सूरत बदलनी चाहिए
बरेली में अब तक ऐसा कोई एकेडेमिक डिस्कशन नहीं हुआ। आई नेक्स्ट ने अच्छा मुद्दा उठाया है। पेरेंट्स के मुद्दों को सुलझाने के लिए जल्द ही प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी कमेटी की बैठक बुलाई जाएगी। स्कूलों की फीस तीन साल में ही बढ़ाई जानी चाहिए। स्कूलों के संबंध में आने वाले शासनादेश ऐसे डिस्कशंस के जरिए पेरेंट्स तक पहुंचते हैं। स्कूल बस या वैन में बच्चों की सुरक्षा के लिए औचक निरीक्षण अभियान चलेगा। पेंरेट्स की समस्याओं को सुनने के लिए प्रिंसिपल को उनसे मिलना चाहिए। वे अपने बच्चे पर खर्च नहीं इनवेस्टमेंट करते हैं। ऐसे में क्वालिटी की डिमांड करते हैं। एनओसी देने में भी मानकों का पालन जरूरी होगा।
-सुभाष चंद्र शर्मा, डीएम

अगर हम स्कूल में स्मार्ट क्लासेज प्रोवाइड कराएंगे तो फीस तो बढ़ानी ही पड़ेगी। स्मार्ट क्लासेज ही क्या अगर स्कू ल में कोई भी फै सिलिटी बढ़ती है तो उसके लिए फीस तो बढ़ाई ही जाएगी। एनसीईआरटी की बुक्स का लेवल सेट नहीं रहता है, इसलिए प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स लगानी पड़ती हैं। बैग्स के बोझ कम करना अच्छी बात है पर सीबीएसई में जितने सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाने हैं उतनी बुक्स और नोटबुक्स तो स्टूडेंट्स को बैग में रखकर लानी ही पड़ेंगी। ट्रांसपोर्ट फै सिलिटी में सिक्योरिटी की प्रॉब्लम्स के लिए पेरेंंट्स को अवेयर रहना चाहिए। अगर वैन में ज्यादा बच्चे लाए जा रहे हैं तो पेरेंट्स अपने बच्चे क उस वैन मे न भेंजे बल्कि कुछ लोग मिलकर एक अलग वैन लगवा लें।
-निर्भय सिंह, एकेडेमिक डायरेक्टर, सेक्रेड हाट्र्स स्कूल

प्राइवेट स्कूल के पेरेंट्स को प्रॉब्लम आती है तो वे कहां जाएं? डीएम की अध्यक्षता में स्कूलों की निगरानी के लिए बनाई गई कमेटी की बैठक तीन साल में एक बार भी नहीं हुई है। बच्चों को स्कूल तक ले जाने वाली वैन में सुरक्षा के मानकों को भी पूरा नहीं किया जाता है। बुक्स और नोट बुक्स का मार्के ट तो पूरी तरह से पेरेंट्स की पॉकेट पर अटैक करने वाला है। एक निश्चित दुकान पर ही निश्चित स्कूल की यूनीफॉर्म और बुक्स मिलती हैं। वहीं स्कूलों को मिलने वाली एनओसी में मानकों को पूरी तरह से दरकिनार ही कर दिया जाता है। इन सब समस्याओं के  संबंध में आई नेक्स्ट का यह राउंड टेबल डिस्कशन बहुत ही अच्छी पहल है। वास्तव में इससे पेरेंट्स को कुछ रिलीफ तो जरूर मिलेगा।
-मो। खालिद जिलानी, कन्वीनर, पेरेंट्स फोरम

हर साल 30-40 परसेंट तक बुक्स चेंज की जाती हैं। यह कोर्स को बच्चों को बेहतर तरीके से समझाने के लिए किया जाता है। अगर कोई स्कूल हर साल एडमिशन फीस लेता है तो पेरेंट्स हमसे इसकी शिकायत करें। बच्चों के ट्रांसपोर्टिंग की जिम्मेदारी स्कूलों की नहीं होती। पेरेंट्स प्राइवेट वैन ही लगाते हैं। वे भी अवेयर रहें। एनसीईआरटी की बुक्स समय से अवेलेबल न हाने से प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स पढ़ाई जाती हैं। बैग्स से निजात के लिए लॉकर्स सिस्टम पॉसिबल नहीं है।
-राजेश अग्रवाल, प्रेसीडेंट, इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन

थैंक्स आई नेक्स्ट आपने हमें हमारी समस्याओं को रखने के मंच दिया है। यहां हम अपनी समस्याएं जिम्मेदार लोगों तक पहुंचा पाए हैं। इस तरह के डिस्कशंस नियमित होते रहने चाहिए। इससे प्रॉब्लम्स काफी हद तक सॉल्व हो पाएंगी।
- सुहेल अहमद, पेरेंट

पेरेंट्स के सामने आए दिन नई-नई समस्याएं खड़ी होती हैं। पर कोई सॉल्यूशन नजर नहीं आता है। कई बार हम स्कूल वालों से कहते हैं पर सैटिस्फैक्ट्री कार्रवाई कम ही हो पाती है। इस तरह के राउंड टेबल डिस्कशंस से हमारे हितों की रक्षा होगी।
- अमरजीत सिंह बेदी, पेरेंट


पेरेंट्स की समस्याओं को इस तरह से किसी ने भी प्रेजेंट नहीं किया जैसा कि आई नेक्स्ट कर रहा है। धीरे-धीरे ही सही, इससे पेरेंट्स को काफी राहत मिलेगी। इस तरह के राउंड टेबल डिस्कशंस से स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन पर भी मनमानी न करने का दबाव बनेगा।
- खालिद नईम, पेरेंट

आई नेक्स्ट के राउंड टेबल डिस्कशन में हमें भी अपनी बात कहने का मौका मिला है। यह अच्छी शुरुआत है। इससे कहीं न कहीं पेरेंट्स के हितों की सुनवाई भी हो सकेगी। अच्छा है कि पेरेंट्स और स्कूल के डायरेक्टर्स से सीधा संवाद हो पा रहा है।
- मो। इदरीश, पेरेंट

अनछुए पहलू
आई नेक्स्ट के राउंड टेबल डिस्कशन के दौरान कुछ मजेदार और अनछुए पहलू सामने आए। इन पहलुओं को एक्पट्र्स ने शेयर किया। पेश हैं आपके लिए

लगन जरूरी है
डीएम ने बताया कि पढ़ाई के लिए हाई-फाई स्कूल की बजाए लगन जरूरी है। उनकी पढ़ाई भी शुरू से आखिर तक सरकारी स्कूल में ही हुई है। अच्छा है कि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बनाने के बजाए उन्हें खेल-खेल में सिखाया जाए।

पेरेंट्स अवेयर हों
अधिकतर देखने में आता है कि  क्लास में स्टूडेंट्स टाइम टेबल के अकॉर्डिंग बुक्स लेकर ही नहीं आते। जीआरएम के डायरेक्टर राजेश अग्रवाल ने बताया कि बच्चे अक्सर रात में अपना बैग लगाते ही नहीं हैं। वह देर से उठते हैं और सुबह वैन वाले के आने के बाद उन्हें जो बुक्स हाथ लगती हैं, वही लेकर स्कूल चले जाते हैं। पेरेंट्स को उनका बैग रात में लगाने के लिए ही कहना चाहिए।

फिर बढ़ जाएंगी प्रॉब्लम्स
जीआरएम के डायरेक्टर राजेश अग्रवाल के मुताबिक, अगर हम बच्चों क ो बैग्स से निजात दिलाने के लिए लॉकर्स की फै सिलिटी देना शुरू करेंगे तो अलग समस्याएं आएंगी। उनकी कीज खो सकती हैं। बुक्स या नोट बुक्स गायब हो सकती हैं। फिर पेरेंट्स कंप्लेंट लेकर स्कूल में आएंगे।

कंपोजिट हों बुक्स
बच्चों के ऊपर से बैग का बोझ दूर करने के लिए बुक्स को कंपोजिट किया जाना चाहिए। डीएम के मुताबिक, देखने में आता है कि बच्चों की साइंस में फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायो की बुक्स अलग-अलग होती हैं और वह भी काफी हैवी। अच्छा हो कि इन बुक्स को कंपोजिट किया जाए। इससे बच्चों के बैग्स का भार कुछ कम हो सकता है।

ट्रांसपेरेंसी जरूरी है
पेरेंट्स फोरम के मो। खालिद जिलानी ने बताया कि स्कूलों में एडमिशन के दौरान अक्सर देखने में आता है कि एडमिशन प्रक्रिया में ट्रांसपेरेंसी नहीं होती है। इस पर डीएम और राजेश अग्रवाल दोनों ने ही उन्हें व्यवहारिक होने की सलाह दी। राजेश अग्रवाल ने बताया कि कई बार स्कूल के सामने भी कुछ मजबूरियां होती हैं, जिन्हें समझना पड़ता है।

और खिल उठी उम्मीदों वाली धूप
बच्चों पर बढ़ते एजुकेशन के बोझ और पेरेंट्स की परेशानी, हम सभी जानते हैं। इसी को फोकस करके आई नेक्स्ट ने सप्ताह भर पहले अभियान शुरू किया। इसके अंतर्गत वेडनेसडे को हमने राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस आयोजित की। इसमें फीस, कोर्स, भारी स्कूल बैग समेत तमाम मुद्दों पर बेबाकी से डिस्कशन हुआ। वहां पेरेंट्स और पेरेंट्स एसोसिएशन ने प्रॉब्लम्स को उठाया, वहीं स्कूल एसोसिएशन के प्रतिनिधि और मैनेजमेंट ने उसका जवाब दिया। मॉडरेटर के रूप में डीएम सुभाष चंद्र शर्मा मौजूद रहे। उन्होंने बीच का रास्ता निकालने के लिए कुछ सुझाव दिए और कुछ मामलों का संज्ञान लेते हुए तत्काल कार्रवाई का भरोसा दिलाया। दरअसल यह पूरी कॉन्फ्रेंस पेरेंट्स, स्कूल और प्रशासन के बीच बढ़ रहे कम्युनिकेशन गैप को कम करने की हेल्दी कवायद थी। इसमें दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के सीजीएम एएन सिंह, एडिटोरियल हेड कुणाल वर्मा और आई नेक्स्ट की टीम भी शामिल हुई। डिस्कशन में इन इंपॉर्टेंट ईश्यूज पर खुलकर सभी ने अपनी-अपनी बात रखी-

भारी होता बैग और बदलता सिलेबस
बच्चों के कंधों पर बढ़ रहे स्कूल बैग के वजन को लेकर पेरेंट्स ने अपना कंसर्न शो किया। उसके कारणों को ढंूढने और कंट्रोल करने के उपायों पर चर्चा हुई। स्कूलों द्वारा प्रेसक्राइब्ड सिलेबस को फॉलो न करना और एक्स्ट्रा बुक्स और नोटबुक्स लाने का दबाव इसका मेन रीजन उभर कर आया। इसको लेकर एक्ट और जीओ में जारी दिशा-निर्देशों पर बात हुई। इसके तहत हर क्लास के लिए स्कूल बैग का एक निर्धारित वजन तय किया गया है। सिलेबस को लेकर स्कूल और पब्लिशर्स के बीच पनप रहे नेक्सस पर ध्यान आकर्षित किया गया। पेरेंट्स के कर्तव्यों पर बात हुई कि वे बच्चों का स्कूल बैग और टाइम टेबल मैनेज करें।

डीएम ने कहा
पेरेंट्स ने हर साल फीस का बढऩा, बार-बार एडमिशन फीस लेना, एक्स्ट्रा बुक्स व नोटबुक्स का दबाव, ट्रांसपोर्ट आदि तमाम प्रॉब्लम्स को उठाया। इसके बाद डीएम सुभाष चंद्र शर्मा ने कुछ प्वाइंट्स सुझाए और तीन मामलों पर जल्द निर्देश जारी करने का एश्योरेंस दिया। उन्होंने कहा कि जल्द ही उनकी अध्यक्षता में निगरानी कमेटी गठित की जाएगी। इसमें अभिभावक संघ की भागीदारी होगी। साथ ही बेलगाम और खटारा स्कूल ट्रांसपोर्ट पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने आरटीओ और पुलिस विभाग को सघन चेकिंग कराने का भरोसा दिलाया। एनओसी से संबंधित गढ़े गए नियमों का पालन न होने को उन्होंने गंभीरता से लिया। उसके निरीक्षण और समीक्षा के लिए संबंधित विभाग को सख्त कदम उठाने के लिए निर्देश देने की बात कही।

इनकी सुरक्षा कौन करेगा
बच्चों की सिक्योरिटी का मुद्दा प्रमुखता से रखा गया। स्कूल वैन और ऑटो में भेड़-बकरी की तरह ठूंस कर बैठाए जाने को सभी ने गंभीरता से लिया। साथ ही खटारा ऑटो-वैन और उनमें गैर वाजिब तरीके से लगी सीएनजी किट पर सभी ने चिंता जताई। चर्चा इस पर गर्म रही कि आखिरकार इनमें बैठने वाले बच्चों की सिक्योरिटी किसकी जिम्मेदारी है। अधिकांश व्हीकल्स प्राइवेट ठेकेदारों के होते हैं। इस पहलू पर खासा ध्यान दिया गया कि पेरेंट्स भी यह डिसाइड करें उनका लाडला कितना सेफ है। साथ ही स्कूल और संबंधी विभागीय प्रशासन को भी क्लोज वॉच रखने की सलाह दी गई। इससे पहले कोई हादसा बच्चों की जान जोखिम में डाल दे प्रभावी कदम उठाने पर सहमति बनी।

जेट स्पीड से बढ़ रही फीस
महंगी एजुकेशन के कई पहलुओं पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई। रजिस्ट्रेशन फीस, बार-बार एडमिशन फीस और अन्य मदों में ली जाने वाली फीस से पेरेंट्स परेशान हो गए हैं। उनकी जेब पर बढ़ते दबाव की बात सामने आई। बहस इस पर भी हुई की लास्ट ईयर डीएम की अध्यक्षता में एक निगरानी कमेटी का गठन हुआ था, जिसकी बैठक आज तक नहीं हुई। साथ ही उसमें अभिभावक संघ की कोई भागीदारी नहीं है। फीस को लेकर जारी दिशा-निर्देशों पर चर्चा की गई। इसमें प्रमुख यह था कि तीन साल से पहले स्कूलों को फीस नहीं बढ़ानी चाहिए। बच्चा एक बार एडमिशन लेता है लेकिन उससे हर साल एडमिशन फीस चार्ज की जाती है। कुछ हद तक इस पर सहमति बनते दिखी कि क्वालिटी एजुकेशन के लिए कुछ तो चार्ज करना ही पड़ेगा। कम्प्यूटराइजेशन और स्मार्ट क्लास की वजह से बढ़ रहे फीस के ग्राफ को भी आंका गया।

एनओसी में रूल्स नहीं होते फॉलो
स्कूलों को एनओसी देते वक्त नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। सभी ने इसे कड़ाई से लागू करने पर दबाव डाला। क्लास के अंदर बच्चों को ठूंस कर बैठाया जाता है। स्टूडेंट और टीचर रेशियो का ख्याल नहीं रखा जाता है। साथ ही एनओसी के नियमों के तहत स्कूलों में सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं कि नहीं, इस पर भी चर्चा की गई। इस बात को गंभीरता से लिया गया कि एनओसी देते वक्त स्कूलों का निरीक्षण नहीं किया जाता। ऐसा होने लगे तो शहर के तमाम स्कूलों में ताला लग जाएगा। साथ ही एनओसी का रिनुअल भी कुर्सी पर बैठे-बैठे कर दिया जाता है। कन्क्लूजन यह निकला कि अब इन नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाएगा।