्र डिंक
डिस्ट्रीब्यूटर
ई-वे बिल की धारा 137 जो अभी स्थगित है, इसे पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। एफएमसीजी प्रोडक्ट के अंदर ई-वे बिल जिले के बाहर माल बेचने पर लागू होनी चाहिए। जिले के अंदर इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
-अजय अग्रवाल
घी-तेल अन्य खाद्य
पदार्थो के वितरक
सरकार ने आम आदमी के खाने की वस्तु बिस्किट जैसी चीज को भी 18 परसेंट में रखा है। इसे पांच परसेंट में लाया जाना चाहिए। शुरू में जीएसटी का रिटर्न फाइल करने में समस्या आ रही थी, अब यह आसान भी हो गया है और सरल भी।
-राजेश अग्रवाल
सुपर स्टॉकिस्ट
अनमोल बिस्किट
जीएसटी के बाद से चॉकलेट, कॉफी, मैगी पहले 28 परसेंट के दायरे में थे। इसे अब सरकार ने 18 परसेंट में कर दिया है। लेकिन ये रेट अभी भी ज्यादा है। छोटे व्यापारियों के लिए मैनुअल व्यवस्था भी करनी चाहिए।
-राजेश गोस्वामी
वितरक नेस्ले इंडिया
जीएसटी लागू होने के बाद बाजार में कई छोटी कंपनियां आ गई हैं, जिन्हें जानकारी ना होने पर वह अपने उत्पाद पर गलत टैक्स लगा रहे हैं। इसका खामियाजा ब्रांडेड कंपनियों को भुगतना पड़ रहा है।
-दिनेश केसरवानी
वितरक- मसाला