'शरीर के किसी अंग का अक्षम होना डिसेबिलिटी नहीं बल्कि जिम्मेदारियों से मुंह फेर लेने वाले डिसेबल होते हैं.' यह कहना है हिम्मतवालों का। जिनके पास डिसेबिलिटी का सर्टिफिकेट है, लेकिन उनके अचीवमेंट दूसरों को सीखने के लिए प्रेरित करते हैं.व‌र्ल्ड डिसेबिलिटी डे पर आई नेक्स्ट आपको शहर के ऐसे ही कुछ फिजिकल डिसेबल लोगों से रूबरू करा रहा है। जिन्होंने न सिर्फ खुद को मजबूत बनाया और हुनर का देश और विदेश में लोहा मनवाया। आइए आपको मिलाते हैं ऐसे ही कुछ बड़े दिलवालों और हिम्मतवालों से

BAREILLY:

मेहताब हुसैन

बचपन से ही डेफ रहे मेहताब हुसैन में एक अच्छे एथलीट की सभी एबिलिटीज मौजूद थी। जिसे देखते हुए मां अशरफ जहां ने मेहताब को 5 वर्ष की उम्र में ही स्पो‌र्ट्स स्टेडियम भेज दिया था। पिता का देहांत हो गया था। 5 वर्ष की उम्र से अब तक मेहताब के नाम कई सारे अवॉ‌र्ड्स दर्ज हो चुके हैं। मेहताब रनिंग में 22 नेशनल प्रतियोगिताएं, 25 स्टेट प्रतियोगिताएं और एक बार इंटरनेशनल स्पेशल एथलीट कॉम्पिटीशन में पार्टीसिपेट कर चुके हैं, जिसमें सात बार वह विनर रह चुके हैं। इसके अलावा लोकल लेवल पर भी आयोजित ज्यादातर प्रतियोगिताओं में विनर रहे हैं। तीन बेटों में मेहताब सबसे छोटे हैं। मां ही मेहताब की सारी जिम्मेदारी संभाल रहीं हैं।

सुधीर कुमार 'चंदन'

मैकेनियर रोड निवासी सुधीर कुमार के दोनों पैरों में पैरालिसिस हो गया था। पिता ने इस बीमारी को ठीक कराने का प्रयास किया। 8 वर्ष बाद बाएं पैर में की जान आयी पर दायां जस का तस रहा। फिजिकल डिसएबिलिटी को दरकिनार कर वह मजबूत इरादों से कदमों को बढ़ाते रहे। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में स्कूल टॉपर सुधीर को यूपी एरिया सिग्नल रेजीमेंट में नौकरी मिली। यहां रिजाइन देकर एनईआर इज्जतनगर में नौकरी की। साथ ही, समाजसेवी संस्थाओं द्वारा दिव्यांगों को ट्राइसाइकिल वितरण करने की प्रेरणा दी। जुड़े रहे। कविता, लेख लिखने समेत सामाजिक कार्यो में भागेदारी करने पर मानव सेवा क्लब, मारवाड़ी सभा, कायस्थ महासभा, चेतना मंच, संस्कार व अन्य ने सम्मानित किया है।

चंगेज खान

किसी का सहारा नहीं बन सकते तो बेसहारों का मजाक बनाने से भी बचना चाहिए। इन्हीं विचारों के साथ ओल्ड सिटी निवासी चंगेज खान ने फिजिकल डिसेबल की मदद की शुरुआत की। करीब 10 वर्ष पहले चंगेज खान ने डेफ बच्चों की मदद के लिए आगे आए। वजह बना एक प्रोग्राम जिसमें हिस्सा लेने के लिए गए कुछ बच्चों को डांटकर आयोजकों ने भगा दिया था। इंसानियत को तार-तार करने वाली घटना को प्रत्यक्ष देखकर उनके मन में इन बच्चों के लिए कुछ करने का प्रण कर लिया था। इसके बाद उन्होंने 'स्पो‌र्ट्स काउंसिल ऑफ द डेफ' संस्था के जरिए उन्होंने डेफ पर्सन को सहारा देना शुरू किया। उन्हें स्पो‌र्ट्स में फ्री कोचिंग, भोजन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा उनकी अन्य समस्याओं को भी दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।