गोरखपुर (ब्यूरो)।बात करें अगर बिजनेस की या फिर प्रशासनिक सेवा की, हेल्थ सेक्टर हो या फिर वकालत, इन सभी फील्ड में महिलाएं अपनी पहचान बना रही हैं। घर को संभालते हुए नारी शक्ति ने काम को ही इष्ट माना। आधी आबादी के घर की दहलीज को लांघ कामकाज संभालने से उनके घरों के प्रोफेशन को एक नई शक्ति मिली। आज हम आपको गोरखपुर की कुछ ऐसी फीमेल्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी मेहनत के दम पर आने वाली पीढ़ी के लिए मिसाल बन चुकी हैं।

प्रशासनिक सेवा में निभा रहीं जिम्मेदारी

आगरा की मूल निवासी और 2020 बैच की आईएएस नेहा बंधू गोरखपुर में एसडीएम सदर हैं। उन्होंने बीटेक और एमटेक की पढ़ाई की है। उन्होंने बताया कि एमटेक के साथ ही मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। पहले अंटेम्ट में मुझे रेलवे इंडियन रेलवे के भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा में जॉब लगी। उसके बाद ट्रेनिंग कंप्लीट की। एक साल की एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी लीव लेकर मैंने यूपीएससी की प्रिपरेशन जारी रखी। मेरा 2020 बैच में आईएएस में सेलेक्शन हुआ। मेरी ऑल इंडिया रैंक 121 रैैंक थी। बचपन से ही मेरा सपना था कि मैैं प्रशासनिक सेवा में अपनी सेवाएं दूं। हम लोग दो बहन और एक छोटा भाई है। मेरे पापा बैैंक में मैनेजर हैैं। मम्मी सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल हैैं। मेरी बड़ी दीदी पीसीएस हैैं। मेरी सफलता के पीछे मेरे पेरेंट्स का सपोर्ट रहा है।

जिंदगी में चैलेंज होना जरूरी

गोरखपुर की एसी क्राइम, 2005 बैच की पीपीएस ऑफिसर इंदु प्रभा सिंह आज लड़कियों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। वह कहती हैं कि जिंदगी में अगर चैलेंज न हो तो जीने का मजा भी खत्म हो जाता है। आधी आबादी यानि महिलाएं तभी शक्तिशाली बनेंगी जब वे अपने अधिकारों के बारे में पूरी तरह से जानेंगी। उन्होंने मिशन शक्ति अभियान के तहत एक महिला शक्ति दल का गठन किया है। जो महिलाओं को अवेयर करते हैं। इंदु प्रभा सिंह के पति इंडियन आर्मी में ऑफिसर हैं। वह बताती हैं कि महिला होते हुए भी मुझे पुलिस महकमे में काम करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती। मैं और परिवार के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती हूं। पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को सेपरेट रखती हूं।

नौकरी छोड़कर बिजनेस को चुना

सिटी का रंगरेजा रेस्टोरेंट आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। इसकी ओनर सुप्रिया द्विवेदी ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनाई है और जो लड़कियां एंटरप्रन्योर बनने के ख्वाब देख रही हैं। उनके लिए एक मिसाल भी हैं। सुप्रिया ने बताया कि वह पहले एक बैंक में जॉब करती थीं। मगर शुरू से ही कुछ बड़ा करने का मन था। इसके बाद उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और अपने रेस्टोरेंट की शुरुआत कर दी। बिजनेस के साथ ही वह समाजसेवा में भी पीछे नहीं हैं। फूड के वेस्टेज को रोकने के लिए उन्होंने जनता फ्रिज की शुरुआत की। इसमें रखा खाना गरीबों में बांट दिया जाता है। इस मुहिम में उनके साथ अब सिटी के काफी लोग जुड़ गए हैं।

पढऩे और काम से रखनी होगी 'रुचिÓ

गोरखपुर में टैक्स एडवोकेट के रूप में काम कर रहीं रूचि श्रीवास्तव ने यह प्रूफ करके दिखाया है कि महिलाएं सेल्फ डिपेंडेंट कैसे बनें? उन्होंने 1996 में सेंट एंड्रयूज डिग्री कॉलेज से लॉ की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही उनकी शादी हो गई और बच्चे भी हो गए। उन्होंने लेबर लॉ में डिप्लोमा भी किया है। पढ़ाई के बाद घर संभालने की वजह से वह काम नहीं कर सकीं। मगर बच्चों को सेटल करने के बाद उन्होंने फिर से वकालत शुरू कर दी। इसमें उनके सीनियर जेके सिन्हा नें उनका साथ दिया। फिलहाल वे टैक्स एडवोकेट हैं। उन्होंने बताया कि लड़कियों को सेल्फ डिपेंडेंट बनना पड़ेगा। काम करने से आप बिजी भी रहेंगे और आपका पर्सनैलिटी डेवलपमेंट भी होगा।

सपने देखें और साकार करने में जुट जाएं

सीए नमिता गुप्ता ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई कार्मेल गल्र्स इंटर कॉलेज (मैथ बैकग्राउंड) से की है। उन्होंने बताया कि मैं इंजीनियर बनना चाहती थी और मैंने आईआईटी एंट्रेंस क्लियर भी किया था, लेकिन किसी कारणवश बाहर जाकर पढ़ाई नहीं कर पाई। मगर पढ़ाई के प्रति मेरे जुनून को देखते हुए मेरे भाई ने मुझे सीए करने के लिए प्रोत्साहित किया। फिर मैंने सीए 2006 ज्वॉइन किया। मैंने बिना कोचिंग किए ही सीए के आईपीसीसी और फाइनल दोनों एग्जाम 2011 में क्लियर किया। उन्होंने बताया कि सीए के माध्यम से उन्हें समाजसेवा का मौका मिला। वुमेन को सपने देखना चाहिए और उसे पूरे करने के लिए जी जान से लग जाना चाहिए।

डॉक्टर बन मरीजों का कर रहीं कायाकल्प

डॉक्टर बनकर महिलाओं के रोगों को इलाज के लिए तत्पर रहने वाली डॉ। पल्लवी श्रीवास्तव यूं तो नाम की मोहताज नहीं हैैं। लेकिन बचपन से ही उनका शौक था कि वह बड़े होकर डाक्टर बनें। उन्होंने कड़ी मेहनत कर अपने इस मुकाम को हासिल किया। डॉ। पल्लवी बताती हैैं कि उन्होंने 2015 में एमबीबीएस कंप्लीट किया। उसके बाद 2017 में इंटर्नशिप की। फिर ऑब्स एंड गायनी में उन्होंने आरएमओ की जिम्मेदारी निभाई। 2019 में उन्होंने मेडिकल ऑफिसर के रूप में अपनी ड्यूटी की। सरकारी अस्पताल बसंतपुर पीएचसी में जॉब करते हुए 2021 में उन्होंने डीजीओ कंप्लीट की। महिलाओं संबंधित बीमारियों के इलाज में बेहतर इलाज में स्टेट लेवल के कायाकल्प में इन्हें अवॉर्ड भी मिला।

काम की 'वंदनाÓ से खुली प्रगति की राह

कहते हैं हर सफल पुरुष के एक स्त्री होती है। कुछ ऐसी ही कहानी वंदना सराफ की है। यूं तो ऐश्प्रा जेम्स एंड ज्वेल्स का पौधा वयोवृद्ध बालकृष्ण सराफ ने रोपा था, लेकिन इसे वट वृक्ष बनाने का काम अतुल सराफ ने किया और इस नेक कार्य में हर कदम पर उनके साथ रहीं उनकी पत्नी वंदना सराफ। वह अपने विजन, क्रिएटिविटी और दूरदर्शी सोच के चलते ऐश्प्रा जेम्स एंड ज्वेल्स को दिन प्रतिदिन नए आयाम तक पहुंचा रही हैं। परिवार की जिम्मेदारियों के साथ वे बिजनेस में भरपूर सहयोग दे रही हैं। एचआर, ट्रेनिंग, नई ज्वेलरी डिजाइन, मैनेजमेंट, क्रिएटिव एडवरटाइजमेंट से लेकर सभी तरह के कार्य वह बारीकी से देखती हैं। इसी की देन है कि ऐश्प्रा ग्रुप कई नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड भी जीत चुका है। सोशल वर्क में सबसे आगे हर समय रहती हैं।