-एक परिवार के करीब पांच सदस्य हैं टीबी से पीडि़त

-कई परिवारों में चर्म रोग और सांस की बीमारी, स्वास्थ्य विभाग भी नहीं देता ध्यान

BAREILLY :

बाकरगंज में कूड़े का पहाड़ आसपास रह रहे परिवारों की जिंदगी के लिए खतरनाक हो गया है। दुर्गध से यहां सांस लेना तो दूभर है ही, लोग कैंसर, दमा और चर्म रोग जैसी गंभीर बीमारियों से पीडि़त हैं, तो कई परिवार के लोग अब तक दम भी तोड़ चुके हैं। इस ओर किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने निवासियों बातचीत की तो उनका दर्द छलक उठा। वहीं नगर आयुक्त का कहना है कि जो लोग कूड़े के ढेर के आसपास घर बना लिये हैं वह अवैध है। उन्हें नोटिस जारी किया गया है। जल्द ही हटाया जाएगा। ऐसे में निगम से कोई उम्मीद करना भी बेमतलब है।

पूरा परिवार को हो गया टीबी: सलीम

बाकरगंज रोड के किनारे कूड़ा के पहाड़ के पास रहने वाले सलीम के परिवार में दो बच्चों और पत्नी हैं। सलीम ने बताया कि वह मांझा बनाने का काम करते थे। कुछ दिन बीमार रहे तो इलाज कराया, लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ। चेकअप कराया तो पता चला कि उन्हें टीबी है। घर में बच्चों और पत्नी शबाना को भी बीमार होने पर चेकअप कराया तो उनमें भी टीबी के शुरुआती लक्षण मिले, जिसके बाद से सलीम ने पत्नी, बच्चों और अपना इलाज शुरू कराया । बीमारी के चलते वह अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे है।

एक घर पांच चर्म रोगी : शमशेर

रोड के पास रहने वाले शमशेर के परिवार से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह मजदूरी करते हैं। उनके परिवार में गुलाबसेन, साबिर, जाकिर, अफसाना और आइवा हैं। जिसमें सभी को चर्म रोग हो गया है। काफी समय से इलाज करा रहे हैं, लेकिन ठीक नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि डॉक्टर से बात की पता चला की गंदगी के कारण बीमारी ठीक नहीं हो रही है।

सभी को हो गया सांस रोग : नन्हें

बाकरगंज निवासी नन्हें के परिवार में अब्दुल रशीद, शबनम, गुलाम हुसैन, निशा और इकरार अहमद हैं। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में एक-एक करके सभी को सांस रोग हो गया। जिससे पूरा परिवार अब इलाज करा रहे हैं। परिवार में बच्चों को भी सांस रोग की समस्या है। जिससे अब बाकरगंज को छोड़ने का मन बन रहा है।

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पूरे शहर का कूड़ा बाकरगंज के डलावघर पर काफी समय से डाला जा रहा है, जिससे यहां के निवासियों को समस्या का सामना करना पड़ता है। कई लोगों के तो पूरा परिवार ही बीमारी से पीडि़त हो गया है।

नदीम शम्सी, समाज सेवी

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करीब चार साल पहले ही बाकरगंज में रहने के लिए आए हैं, लेकिन यहां आकर स्वास्थ्य अधिक खराब रहता है। अब लगता है कि बाकरगंज छोड़ना ही सही रहेगा। यहां पर आकर पता चला कि गंदगी में रहना कितना मुश्किल है।

शरीना