बरेली (ब्यूरो)। एसआरएस महिला महाविद्यालय की लाइब्रेरी में कहने को तो 55 हजार किताबें रखी हुई हैैं, इनमें अधिकांश अब स्टूडेंट्स के काम नहीं आ रही हैं। इससे यह बुक्स लाइबे्ररी की अलमारियों से कभी बाहर ही निकलती हैं। लाइब्रेरी की बुक्स का डिजिटल कैटलॉग नहीं बन पाने से भी यहां स्टूडेंट्स अपनी मतलब की बुक्स को खोज ही नहीं पाते हैं। कॉलेज को तीन साल पहले इसके लिए ग्रांट भी मिली थी, पर बुक्स के डिजिटलाइजेशन का काम अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है। स्टूडेंट्स का कहना है कि लाइब्रेरी में बुक्स का तो ढेर है, पर इनका उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।

2021 से चल रहा है काम
लाइब्रेरी में बुक्स का डिजिटल कैटलॉग तैयार करने का काम वर्ष 2021 से शुरू हो चुका था। यहां 55 हजार बुक्स हैं और इनके डिजिटलाइजेशन में अब तक 1042 दिन हो बीत चुके हैं। अगर लाइब्रेरी में हर दिन 55 बुक्स को भी डिजिटल कैटलॉग किया जाता तो अब तक यह काम पूरा हो चुका होता। स्टूडेंट्स का कहना है कि लाइब्रेरी में अगर सभी बुक्स का डिजिटल कैटलॉग तैयार हो चुका होता तो, उन्हें अपनी मतलब की बुक्स को खोजने में मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

कितनी है बुक्स
महाविद्यालय की साइट के अनुसार लाइब्रेरी मेें 40 हजार मेें टेक्स्ट बुक्स हैैं। शेष में कुछ रिफ्रैंसेस, मैैगजीनन्स, जर्नल्स आदि है। स्टूडेंट्स का कहना है कि लाइब्रेरी में नई बुक्स का स्टॉक होना चाहिए। अब कई सब्जेक्ट्स में बदलाव हो चुका है तो कई नए कोर्सेस शुरू हो गए हैं। कई बुक्स में पहले की अपेक्षा चेप्टर बढ़ भी गए हैं और बदल भी गए हैं। इससे लाइब्रेरी की पुरानी बुक्स अब बहुत ज्यादा मतलब की नहीं हैं।

ताले में बंद कई बुक्स
महाविद्यालय की लाइब्रेरी में कई सारी बुक्स है, लेकिन आधी से ज्यादा बुक्स ताले में बंद पड़ी हुई है। यह बुक्स लंबे समय से अलमारी से बाहर निकली ही नहीं। कॉलेज के जिम्मेदार भी यह मानते हैं कि लाइब्रेरी में पुरानी बुक्स हैं। स्टूडेंट् कभी इन बुक्स की डिमांड ही नहीं करता है।

लाइब्रेरी में स्टाफ भी कम
लाइब्रेरी की बदहाली के पीछे यहां स्टाफ की कमी भी एक बड़ा कारण है। जानकारी के मुताबिक लाइब्रेरी में लंबे समय से किसी नए स्टाफ की नियुक्ति ही नहीं हुई है। यहां सात वैकेंसीज की रिक्वायरमेंट है, लेकिन पूरी लाइब्रेरी का दारोमदार तीन स्टाफ के सहारे है। कॉलेज में स्टूडेंट्स की बड़ी संख्या है, लेकिन लाइब्रेरी मेें स्टाफ की भारी कमी है।

2001 से लाइब्रेरियन ही नहीं
कॉलेज की लाइब्रेरी की स्थिति कैसी है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि यहां 21 साल से लाइबे्रेरियन ही नहीं है। कॉलेज में वर्ष 2001 से लाइब्रेरियन ही नहीं है। इतने सालों से यहां लाइब्रेरियन की नियुक्ति ही नहीं हो सकी है। स्टूडेंट्स का कहना है की कई बार तो लाइब्रेरी में बुक्स होती ही नहीं हैैं।

यूजीसी से भी नहीं मिली ग्रांट
लाइब्रेरी इंचार्ज तेज सिंह ने बताया कि यूजीसी की ओर से उन्हें लंबे टाइम से कोई भी ग्रांट नहीं मिली है। यूजीसी से लास्ट ग्रांट वर्ष 2018 में मिली थी। लाइब्रेरी की मेंंटेनेंस का खर्च अलग से आता है।

आरामगाह बनी लाइब्रेरी
कॉलेज में लाइब्रेरी स्टूडेंट्स के पढऩे के लिए होती है, साहू रामस्वरूप महिला महाविद्यालय की लाइब्रेरी आरामगाह बनी है। यहां स्टूडेंट्स स्टडी से ज्यादा आराम करने या गॉसिप में ज्यादा समय बिताते हैं। लाइब्रेरी का स्टाफ भी इस ओर ध्यान नहीं देता और कॉलेज प्रशासन भी नहीं।

लाइब्रेरी में पढ़ाई कम ही होती है। मैैं और मेरी फ्रेंड ज्यादातर बाहर ही पढ़ाई कर लेते हैैं। अगर लाइब्रेरी में नई बुक्स हों तो स्टूडेंट्स को इसका लाभ मिलेगा।
रितु सिंह, स्टूडेंट

मुझे तो लाइब्रेरी में पढ़ाई कभी समझ ही नहीं आई। क्योंकि कभी वहां मतलब की बुक्स मिल ही नहीं पाती हैं। अधिकांश बुक्स तो पुरानी ही हैं।
रिद्धि यादव, स्टूडेंट

लाइब्रेरी में बुक्स को ई-बुक्स कर देना चाहिए। कम से कम उसमें सभी बुक्स आसानी से मिल तो जाएंगी। अभी तो बुक्स खोजने पर भी नहीं मिल पाती हैं।
शाहीन, स्टूडेंट

लाइब्रेरी में कई चेंजेज किए जा रहे हैैं। कोशिश की जा रही है कि लाइब्रेरी का डिजिटलाइजेशन किया जाए। जितना स्टाफ है, उसमें काम को जल्द पूरा करने की कोशिश की जाएगी।
तेज सिंह, लाइब्रेरी इंचार्ज