- चाइल्ड एब्यूज को पहचानकर रोकने की होनी चाहिए कोशिश

- पैरेंट्स और टीचर्स की जिम्मेदारी, बच्चों पर परमानेंट रखें नजर

<- चाइल्ड एब्यूज को पहचानकर रोकने की होनी चाहिए कोशिश

- पैरेंट्स और टीचर्स की जिम्मेदारी, बच्चों पर परमानेंट रखें नजर

GORAKHPUR: GORAKHPUR: शहर के भीतर अक्सर पैरेंट्स बच्चों की परेशानी समझ नहीं पाते या फिर किसी एब्यूज करने की शिकायत नहीं कर पाते। इस वजह से बच्चों में डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है। कई बार परेशान होकर बच्चे सुसाइड अटेंप्ट कर लेते हैं। यदि किसी छोटे बच्चे संग कोई बड़ा व्यक्ति मारपीट, मानसिक रूप से परेशान करने या फिर यौन उत्पीड़न करता है तो इसे चाइल्ड एब्यूज की कटैगरी में रखा जाता है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट, रेडियो सिटी और परवरिश संस्था की तरफ से चाइल्ड एब्यूज को लेकर एक सर्वे कराया गया। सर्वे में पूछे गए सवालों के आधार पर साइकोलॉजिस्ट और स्कूल के प्रिंसिपल्स से बात की गई। इस दौरान यह बात सामने आई कि काउंसलर की मदद से समस्या का समाधान किया जा सकता है। दूसरा यह कि बच्चों पर नजर रखकर उनसे बातचीत कर इस प्रॉब्लम को क्रिएट होने से बचाया जाए।

ज्यादातर चाइल्ड एब्यूज करते परिचित

डीडीयूजीयू यूनिवर्सिटी गोरखपुर के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ। धनंजय का कहना है कि चाइल्ड एब्यूज के ज्यादातर मामलों में कोई न कोई परिचित, रिश्तेदार या जान पहचान का व्यक्ति शामिल होता है। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है। उसका किसी बड़े व्यक्ति पर कोई जोर नहीं चलता। इसलिए वह बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं। चाइल्ड एब्यूज की बढ़ती जा रही प्रॉब्लम को देखते हुए काउंसलर सहित अन्य की बेहद जरूरत है। इसलिए स्कूल, टीचर्स और प्रिंसिपल भी अपने स्तर से चाइल्ड एब्यूज रोकने की कोशिश में जुटे हैं।

ऐसे पहचानें चाइल्ड एब्यूज

दोस्तों और सामान्य गतिविधियों से दूर रहना, खेलकूद में मन न लगना।

व्यवहार में बदलाव, ओवरइटिंग या बिल्कुल खाना खाने से मना करना।

डिप्रेशन, एंग्जाइटी या सेल्फ कॉन्फिडेंस में कमी आना, अचानक डर जाना।

कंसंट्रेशन में कमी होने से पढ़ाई में मन नहीं लगता है। चीजों को भूलना।

स्कूल जाने में आनाकानी करना, स्कूल बस और ट्यूशन क्लास में जाने से रोकना

इन बातों पर ध्यान दें पैरेंट्स

बच्चे के शरीर पर किसी तरह के खरोंच, चोट के निशान, चोट या दर्द है।

बच्चा अपने बदन के चोट या दर्द के बारे में आसानी से बता नहीं पा रहा है।

प्राइवेट पा‌र्ट्स से जुड़ी कोई प्रॉब्लम शेयर करने से बच्चा कतराता रहता है।

उम्र के अनुसार उसकी गतिविधियां अलग हैं। किसी खास व्यक्ति के पास जाने से डरते रहना।

इस तरह से कर सकते हैं बचाव

अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में बताएं। किसी को भी बदन पर छूने से मना करना जरूर सिखाएं।

फैमिली में ऐसे लोगों की सर्किल बनाएं जिनसे बच्चा अपनी प्रॉब्लम कह सके जैसे नानी, दादी, दीदी या अन्य फैमिली मेंबर्स

बच्चों को गलती माफ करने का भरोसा दिलाएं ताकि उनको कोई ब्लैकमैल करके एब्यूज न कर सके।

बच्चों को यह बताना जरूरी है कि यदि कोई बड़ा उनके साथ कुछ गलत करता है तो इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती है।

बच्चों को यह बताना जरूरी होता है कि यदि कोई उनके साथ कुछ गलत कर रहा है तो जरूर इसकी शिकायत करें। भागकर अपने सेफ जोन में चले जाएं।

वर्जन

बच्चों के व्यवहार में ज्यों ही बदलाव हों। परिवार के लोगों से बच्चे कटने लगें। चीजों को शेयर करने से बचने लगें और अचानक उनको डर लगने लगे तो सजग हो जाएं। इसका प्रिवेंशन यह है कि बच्चों से बात करते रहें। स्कूल जाते समय बस, टेंपो में जाते समय ड्राइवर से क्या व्यवहार होना चाहिए। स्कूल के वॉशरूम में क्या व्यवहार होता है। इसमें मदर्स को अपने बेटे-बेटियों से बातचीत करनी चाहिए। घर में भी बच्चों को कभी अकेले न छोड़ें। किसी एडल्ट परिचित के साथ भी बच्चों को अकेले न छोड़ें।

डॉ। धनंजय, प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग, गोरखपुर यूनिवर्सिटी

चाइल्ड एब्यूज के मामले बेहद ही गंभीर होते हैं। इनको सीरियसली हैंडल करना चाहिए। बच्चों से बात करके उनके पैरेंट्स को इनवॉल्व किया जाना जरूरी होता है। यदि समस्या बनी रहती है तो आगे चलकर बच्चों में बड़ी प्रॉब्लम का रूप ले लेता है।

गुरमीत सिंह, प्रिंसिपल, द बेस पब्लिक स्कूल

चाइल्ड एब्यूज के मामले सामने आने पर उनको बेहद ही संवेदनशीलता से टेकल करने की जरूरत होती है। चाइल्ड एब्यूज को रोकने का प्रयास होना चाहिए। स्कूलों में कभी यदि कोई बात सामने आए तो इसे संजीदगी से खत्म होना होगा ताकि बच्चे के मन का भय खत्म हो जाए।

रवि प्रकाश यादव, प्रिंसिपल, ज्योति इंटर कॉलेज

इस संबंध में अवेयरनेस होनी चाहिए। चाइल्ड एब्यूज के केसेज ज्यादातर फैमिली और आसपास में देखे गए हैं। अपने बच्चों को किसी से मिलवाने और उनके पास अकेले छोड़ने के पहले एक बार सुरक्षा को लेकर गौर करें। बच्चों के साथ एज के हिसाब से बात करते हुए इसके बारे में जानकारी जरूर लें।

अजय कुमार शाही, डायरेक्टर, आरपीएम एकेडमी

हम लोग रेग्यूलर बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में जानकारी देते हैं। इसका डेमो देकर बच्चों की काउंसिलिंग की जाती है। बच्चों के संबंध में उनके पैरेंट्स से भी जानकारी लेते हैं। मॉनीटरिंग करते हुए हमारे काउंसलर क्लास टीचर से बात करके उनके बिहैवियरल चेंज के बारे में जानकारी देते हैं। इसे रोकने के लिए सिक्योर इनवायरमेंट देना होगा।

अपनीत गुप्ता, प्रिंसिपल, स्टेपिंग स्टोन इंटर कॉलेज, सूर्यकुंड

बच्चों के व्यवहार को देखकर इसकी जानकारी ली जा सकती है। अचानक ही कुछ बच्चे गुमसुम हो जाते हैं। ऐसे में बच्चों से बात करके जानकारी लेना जरूरी होता है। चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज के मामले में पैरेंट्स को भी अलर्ट रहना होगा।

शैलेंद्र साहनी, प्रिंसिपल, नवल्स एकेडमी, सूर्यकुंड

बच्चों को बड़ों के भरोसे अकेले नहीं छोड़ा जा सकता है। कई बार ऐसा होता है कि जिन पर हम भरोसा करते हैं, वह लोग ही बच्चों को एब्यूज करते हैं। इसलिए घर से लेकर बाहर तक हमें अलर्ट रहना होगा।

केएल श्रीवास्तव, प्रिंसिपल, नवल्स एकेडमी, रुस्तमपुर

स्कूलों में टीचर्स को इस जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। वह बच्चों के साथ-साथ उनके पैरेंट्स को भी गाइड करें। इससे चाइल्ड एब्यूज के मामलों से निपटने से मदद मिलेगी। बच्चों की काउंसिलिंग करके उनको डिप्रेस होने से बचाया जा सकेगा।

- आसिफ महमूद, प्रिंसिपल, जामियां अल इस्लाह, गोरखनाथ