गोरखपुर (ब्यूरो)। अधिकतर घरों में महिलाओं ने हीटर और इंडक्शन पर खाना बनाना शुरू कर दिया है। साथ ही गैस बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय अपना रही हैं। आइए गोरखपुर की महिलाओं से जानते हैं वो घर पर किस तरह से गैस बचा रही हैं।

एक बार बनती है चाय

गोरखनाथ इलाके की रहने वाली प्रियंका कहती है कि जो घरेलू गैस मैं पहले 600-700 में लेती थी। अब उसी घरेलू गैस के लिए 1050 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। जबकि पति जितना घर खर्च पहले देते थे, उतना ही अब भी दे रहे हैं। ऐसे में अब हम लोग घर पर घरेलू गैस का यूज कम करने के लिए कई उपाय अपना रहे हैं। सबसे अधिक गैस चाय बनाने में इस्तेमाल होती है, इसलिए अब मैं सुबह उठकर एक ही बार अधिक चाय बनाती हूं। चाय को बचाकर मैं इसे एक बड़े थर्मस में रख देती हूं। उसमें चाय भी गरम रहती है और कोई आता है तो उसे चाय सर्व भी हो जाती है।

इंडक्शन पर पक रहा खाना

इसी तरह शाहपुर इलाके की शिखा कौशिक बताती है कि मैंने इंडक्शन खरीदा है, ताकि मंहगे गैस सिलेंडर का यूज कम हो सके। अधिकतर खाना मैं इंडक्शन पर पकाती हूं। इंडक्शन में बिजली भी कम खपत होती है और खाना भी आसानी से पकता है। जबसे मैं इंडक्शन यूज कर रही हूं तबसे मेरा घरेलू गैस एक महीने तक चल रही है। इसी तरह कई लोगों ने तो घर पर आने वाले लोगों को चाय पूछना भी बंद कर दिया है। वे लोग पानी से काम चला रहे हैं।

14.2 किलो गैस का रेट

पहले घरेलू गैस का रेट-960

वर्तमान में रेट- 1012

कोट-

खाने के सामान के रेट तो पहले ही आसमान छू रहे थे। अब मंहगे सिलेंडर ने तनाव और बढ़ा दिया है। जब चूल्हा जलता है तब ऐसा लगता है कि खून जल रहा है।

प्रिया

पहले छोटी-छोटी बात पर चूल्हा जला लेती थी। अब इससे बचती हूं। कोशिश करती हूं एक बार खाना बन जाए तो इसके बाद चूल्हा ना जलाना पड़े। गैस के दाम में रियायत देनी चाहिए।

संजू

मैंने एक इंडेक्शन खरीदा है, साथ ही उसपर यूज होने वाले बर्तन भी ले लिए हैं। घरेलू गैस की कीमत अब घटने वाली नहीं है, बल्कि और बढ़ेंगे। इसलिए उसे बचाने का तरीका अपनाना पड़ रहा है।

शिखा कौशिक

दिन भर चाय नाश्ता में घरेलू गैस अधिक खर्च होती थी, इसलिए अब नाश्ता कम करके खाने पर अधिक ध्यान रहता है। इसके साथ ही चाय भी एक बार बनाकर थर्मस में रख लेती हूं।

प्रियंका

पहले घरेलू गैस केवल 15 दिनों में समाप्त हो जाती थी। इस समय कीमत आसमान छू रही है। इसलिए उसे बचाने का उपाय तो सोचना ही होगा। हम लोग भी जैसे तैसे गैस बचाने में लगे रहते हैं।

आरती