प्रयागराज (ब्‍यूरो)। माह-ए-रमजान अन्तिम दौर में है। शुक्रवार को अलविदा जुमा के बाद ईद की चर्चा होने लगी है। प्रयागराज की सेवाईयो की चर्चा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। प्रयागराज नकाश कोना मे सेवई मंडी थोक सेवईयो के लिए मशहूर है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्थान का नाम ही सेवई मंडी के नाम से प्रसिद्ध है। शहर के चौक, घंटाघर, कटरा, नूरुल्ला रोड आदि जगहों पर भी सेवईयां मिल रही है। जिसमे सेवई दूध, तशमई, किमामी, शीर खुरमा, शरबती सेवई, सूखी सेवई, नवाबी सेवई, सूत फेनी शामिल है। इसके अलावा घी से बने और रिफाइन तेल से बने सेवई भी बाजार में काफी मात्रा में उपलब्ध है।

एमपी, राजस्थान में भी सप्लाई
प्रयागराज की सेवई मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि जगहों पर जाती हैं, वहीं दिलीप सेवई 100 व 500 ग्राम के पैकेट में देश के साथ विदेशों में भी जाता है। ईद पर पकवानों के सेवन की अलग रवायत/मान्यता है। कि ईद के दिन सेवई का सेवन इसलिए किया जाता है कि ये आपसी तालमेल एवं रिश्ते मे मिठास भरता है। सबसे ज्यादा किमामी सेवई मशहूर हैं। जो सभी घरों मे बनती है।

फातिमा की सुन्नत (परम्परा) है, सेंवई
मान्यता के अनुसार ईद के दिन सभी सहाबा के घरों मे तरह-तरह के मिष्ठान बने थे, लेकिन अली रजियाल्लाहो ताला के यहां उस दिन कुछ न होने कारण आपने कहा कि ईद पर लोग मिलने आयेंगे, उनको क्या मिष्ठान खिलाकर खुशियां मनायेंगे। तब उनकी बीबी, फातिमा जहरा रजियाल्लाहो ताला (पैगम्बरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब की साहबजादी) जो रोटी बनाने के बाद अन्त में प्रतिदिन हथेली एवं उंगलियों को आपस में रगड़के (परथन) जो आटा छुड़ाती एक मिट्टी के बर्तन में रखती जाती थीं, जिसका आकार पतला सेवईयों जैसा था। यह घर में पर्याप्त मात्रा मे इक_ा हो चुका था। आपने ईद के दिन उसको उबाल कर पका दिया। जिसने एक नये डिश का रुप ले लिया। जो-जो फातिमा के घर आते गये-खाते गये और जाकर हजरत मुहम्मद से बताते गये। हजरत मुहम्मद साहब ने भी खाया और जायके का तारीफ किया, तो उनके मानने वालों ने उसी डिश को प्रत्येक ईद पर बनाना शुरू कर दिया जिसका नाम सेवई हैं। इसलिए सेवईयों के जायके के बगैर ईद अधूरी है क्योंकि सेवईयां जहरा फातिमा की सुन्नत है।

सेवईयों से फायदा
सेवईयां चावल या मैदा से बनी होती हैं। इसमें प्रोटीन, पोटैशियम, विटामिन्स, एंटी- आक्सीडेंट पोषक तत्व रिच क्वांटिटी में पाये जाते हैं। इसलिए सेवइयों को रेग्युलर डाइट में शामिल करने को लाभदायक माना जाता है।

भारत मे सेवई एवं उपयोग
द मुगल: रेसिपीज फ्र ाम द किचन आफ शाहजहां पुस्तक की लेखिका सलमा युसूफ हुसैन के अनुसार उतरी भारत में सबसे पहले नूडल - सेवईयां, सेवई के रुप मे रेशम मार्ग पर फारस और अरब के साथ व्यापार के माध्यम से आई। भारत में सेवई का सबसे पहले उपयोग लालकिले के एक शाही दावत में किया गया था। इतिहासकार राना सफवी की किताब के अनुसार सबसे पहले बहादुर शाह जफर की थाली में मीठी सेवई परोसी गई थी। पहले सेवईयों को उंगलियों से तैयार किया जाता था। उस वक्त सेवई को जर्वे के नाम से जाना जाता था।