- कई फैक्ट्रियां हो गई कंडम, जरी कारोबार को भी नहीं लगे पंख

- शासन के प्रोजेक्ट सिर्फ कागजों तक ही रहे सीमित

बरेली: पिछले 10 सालों में इंडस्ट्री की रफ्तार अचानक थम गई जिससे न तो व्यापार बढ़ा और न ही बरेलियंस को रोजगार मिला। आजादी के टाइम की कई बड़ी इंडस्ट्रीज में ताला लग गया। यहां तक कि कभी शहर की पहचान रहा पतंग-मांझा और जरी का कारोबार भी बंदी की कगार पर है। जिससे हजारों लाखों लोग बेरोजगार हो गए। डिस्ट्रिक्ट में नई इंडस्ट्री बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए और न ही पुराने उद्योगों को जीवंत करने के प्रयास किए। पेश है साल भर जिले के उद्योगों पर विशेष रिपोर्ट

1800 करोड़ के थे प्रोजेक्ट

पिछले साल प्रदेश सरकार की ओर से 21 व 22 फरवरी को लखनऊ में इंवेस्टर्स मीट का आयोजन किया गया था। जिसमें जिले के कई उद्यमियों ने शिरकत की थी। देश भर के उद्यमियों ने जिले में उद्योग लगाने की हामी भरी। जिले की ओर से 1800 करोड़ रुपये के 38 बड़े प्रोजेक्ट शामिल किए गए।

लगाने थे तीन, लगा एक

लखनऊ में पिछले वर्ष 29 जुलाई को हुई ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी में जिले के तीन बड़े प्रोजेक्ट का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिलान्यास किया। इसमें परसाखेड़ा स्थित बीएल एग्रो कंपनी का ऑटोमैटिक पैकेजिंग प्लांट, सीबीगंज में नोएडा की कंपनी सिक्का प्रोमोटर्स का 28.5 करोड़ का चार सितारा होटल और आंवला में नोएडा की कंपनी क्रीमी फूड्स का सौ करोड़ के निवेश से लगने वाला डेयरी मिल्क प्लांट शामिल था लेकिन सिर्फ बीएल एग्रो ने ही अपना प्रोजेक्ट शुरू किया।

डिस्ट्रिक्ट की इंडस्ट्रीज का हाल

परसाखेड़ा

यूपी स्टेट इंडस्ट्रीयल डेवलेपमेंट कॉरपोरेशन ने साल 1960 में सीबीगंज में करीब 275 एकड़ में परसाखेड़ा औद्योगिक एरिया की स्थापना की थी। साल 2004 में इसे नगर निगम को हैंडओवर कर दिया गया। तब से इसके रखरखाव की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। पूरे क्षेत्र में सौ परसेंट प्लांट उद्यमियों को आवंटित कर दिए गए हैं। यहां पर करीब 60 परसेंट इकाइयां चल रही हैं।

सीबीगंज

राज्य सरकार ने साल 1956 में सीबीगंज औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की थी। कई एकड़ क्षेत्र में फैले इस इंडस्ट्रीयल एरिया में 57 प्लाट हैं। उनमें से सरकार ने 12 बनाकर दिए थे। मौजूदा समय में वहां 29 इकाइयां हैं। इसे साल 2004 में नगर निगम के हवाले कर दिया गया।

भोजीपुरा

यूपीएसआईडीसी ने साल 1964 में भोजीपुरा औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की थी। वहां कई एकड़ भूमि पर क्षेत्र विकसित किया गया। उस वक्त यहां करीब 62 प्लाट बनाए गए थे। मौजूदा समय में वहां करीब 40 ईकाइयां ही चल रही हैं।

ये फैक्ट्रियां हुई बंद

- सीबीगंज में स्थित इंडियन टर्पिन टाइन एवं रोजिन (आइटीआर) फैक्ट्री में तारपीन के तेल, बिरोजा आदि का उत्पादन होता था। अप्रैल 1998 में फैक्ट्री बंद हो गई।

- फतेहगंज पश्चिमी स्थित रबर फैक्ट्री के उत्पाद पूरे एशिया के देशों में प्रसिद्ध थे। करीब दो हजार लोग इस फैक्ट्री में सेवाएं दे रहे थे। 15 जुलाई 1999 में फैक्ट्री बंद हो गई।

- उप्र। शुगर कारपोरेशन के अधीन नेकपुर की गन्ना फैक्ट्री को वर्ष 1996 में लक्ष्य से अधिक उत्पादन करने के लिए गोल्ड मैडल मिला था। सितंबर 1998 में मिल बंद हो गई।

- सीबीगंज स्थित विमको फैक्ट्री में माचिस का उत्पादन होता था। यहां से पूरी देश भर में माचिस की सप्लाई का काम था। वर्ष 2014 में फैक्ट्री बंद हो गई।

- बहेड़ी में वर्षो पूर्व यूपी सहकारी कताई मिल हुआ करती थी। इस मिल में सूत के धागे बना करते थे। अगस्त 2010 में फैक्ट्री को बंद कर दिया गया।

- भोजीपुरा में ¨हदुस्तान लीवर लिमिटेड की फैक्ट्री थी। इसमें किसान नाम से जैम, टमाटर कैचअप, सॉस समेत अन्य उत्पाद तैयार होते थे। वर्ष 1985 में फैक्ट्री बंद हो गई।