- बुजुर्गो को सहारे देने की बजाय अपनों ने ही किया बेसहारा, आई नेक्स्ट से बातचीत में छलका बुजुर्गो का दर्द

- जेसीआई मैग्नेट सिटी के जेसी वीक सेलीब्रेशन के तीसरे दिन बुजुर्गो को कराया सातों नाथों के दर्शन

BAREILLY:

'वृद्धावस्था आश्रम एक पिंजड़ा है और और हम इसमें बंद एक पक्षी हैं। पिंजड़ा तो लोहे से बनता है, लेकिन वृद्धावस्था आश्रम में घड़ी की सुईयां ही सलाखों का काम करती हैं'। जीवन का अंतिम वक्त वृद्धाश्रम में काट रहे एक बुजुर्ग के मुंह से निकले ये लफ्ज घर से निकाले जाने का दर्द बयां कर रहे हैं। घड़ी की सुईयों को सलाखें कह कर वह एक-एक पल को कैद बता गए। फ्राइडे को जेसी वीक सेलीब्रेशन के दौरान बुजुर्गो को सिटी के सात नाथों का दर्शन कराया। इसी दौरान आई नेक्स्ट ने बुजुर्गो से उनका दर्द जानने की कोशिश की। लाडले के प्यार में पहले वह कुछ बोलने से हिचके, लेकिन फिर उनके आंसुओं ने सब कुछ बेपर्दा कर दिया। आइए आपको भी बताते हैं आंसुओं में छिपी दर्द भरी दास्तां

सब कुछ है पर, 'कुछ' भी नहीं - जीएन तिवारी

वृद्धावस्था आश्रम में पिछले करीब ढाई वर्षो से रह रहे 85 वर्षीय जीएन तिवारी के मुताबिक आश्रम में जिंदा रहने के लिए सभी कुछ मिलता है, बस जिंदगी नहीं मिलती। किसी और चीज की उम्मीद क्या करें जब, अपनों ने ही ठुकरा दिया है। करीब 40 वर्ष पहले मैंने हाइडिल की नौकरी से रिजाइन कर दिया था। इसके बाद मैंने लखनऊ में हजरतगंज स्थित स्टेशनरी शॉप में काम किया। इसी दौरान शादी हुई और दो बच्चों ने घर में खुशियां लाई। लेकिन खुशियां ज्यादा दिन नहीं टिक सकीं। बीमारी ने बेटे को छीन लिया। बेटी की शादी की, लेकिन वह भी एक नाती सौंपकर गुजर गई। बरेली के चौधरी मोहल्ला के आवास पर पटीदारों ने कब्जा कर लिया और आखिर में इन्हें वृद्धावस्था आश्रम में पनाह लेनी पड़ी।

बस जिंदगी काट रही हूं - मीरा

बड़ा बाजार में अपना परिवार होने के बावजूद भी 61 वर्षीय मीरा 6 माह से वृद्धावस्था आश्रम में रह रही हैं। पति आशोक कुमार का देहांत टीबी की बीमारी की वजह से हो गया था। एक बेटी थी, जिसकी शादी कर दी गई। जिसके बाद से उसने कभी पलट कर नहीं देखा। देवरानी और जेठानियों ने पति के देहांत होने के बाद घर का काम करवाना शुरू किया। गलतियों पर ताने देने लगती थीं। पति न होने से अधूरापन महसूस होता तो घर के किसी भी कोने में बैठकर रो लेती थीं। एक दिन दोनों ने मिलकर उन्हें घर से निकल जाने को कहा। मना किया, तो बाहर धकेल दिया। इसके बाद गहने बेचकर मिले रुपयों से गुजारा करने लगी। फिर बर्तन धुलने का काम करना पड़ा। एक दिन एक घर में काम करते वक्त वृद्धावस्था आश्रम में जाने की सलाह दी। संपर्क किया और वहां पहुंच गई। क्या कहूं, परिवार के बिना जिंदगी अधूरी है। बस हर पल आखिरी घड़ी का इंतजार कर रही हूं।

बेटे ने नहीं बीमारी ने छीनीं खुशियां - गोपाल किशन

बेटे की तबीयत खराब होने पर रात भर जगकर मीठी नींद सुलाने वाले 68 वर्षीय गोपाल किशन आज आश्रम में दिन काट रहे हैं। मुस्कुराते हुए अचानक आंखों में उभर आई आंस को पोंछते हुए उन्होंने बताया कि शायद ही कोई ऐसी ख्वाहिश बेटे कपिल भल्ला की रही हो, जिसे मैंने पूरी नहीं की। बावजूद इसके एक दिन बहू की शिकायत पर बेटे ने बेतहाशा पिटाई की। चोटों के दर्द आज भी हैं। इस जिंदगी के लिए मैं बेटे को नहीं अपनी सेप्टिक की बीमारी को दोषी मानता हूं। सिटी के चौपुला रोड निवासी गोपाल के मुताबिक करीब 25 वर्ष पहले उनके पैर में घाव हो गया था, जो काफी इलाज कराने के बावजूद ठीक नहीं हुआ। इलाज में सारा पैसा खर्च हो गया। लेकिन तब तक शादी हो चुकी थी ओर बेटे ने इलाज कराने से मना कर दिया। इलाज न होने पर घाव में सड़न होने से न जाने कितनी ही रातें दर्द से कराहते हुए गुजरीं। ढाई वर्ष पहले बेटे ने घर बेचकर मुंबई ट्रांसफर करा लिया और उन्हें वृद्धावस्था में छोड़ गया। तब से अभी तक न बेटा आया और न ही बेटे की कोई खबर।