इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सीनेट हॉल में नेशनल सेमिनार

ALLAHABAD: हमारी मातृभाषा हमारे लिए सहज होती है। हम मातृभाषा से जितना अपनी बात प्रभावी ढंग से कर सकते हैं, उतना किसी और भाषा से संभव नहीं है। कोशिश करना चाहिए कि हमारी विधियां एवं न्याय पद्धति राष्ट्रभाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं पर अधिकाधिक आधारित हों। यह बातें जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कही। वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सीनेट हॉल में सैटरडे को लॉ डिपार्टमेंट द्वारा आर्गनाइज विधि एवं न्याय के क्षेत्र में भारतीय भाषाएं विषयक नेशनल सेमिनार में चीफ गेस्ट के रूप में बोल रही थीं।

अन्य भारतीय भाषाओं पर भी दें जोर

अध्यक्षता कर रहे वीसी प्रो। रतनलाल हांगलू ने कहा कि दुनिया के छोटे बड़े कई देशों ने मातृभाषा में विधि व न्याय की व्यवस्था लागू करके प्रगति की है। जरूरत है कि अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलगू, बांग्ला, कन्नड़, मलयाली जैसी लैंग्वेजेस का प्रयोग किया जाए। जिससे सामान्य नागरिक भी अपनी पैरवी कर सके। अशोक मेहता व एन। नागरेश ने न्यायालयों में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का प्रयोग बढ़ाने पर जोर दिया। एचओडी प्रो। आरके चौबे ने स्वागत किया। संयोजन अरुण भारद्वाज ने किया। अतुल कोठारी ने विषय प्रवर्तन किया।