- बरेली के रंगमंच की विरासत को संभालने में जुटे युवा, बनाए रंगमंच समूह

- थिएटर से हुनर निखारकर बॉलीवुड तक का सफर तय करने की ख्वाहिश

BAREILLY:

'शहर-ए-बरेली, जो कला और सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रसिद्ध थी, लेकिन एक ऐसा भी दौर आया, जब शहर में रंगमंच का दायरा और उसके कद्रदानों की संख्या सिमटने लगी थी। यूं कहें तो चंद कलाकारों के भरोसे शहर में रंगमंच जिंदा रहा। हालांकि, आज एक बार फिर रंगमंच की नई गाथा युवा लिखने को आतुर हैं। जिन्होंने शौकिया कलाकारों को एकजुट किया। फिर संस्थाएं बनाकर सामाजिक ताने बाने को रुपहले पर्दे पर प्रदर्शित कर रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि वर्षो से सन्नाटे की आगोश में कैद होते जा रही विरासत कैसे संवारी जा रही है।

सहेज रहे विरासत

विरासत को संजोए रखने में समितियां और संस्थाएं आगे आई हैं। 20 वर्षो तक सुनसान पड़े रंगमंच के मंच को दयादृष्टि रंगविनायक रंगमंडल ने सजाने का शुभारंभ किया। शहर के युवाओं में रंगमंच के प्रति लगाव, रंगमंच के पुरोधाओं से मंच को गुलजार करने में विंडरमेयर थिएटर काफी हद तक सफल रहा। लोगों को प्रेरणा मिली और उन्होंने अपनी अलग संस्थाएं, समितियां बनाई। कुछ हद तक श्रेय ऑल इंडिया कल्चरल एसोसिएशन द्वारा इंटरनेशनल नाट्य प्रतियोगिताओं को भी जाता है। जिसने लोगों मे जोश भरने का काम किया। वर्तमान समय में शहर में रंग प्रशिक्षु, युगांधर थिएटर, अनाम थिएटर, रंग सारथी समेत शाइनी थिएटर वर्कशॉप भी बनाया गया है। जिसमें युवाओं की भागेदारी सराहनीय है।

मदद मिले तो बढ़े कदम

कला-संस्कृति को संजोने की जिम्मेदारी युवा संभालने लगे हैं। युवा रंगकर्मी सादिक ने बताया कि रंगमंच में बढ़ती युवाओं की रूचि और बढ़ रही प्रोफेशनलिज्म होने से थिएटर में रोजगार के मौके बनने लगे हैं। रंगकर्मी शैलेंद्र ने बताया कि थिएटर में अपार संभावनाएं हैं। समय, अनुशासन, समर्पण, टीम वर्क और धैर्य होना बहुत जरूरी है। सरकार की मदद नहीं मिलने से लोग हताश हो रहे थे। लेकिन अब मौके मिल रहे हैं तो युवा भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं।

बरेली रंगमंच एक नजर में

- 60 के दशक में पं। राधेश्याम कथावाचक ने हिन्दी रंगमंच की नींव रखी।

- कथावाचक के रामायण का मंचन देश के रंगमंच पर अमिट छाप छोड़ रहा था। -

- 20 वर्ष पहले कलाकारों की 150 संस्था थी। हर घर में थिएटर की धमक थी।

- प्रोफेशनलिज्म न होने से रंगमंच 'कथानक' बनने की राह पर बढ़ने लगा।

- वर्ष 2008 में विंडरमेयर के उदीयमान होने से कलाकारों को मिला प्लेटफार्म।

- कथानक बन रहे रंगमंच को मिली राह। युवाओं में बढ़ने लगा रंगमंच का क्रेज।

- रंग प्रशिक्षु, युगांधर थिएटर, अनाम थिएटर, रंग सारथी, शाइनी थिएटर वर्कशॉप बनाए गए हैं।