गोरखपुर (ब्यूरो)।पं। शरद चंद्र मिश्रा ने बताया कि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, वर्ष जनवरी से साल का पहला महीना प्रांरभ होता है, जनवरी माह से मकर की संक्रांति पड़ती है, जिसे धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति का सर्वाधिक महत्व इसलिए भी है कि इसी दिन से उत्तरायण का आरंभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो ये पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने लगते हैं। क्योंकि हमारा देश उत्तरी गोलार्ध में है। इसलिए सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। इस दौरान से सूर्य की रोशनी से फसलें पकती हैं।

कुंभ संक्रांति: यह संक्रांति 14 फरवरी को मनाई जाएगी। इस दिन कुंभ की संक्रांति प्रारंभ होगी। इस दिन का भी महत्व है। अग्रिम एक महिने का फलादेश इस संक्रांति से देखा जाता है। इस वर्ष अनुराधा नक्षत्र में संक्रांति का प्रवेश होने से सभी लोगों के लिए और देश के लिए यह संक्रांति शुभ रहेगी।

मीन संक्रांति: यह 15 मार्च को है। यह दिन में सुबह 8 बजकर 59 मिनट पर है। इस दिन से मीन की संक्रांति प्रारंभ होगी। इसी दिन से एक माह के लिए वैवाहिक कार्य स्थगित हो जाते हैं।

मेष संक्रांति: यह संक्रांति 14 अप्रैल को सायंकाल 5 बजकर 4 मिनट पर है। इसे सतुआ संक्रांति के नाम से जाना जाता है। प्राय: इस दिन पितरों के निमित्त दान पुण्य किया जाता है।

वृषभ संक्रांति: यह 15 मई को है। इस दिन 3 बजकर 27 मिनट पर सूर्य विगत राशि को छोड़कर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। वर्ष के भविष्य फलकथन इससे किया जाता है। इस दिन जल और फल आदि के दान का बड़ा महत्व है।

मिथुन संक्रांति: यह 15 जून को दिन में रात को 1 बजकर 15 मिनट पर आएगा। इस संक्रांति से पर्यावरण में पूर्ण वृद्धि होती है। इस दिन भी दान आदि क्रिया संपन्न की जाती है।

कर्क संक्रांति: 17 जुलाई से प्रारंभ होगी। दिन में यह सायंकाल 4 बजकर 32 मिनट पर शुरू हो रही है। इस दिन के बाद चतुर्मास प्रारंभ हो जाएगा। इस वर्ष श्रावण मास में अधिक मास रहेगा। इसलिए लगभग पांच महीने के लिए समस्त मांगलिक कार्य स्थगित रहेंगे। इस दिन भी पितरों के निमित्त दान पुण्य किया जाता है। दक्षिणायन इसी दिन से शुरू होता है। यह अयन की संक्रांति है।

सिंह संक्रांति: यह अधिक मास के दूसरे दिन 17 अगस्त को लगेगा। यह इस दिवस के रात्रि शेष में आएगा। इस दिन अन्न दान वस्त्र दान का महत्व है।

कन्या संक्रांति: यह 18 सितंबर को प्रात: काल 4 बजकर 55 मिनट पर आरंभ होगी। इस दिन से शर्त ऋतु का आरंभ माना जाता है। इस दिन भूमिदान, वस्त्र दान और अन्न दान का सर्वाधिक महत्व है।

तुला संक्रांति: यह 18 अक्टूबर को आरंभ हो रही है। इस दिन सूर्य का प्रवेश तुला राशि में दिन में 3 बजकर 52 मिनट पर हो रहा है। इस दिन सर्दी के निमित्त वस्तुएं जैसे ऊनी वस्त्र और अन्न का दान का विधान है।

वृश्चिक संक्रांति: यह 17 नवंबर को है। इस दिन संक्रांति दिन में 1 बजकर 23 मिनट पर आरंभ होगी। इस दिन के बाद वैवाहिक कार्य और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाएंगे। इस दिन दान का विधान है।

धनु संक्रांति: यह 16 दिसंबर को रात में एक बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ होगी। इस दिन से एक महीनेे के लिए मांगलिक कार्य स्थगित रहेंगे। इस दिन तिल सहित सुवर्ण दान का महत्व है।

क्या है संक्रांति

सूर्य जिस राशि पर स्थित रहता है। उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है। उस समय-काल को संक्रांति कहा जाता है। वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं। पंडित शरद चंद्र मिश्रा ने बताया कि ऐसी बारह संक्रांतियों में मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन में जब सूर्य की स्थिति होती है। उसे उत्तरायण कहते हैं और जब कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु में सूर्य की स्थिति होती है उसे दक्षिणायन कहते हैं। इसके अतिरिक्त मेष और तुला की संक्रांति को विषुवत वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ की संक्रांति विष्णुपदी और मिथुन, कन्या, धनु की संक्रांति को षडशीत्यानन संज्ञा होती है। इसमें सभी संक्रांति महत्वपूर्ण हैं, लेकिन दो संक्रांति ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वह है कर्क और मकर की। कर्क संक्रांति से दक्षिणायन और मकर संक्रांति से उत्तरायण का आरंभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त मेष और तुला की संक्रांति भी महत्वपूर्ण है।