आज भी याद है पापा ने पहली साइकिल लाकर दी थी। उस समय दोस्तों के बीच साइकिल होना बड़ी बात मानी जाती थी। मेरे पास आई तो लगा इससे बेहतर तोहफा कोई हो ही नहीं सकता। सुबह से शाम तक केवल साइकिल के साथ समय बीतता था। मोहल्ले की सड़कों और बगल के मैदान में साइकिल चलाते घंटों बीत जाते थे। आजकल ऐसा काफी कम देखने को मिलता है। बच्चे साइकिल को पसंद नहीं करते। बचपन में ही माता-पिता उन्हें बाइक या स्कूटी खरीदकर दे देते हैं। इसे स्टेटस सिंबल माने या समय की मांग। लेकिन, सच तो ये है कि बच्चों की सेहत के लिए यह सही नहीं है। साथ ही पर्यावरण को भी अधिकतर वाहनों की मौजूदगी से नुकसान पहुंचता है। हमारे समय में इंटर तक साइकिल का ही सहारा होता था। कभी-कभी तो कॉलेज भी साइकिल से जाना पड़ता था। लेकिन, इसमें कोई शर्म या संकोच नहीं होता था। मेरी सभी पैरेंट्स से गुजारिश है कि वे बच्चों में साइकिल चलाने की आदत डालें। यह उनकी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। इससे उनकी स्टेमिना बढ़ती और बॉडी भी दुरुस्त रहती है। रोज एक से दो घंटे साइकिल चलाने से शरीर मजबूत होगा और रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होगा। मुझे तो आज भी मौका मिल जाए तो साइकिल पर हाथ साफ कर लूंगा। लेकिन, यह देखकर काफी दुख होता है कि आज के युवा साइकिल चलाने में शर्म महसूस करते हैं। उन्हें साइकिलिंग के फायदे नहीं पता हैं। आज भी हम अगर फिट हैं तो यह साइकिल की ही देन है। अभी भी देर नहीं हुई है। बच्चे ही नहीं बल्कि बड़ों से भी अपील है कि साइकिलिंग जरूर करें। अगर हम पहल करेंगे तो दूसरे भी हमारा अनुसरण करेंगे। इससे समाज को बेहतर संदेश मिलेगा।

-परमजीत सिंह, महासचिव, इलाहाबाद केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन