गोरखपुर (ब्यूरो)। केस-1: जिला क्षय रोग अधिकारी रामेश्वर मिश्रा ने बताया, टीबी पेशेट्स के नाम और नंबर डायरी में दर्ज हैं। ऑफिस टाइम में ही जानकारी मिल पाएगी।

केस-2: सीएमओ डॉ। आशुतोष कुमार दुबे के जिम्मे 18 टीबी पेशेंट हैं। उन्होंने बताया, अभी हमारे पास किसी प्रकार के नंबर नहीं है। जो नंबर और डिटेल्स हैैं। वह टीबी विभाग के पास हैं। वैसे ही टीबी पेशेंट्स को पोषण किट देने का टाइम आ गया है। जल्द ही उन्हें देने के लिए जाएंगे।

केस-3: एसीएमओ डॉ। एएन प्रसाद के पास 9 टीबी के पेशेंट हैैं, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि हमारे संपर्क में टीबी के पेशेंट्स नहीं है। टीबी विभाग के पास ही है। टीबी विभाग से पूछने के बाद ही कुछ जानकारी मिल पाएगी।

केस-4: जिला पंचायत राज विभाग के डीपीआरओ हिमांशु शेखर ठाकुर ने बताया, उनके विभाग ने 50 बच्चों को गोद लिया है। स्वयं उन्होंने दो बच्चों को गोद लिया है। बच्चों की प्रॉपर केयर की जाती है।

यह चार केस बानगी भर हैं। टीबी उन्मूलन के लिए शासन की तरफ से 2025 तक की डेटलाइन तय है। इसके लिए टीबी मरीजों को जहां प्रॉपर दवा देने की कवायद चल रही है। वहीं, गोरखपुर के वीआईपी के जिम्मे जिन टीबी मरीजों के देखभाल और उनके इलाज का जिम्मा सौंपा गया है। कहीं न कहीं वह अपने जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन नजर आ रहे हैैं। यह खुलासा तब हुआ जब दैनिक जागरण आईनेक्ट ने इन वीआईपी से बात कर गोद लिए गए टीबी मरीजों के बारे में जानकारी हासिल की। वीआईपीज ने गोद लिए गए टीबी पेशेंट्स का सारा पल्ला टीबी विभाग पर ही छोड़ दिया।

अटेंडेंट बोले- सामान देने के बाद झांकने तक नहीं आए

गोरखपुर के 16 वीआईपीज ने 98 टीबी मरीजों को गोद लिया है। इन मरीजों के प्रति इनकी कितनी सहानभुति है। इसकी पोल दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में खुल गई। तुर्कमानपुर निवासी रुखसाना बेगम ने बताया, उनकी 8 वर्ष की बेटी है। जिसे टीबी हैैं। वह प्रॉपर दवा लेती है। एक व्यक्ति ने उनकी बेटी को गोद लिया है। लेकिन एक बार वह आए और एक किलो सेव, एक किलो संतरा, एक किलो गुड़ व खाने पीने की वस्तु लाए, लेकिन उसके बाद कभी झांकने तक नहीं आए। सिर्फ नाम के लिए गोद लिया है। सरकार की तरफ से राशन का पैकेट मिला है। जिसमें चावल, दाल व आटा मिला है।

फैक्ट फीगर

- बाल क्षय रोगी (18 वर्ष से कम आयु)

- व्यस्क महिला क्षय रोगी (18 वर्ष से अधिक आयु )

- व्यस्क पुरुष क्षय रोगी (18 वर्ष से अधिक आयु )

- ड्रग रेजिस्टेंट-कोमार्बिडिटी वाले क्षय रोगी

क्या है नियम

टीबी डिपार्टमेंट के मुताबिक, सबसे पहले चिन्हित लोकोपकारी सामाजिक, शैक्षणिक संस्थाओं, गणमान्य नागरिकों द्वारा सभी बाल क्षय रोगियों को गोद लिए जाने के लिए कहा जाता है। उसके बाद वरीयता के आधार पर महिला एवं उसके बाद पुरुष क्षय रोगियों को गोद लेने के लिए लिए कहा जाता है। गोद लेने वाली सामाजिक, शैक्षणिक संस्थाओं, गणमान्य नागरिकों द्वारा गोद लिए गए क्षय रोगियों को अपने स्रोतों से पौष्टिक आहार न्यूनतम 6 माह अथवा उपचार अवधि के पूरा होने तक (जो भी बाद में हो) प्रत्येक माह निम्न किट के रूप में प्रत्येक क्षय रोगी को उपलब्ध कराया जाता है।

यह किट

- मूंगफली एक किलो

- भूना चना एक किलो

- गुड़ एक किलो

- सत्तू एक किलो

- तिल, गजक एक किलो

- अन्य न्यूट्रिशिनल सप्लीमेंट (हार्लिक्स, बॉर्नबीटा, काम्प्लॉन) एक किलो

किस वीआईपी ने कितने टीबी पेशेंट लिए गोद

वीआईपी - टीबी पेशेंट

डीएम - 02

सीडीओ - 01

एडीएम सिटी - 01

विधायक खजनी - 06

अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत - 38

जिला पंचायत राज अधिकारी - 02

जिला कार्यक्रम अधिकारी - 02

एसपी साउथ - 01

सीएमओ - 18

उप मुख्य चिकित्साधिकारी (डॉ। एएन प्रसाद) - 09

जिला क्षय रोग अधिकारी - 05

खंड शिक्षा अधिकारी बेलघाट - 08

पुलिस अधीक्षक क्षेत्राधिकारी बांसगांव - 01

बीडीओ खोराबार - 01

ब्लॉक प्रमुख खोराबार - 02

वेद प्रकाश पाठक - 01

वर्जन

टीबी उन्मूलन के लिए माननीय और अधिकारियों ने गोद लिया है। गोद लिए जाने के बाद उनका हालचाल और देखभाल की जिम्मेदारी होती है। जो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर रहे हैैं। उनसे अपील की जाती है कि वह गोद लिए गए बच्चों का हाल चाल लें और उन्हें किट उपलब्ध कराई जाएं।

डॉ। रामेश्वर मिश्रा, जिला क्षय रोग अधिकारी