-हेल्थ और डीपीओ के ज्वाइंट कोऑर्डिनेशन में ऑर्गनाइज होगा प्रोग्राम

-संक्रमण, एनीमिया के साथ दूसरी बीमारियों से बचने के मिलेंगे टिप्स

GORAKHPUR: मंडल के चारों जिलों के 36 डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स ग्रुप (डीआरजी) मेंबर्स नवजात की सेहत को बेहतर रखने के लिए नुस्खे बताएंगे। उनकी सुरक्षा के लिए वह काम करेंगे। डीपीओ और स्वास्थ्य विभाग के कोऑर्डिनेशनमें गोरखपुर मंडल के इन सभी मेंबर्स को इंक्रीमेंटल लर्निंग एप्रोच प्रोग्राम के माड्यूल 17, 18 और 19 के बारे में ट्रेनिंग दी गई। राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत यह ट्रेनिंग दी गई, जिसमें चारों जिलों से जिला कार्यक्रम प्रबंधक या सीडीपीओ या स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी शामिल हुए।

नवजात में संक्रमण की संभ्ावना ज्यादा

जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह की देखरेख में इन मेंबर्स को स्टेट रिसोर्स ग्रुप (एसआरजी) मेंबर्स सीडीपीओ संजय कुमार, सीडीपीओ सीमा सिंह और महराजगंज जनपद के स्वस्थ भारत प्रेरक मोहम्मद आशिफ ने ट्रेनिंग दी है। डीआरजी मेंबर्स सीडीपीओ प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि माड्यूल 17 में उन्हें बताया गया है कि नवजात के संक्रमण की चपेट में आने की आशंका अधिक रहती है। वह जन्म के समय और जीवन के पहले माह में आसानी से संक्रमणों से ग्रसित हो सकते हैं। उन्हें केवल स्तनपान, शारीरिक गर्माहट और स्वच्छता सुनिश्चित कर सुरक्षा दी जा सकती है। कमजोर नवजात की देखभाल आशा कार्यकर्ता के परामर्श से घर पर ही की जा सकती है लेकिन बीमार नवजात को अस्पताल अवश्य ले जाना चाहिए।

आम बीमारी भी कर सकती है परेशान

उन्होंने बताया कि अगर शिशु स्तनपान न कर रहा हो, स्तनपान कम कर रहा हो, सुस्त हो और सामान्य गतिविधि न कर रहा हो, सांस तेज चल रही हो तो उसे ऐसे अस्पताल में ले जाना चाहिए जहां इंजेक्शन व ड्रिप से एंटीबायोटिक्स देने की सुविधा हो। सीडीपीओ ने बताया कि माड्यूल 18 के जरिए सिखाया गया कि आम बीमारी जैसे सर्दी, जुकाम, दस्त और निमोनिया भी शिशुओं को गंभीरता से प्रभावित करती है। बार-बार बीमार होने से बच्चा कुपोषित हो सकता है और गंभीर संक्रमण की चपेट में आ सकता है। समय से टीकाकरण, विटामिन ए की खुराक, स्वच्छ भोजन और स्वच्छ परिवेश देकर शिशु की सुरक्षा दी जा सकती है।

हीमोग्लोबीन के महत्व के बारे में मिली जानकारी

प्रतिभागी और उप जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी सुनीता पटेल ने बताया कि माड्यूल 19 के तहत हीमोग्लोबिन के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी। उन्होंने बताया कि 4-6 माह तक बच्चों में एनीमिया (हीमोग्लोबिन की कमी) नहीं रहती है लेकिन इस उम्र के बाद सही मात्रा में पूरक आहार न मिलने से आयरन की कमी हो जाती है। एनीमिया से शारीरिक व मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है और बच्चों के संक्रमण में आने का खतरा बढ़ जाता है। किशोरियों में एनीमिया की गंभीर समस्या पर चर्चा की गई। 6 माह से 5 साल तक के बच्चे को आईएफए की सिर्फ हफ्ते में दो बार, 5 से 10 साल के बच्चों को आयरन की गोली हफ्ते में 1 बार और किशोर-किशोरियों को प्रत्येक हफ्ते एक आयरन की गोली अवश्य देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि 12 माह से 19 साल तक के बच्चों को प्रत्येक छह माह में पेट में कीड़े मारने की गोली आशा, आंगनबाड़ी, एएनएम या प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सामने अवश्य लेनी चाहिए।