प्रयागराज (ब्‍यूरो)। स्कूलों में एडमिशन हो चुके हैं और अब किताबें और ड्रेस खरीदने का समय है। यही कारण है कि स्टेशनरी और रेडीमेड कपड़ों की दुकानों पर लगातार भीड़ बढ़ रही है। इसमें सबसे ज्यादा परेशान पैरेंट्स हैं, क्योंकि स्कूल वालों ने बुक से लेकर ड्रेस सेलर्स तक सेट कर रखे हैं। उनकी मानमानी के आगे किसी का बस नहीं है। हर साल किताबों और ड्रेस के दाम बढ़ रहे हैं।

कहीं और से खरीदना उलाऊ नहीं
इस साल फिर स्कूलों ने वही फंडा अपनाया है। प्रत्येक स्कूल ने किताबों और डे्रस की बिक्री के लिए दुकान सेट कर रखी है। कहीं और यह सामान नही मिलेंगे। इसके आगे पैरेंट्स बेबस नजर आते हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने बुधवार को इस मामले में रियलिटी चेक किया। वहां मौजूद तमाम पैरेंट्स और दुकानदार बोलने से कतराते रहे। फिर भी दबी जुबान में उन्होंने अपनी आपबीती बताई। उनका कहना था कि इस बार भी किताबों का दाम बढ़ गया और कुछ किताबे बदल भी गई हैं।

सीन नंबर वन
नवाब युसुफ रोड स्थित इलाहाबाद बुक सेलर शॉप में पैरंंट्स आनंद मिश्रा मिले। पूछने पर उन्होंने बतायाकि सेंट मेरीज कांवेंट में उनका बच्चा कक्षा 11 और बेटी कक्षा 7 में पढ़ती है। दोनों क्लासेज में चार से पांच किताबें बदल दी गई हैं। इनको नया खरीदना पड़ेगा। बताया कि पिछले साल तक दोनेां की किताबें 11 हजार रुपए तक आ जाती थीं लेकिन इस बार यह 13 हजार रुपए के बजट में आ रही हैं।

सीन नंबर दो
भार्गवाज बुक डिपो सेंट जोसफ कॉलेज के नजदीक स्थित है। यहां पर किताबें लेने आए झूंसी के सतेंद्र सिंह ने बताया कि उनकी बेटी एसएमसी में कक्षा दो पढ़ती है और वहां से कहा गया हे कि बच्चे की ड्रेस सिविल लाइंस की एक रेडीमेड शॉप से लेना है। और कही ड्रेस नही मिलेगी। बोले किताबों की कीमत भी 15 फीसदी तक इस साल बढ़ गई हैं।

सीन नंबर तीन
बीएचएस के सामने स्थित बुक मार्ट में ब्वाययज हाईस्कूल और होली ट्रिनिटी स्कूल की किताबें मिलती हैं। यहां पर मौजूद ग्राहकों ने नाम नही छापने की शर्त पर बताया कि नर्सरी के बच्चों की किताबों में इस बाद बदलाव किया है और यह नई खरीदनी पड़ेंगी। उनका कहना था कि हर साल किताबों का रेट बढ़ जाता है। जबकि शॉप कीपर का कहना था कि इसबार किताबों का रेट नही बढ़ा है।

किस तरह से हल्की होती है जेब
पैरेंट््स ने बातचीत में बताया कि स्कूलों के हर साल पैसे लेने के अलग अलग तरीके होते हैं। एक या दो साल के अंतर में ड्रेसेज में कोई न कोई बदलाव कर दिया जाता है। जिससे पुन: पैरेंट्स को ड्रेस खरीदनी पड़ती है। इसी तरह से किताबों के चैप्टर या ऑथर में बदलाव कर दिया जाता है। ऐसा करने से बच्चे अपने सीनियर्स की पुरानी किताबें यूज नही कर पाते हैं। हर साल किताबों का दाम भी पब्लिशर द्वारा बढ़ा दिया जाता है।