गोरखपुर (ब्यूरो)। आलम यह है कि उसके ब्रेन का विकास में अवरोध उत्पन्न होता है। बोलने से लेकर शब्द तक नहीं सीख पा रहा है। ऐसे में पैरेंट्स उसे मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में डॉक्टर्स से दिखाने के बाद परामर्श लिया। डॉक्टर्स के बताए हुए चीजों का पालन करते हुए इलाज शुरू किया है। यह एक ही केस नहीं हैं। इस तरह के कई केस सामने आ रहे हैं। इसके चलते पैरेंट्स भी टेंशन में आ गए हैं।

खाना नहीं खा रहा तो पकड़ा देते हैं मोबाइल

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ। अमित शाही का कहना है कि मोबाइल एडिक्शन के लक्षण बच्चों में दिख रहा है। शुरूआत में पैरेंट्स बच्चों की जिद पर मोबाइल पकड़ा दे रहे है उनके हेल्थ के लिए ठीक नहीं हैं। बच्चा अगर खाना नहीं खा रहा और मोबाइल की जिद कर रहा है तो उसे मोबाइल पकड़ा देते हैं। मोबाइल के चलते बच्चा दादा-दादी और माता-पिता के बीच में न रहकर मोबाइल पर ही व्यस्त रहता है। बड़ों के बीच में उनका संवाद नहीं हो पा रहा है। अब वह मोबाइल तक सीमित हो गया है। जहां पहले बच्चों के बीच में रखकर खेलना, पैरेंट््स से बातचीत करना, नाटक आदि एक्टिविटी में हिस्सा लेने से बच्चा ग्रोथ करता था लेकिन मोबाइल के ज्यादा यूज करने से उसके ब्रेन का विकास नहीं हो पा रहा है। पैरेंट्स बच्चों को मोबाइल से दूरी बनाएंगे तभी उसके ब्रेन का विकास हो सकेगा।

ठीक से बोलने में प्रॉब्लम

मोबाइल का अधिक यूज बड़ों से कहीं ज्यादा छोटे बच्चों की हेल्थ को प्रभावित कर रहा है। मोबाइल फोन बच्चों के ब्रेन विकास रोक रहा है। बच्चों में ठीक से न बोल पाने की प्रॉब्लम बढ़ रही है और वे नए शब्द नहीं सीख पा रहे हैं। बच्चों को व्यवहारिक व किताबी चीजें सीखने और समझने में परेशानी हो रही है यह चौकाने वाले तथ्य बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के सर्वे में सामने आया है।

ओपीडी में 20 से 25 बच्चे आ रहे

ओपीडी में हर महीने मोबाइल एडिक्शन के शिकार 20 से 25 बच्चे आ रहे हैँ। मानसिक विशेषज्ञों द्वारा की गई स्क्रीनिंग में पैरेंट्स ने स्वीकार किया है कि उनके बच्चे डेली चार से छह घंटे मोबाइल देख रहे हैं।

बच्चों को पैरेंट्स नहीं देते समय

विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। पैरेंट्स घर पर रहते हुए भी बच्चों के साथ आधा-एक घंटा भी नहीं बिता रहे हैं। बच्चों की जिद के आगे पैरेंट्स बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन थमा दे रहे हैं।

बच्चों को समझने और सीखने में प्रॉब्लम

बच्चों को समझने और सीखने में प्रॉब्लम, अकेले में रहना पसंद कर रहे किसी की बात में सुनना, बात-बात में गुस्सा होना, किसी चीज व बात मनवाने के लिए जिद करता है। ये मोबाइल एडिक्शन के लक्षण हैं। इन्हें नहीं रोका गया तो ब्रेन का पूरी तरह विकास नहीं होगा और प्रवृत्ति बढ़ेगी।

पैरेंट्स ये करें उपाय

-कुछ देर के लिए ही मोबाइल दे

-खिलौने दें और बातचीत करें

-पार्क में बच्चों के साथ खेलें

इन बातों का रखें ध्यान

-घर या स्कूल में शांत रहना

-बोलने में प्रॉब्लम

-नया शब्द बोलने व सीखने में प्रॉब्लम

-हर समय मोबाइल का प्रयोग करना

-चिड़चिड़ापन

नये जनरेशन मोबाइल का यूज ज्यादा कर रहे हैं। अगर बच्चा खाना नहीं खाता है तो पैरेंट्स उसे मोबाइल थमा देते हैं। मोबाइल से छुटकारा पाने के लिए बड़ों के साथ संवाद होना जरूरी है। ऐसे बच्चे पहुंचे रहे हैं जिनके अंदर ज्यादा चिड़चिड़ापन आना, शब्द भूले आदि की प्रॉब्लम आती है। उनकी काउंसलिंग कराई जाती है। पैरेंट्स को भी अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है।

डॉ। अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ

ज्यादा मोबाइल यूज करना नये जनरेशन को खत्म कर रहा है। सामाजिक से बच्चा दूर हो रहा है। खेल कूद, एक्टिविटी में रूचि नहीं रखते हैं। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग की जरूरत है। स्कूल में टीचर्स को भी बच्च्चों पर ध्यान देने की जरूरत है। ओपीडी में ऐसे बच्चें आ रहे हैं। जिनकी एक्सपर्ट द्वारा काउंसलिंग कराई जाती है और पैरेंट्स से मोबाइल छुड़वाने की सलाह दी जाती है।

डॉ। तपस कुमार आईच, एचओडी मानसिक रोग विभाग बीआरडी मेडिकल कॉलेज