(अनुराग पाण्डेय)। गोरखपुर में आज भी मौजूद ब्रिटिशकाल की 1926 और उसके बाद 1978 और 1975 की साइकिल अवेलेबल हैं, जिनकी कहानी इन्हें रखने वाले शौकीन ही बयां कर रहे हैं।

सेंट पॉल्स में रखी है 1978 की साइकिल

चरगांवा स्थित सेंट पॉल्स स्कूल में आज भी साल 1978 की साइकिल डायरेक्टर गिरीश चंद्रा ने संभालकर रखी है। गिरीश चंद्रा ने बताया, मैं स्कूटर नहीं चला पाता था, किसी ने वाइफ से कह दिया था कि मैं दो पहिया वाहन चलाऊंगा तो मेरी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, इसके बाद मैंने ये साइकिल साल 1978 में खरीदी। मैंने लेडीज साइकिल खरीदी थी, जिसे वाइफ निर्मला चंद्रा भी चला सकें। उस समय चरगांवा में सेंट पॉल्स स्कूल का निर्माण भी चल रहा था। कई बार तो मुझे कोई स्कूल छोड़ देता था, कई बार मैं खुद साइकिल से स्कूल निकल जाता था। जब साइकिल घर पर रहती थी, तब वाइफ निर्मला चंद्रा खाना लेकर स्कूल आती थीं। इसके बाद दोनों लोग साइकिल से ही वापस बेतियाहाता स्थित घर जाते थे। इस साइकिल से इतनी यादें हैं कि इसको हमेशा संभालकर रखा। ये कह सकते हैं कि ये साइकिल मेरे संघर्षों की साथी रही है।

सड़क पर दौड़ती है ब्रिटिशकाल की साइकिल

बशारतपुर के यशवंत मेसी के पास साल 1926 ब्रिटिशकाल की साइकिल है। इस साइकिल में सामने कहीं भी ब्रेक नहीं है। इसकी खूबी ये है कि साइकिल चलाते समय उल्टी पैडल मारने पर इसका ब्रेक लगता है। यशवंत मेसी ने बताया कि मेरे पिता मोजेस मेसी को उनकी शादी में मदर इन लॉ यानी नानी ने गिफ्ट किया था। यशवंत ने बताया कि उनकी नानी ने इस साइकिल को 1926 में खरीदा था, जिसे साल 1946 में पिता को शादी में गिफ्ट कर दी थीं। इसके बाद पापा इस साइकिल को संभालकर रखते थे। यशवंत ने बताया कि पापा की एज सौ साल से अधिक हो गई थी, इसके बाद भी साइकिल की वो खुद ही देखभाल करते थे। उनके निधन के बाद से अब मैं उस साइकिल को संभालकर रखा हूं। जब मन करता है तो मार्केट आने-जाने के लिए यूज करता हूं।

500 में खरीदी थी साइकिल

शाहपुर एरिया निवासी 71 साल के डीड कुमार सिंह ने 1975 में 550 रुपए में साइकिल खरीदी थी। इस एज में भी वो अपनी साइकिल से ही चलते हैं। डीजल लॉबी गोरखपुर में पायलट रह चुके डीड कुमार सिंह की साइकिल का किस्सा भी बहुत मजेदार है। उन्होंने बताया कि उस समय बहुत से लोग रास्ते में लिफ्ट मांगकर आते-जाते थे। इसलिए मैंने लेडीज साइकिल खरीदी, जिससे मुझे किसी को लिफ्ट ना देना पड़े। उन्होंने बताया कि जब साइकिल खरीदी तब सबसे पहले नगर निगम जाकर उसका लाइसेंस बनवाया था। मेरी इस साइकिल के साथ ढेर सारी खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हैं। मैं फिटनेस के लिहाज से आज भी फिट रहने के लिए अपनी इस साइकिल से ही मार्केट आता-जाता हूं।