दुबई से बरेली आकर मोहर्रम में दस दिनों की करते हैं मजलिस

सिर्फ मजलिस करने के लिए पूरे परिवार के साथ आते हैं वतन

<दुबई से बरेली आकर मोहर्रम में दस दिनों की करते हैं मजलिस

सिर्फ मजलिस करने के लिए पूरे परिवार के साथ आते हैं वतन

BAREILLYBAREILLY: विदेश में रहकर भी वतन से मोहब्बत और इमाम हुसैन का फर्श बिछाने के लिए वतन की मिट्टी हर वर्ष जौन रिजवी को दुबई से हिंदुस्तान खींच लाती है। वह भले ही दुबई में सेटल हैं, लेकिन जब इमाम हुसैन की मजलिस का एहतेमाम करने की बात आती हैं तो बरेली में फर्शे अजा बिछाते हैं। करीब ख्भ् वर्ष से वह हर साल पूरे परिवार के साथ मजलिस करने के लिए दुबई से आते हैं। हालांकि उन जैसे हजारों अकीदतमंद जिनका घर गांव ही क्यों न हो इमाम हुसैन का फर्श बिछाने के लिए अपने गांव जाते हैं।

चार सौ साल से हो रही अजादारी

जौन रिजवी के खानदान का बरेली से ताल्लुक चार सौ साल पुराना है। तब से उनकी खानदान के लोग इमाम हुसैन पर हुए जुल्म की याद में गम मनाते आ रहे हैं और मजलिस का एहतेमाम करते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ बेवतन हो गए थे। उन्हें करबला में शहीद किया गया। शायद यही वजह है उनका हर चाहने वाला अपने वतन में ही उनकी मजलिस करता है। लोग चाहे जहां भी होते हैं। मोहर्रम पर घर जरूर आते हैं। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि मैं अपने परिवार के साथ हर वर्ष मोहर्रम में रामपुर स्थित करबला में मजलिस का ऐहतमाम करता हूं। इससे वतन के लोगों से जुड़ाव भी हो जाता है।

टेली मेडिसिन का है बिजनेस

जौन रिजवी का दुबई में टेली मेडिसिन का बिजनेस है। वह अपने परिवार के साथ शारजाह में रहते हैं। बेशक, उन्हें बरेली में आने पर दुबई वाला आराम न मिलता हो, लेकिन इसको लेकर उनके माथे पर जरा भी शिकन नहीं दिखी। बल्कि फर्क से कहा कि इमाम हुसैन का गम तो पूरी दुनिया में मनाया जाता है। हर कोई अपने तरीके से उनका मातम करता है लेकिन अपने वतन में फर्श बिछाने पर एक अजीब सा सुकून मिलता है। चाहे उसके लिए कितनी भी तकलीफ सहनी पड़े उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दो महीना आठ दिनों तक चलने वाले मजलिस और मातम के दौर में वह इतना वक्त हर वर्ष जरूर निकाल लेते हैं कि मजलिस का आयोजन कर सकें।

मोहब्बत का पैगाम देता है इस्लाम

जौन रिजवी की ओर से आयोजित होने वाली रामपुर रोड स्थित करबला में दस दिनों की पहली मजलिस दिल्ली के मौलाना हसन कुमैली ने खेताब की। इससे पहले वह मजलिस को यूरोप में खेताब कर रहे थे। मजलिस में उन्होंने कहा कि इस्लाम मोहब्बत का पैगाम देता है। इसमें जुल्म की कोई जगह नहीं है। मजलिस के बाद अंजुमन ने नौहाख्वानी और सीनाजनी हुई और फिर तबर्रुक तक्सीम किया गया।