गोरखपुर (ब्यूरो)। केस-1: गगहा से जिला अस्पताल में पिता को दिखाने आई सुप्रिया को डिजिटल एक्स-रे करवाना था, लेकिन डिजिटल एक्स-रे नहीं होने की वजह से उन्हें प्राइवेट पैथोलॉजी से डिजिटल एक्स-रे करवाना पड़ा। साथ ही उन्हें लिपिड प्रोफाइल की भी जांच करवानी थी, लेकिन इन सबमें उनके हजार रुपए खर्च हो गए। ऊपर से हजार रुपए की दवाएं भी खरीदनी पड़ी।

केस-2: खोराबार भैरोपुुर से आए सुदामा बताते हैैं कि उन्हें सिटी स्कैन करवाना था, लेकिन सिटी स्कैन के लिए पहले उन्हें काफी इंतजार करवाया गया। फिर डाक्टर द्वारा उन्हें बुधवार को बुलाया गया, लेकिन सिटी स्कैन नहीं होने से वह प्राइवेट हास्पिटल में पहुंचे। जहां उन्हें 2200 रुपए खर्च करने पड़े। दवा अलग से खरीदनी पड़ी।

यह दो केस बानगी भर हैं। दरअसल, गोरखपुर जिला अस्पताल की ओपीडी में आने वाले पेशेंट एक रुपए की पर्ची पर इलाज कराते हैैं, लेकिन दवा और जांच के लिए उन्हें हजारों रुपए चुकाने पड़ते हैं। वह भी तब जब हेल्थ डिपार्टमेंट के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा यह दावा किया जाता है कि जिला अस्पताल में सारी सुविधाएं मुकम्मल हैैं। बावजूद इसके हाथ या पैर के सर्जरी केसेज में हजारों रुपए खर्च करवाकर जहां बाहर से सामान मंगवाया जाता है। वहीं, पैथोलॉजिकल जांच, सिटी स्कैन, डिजिटल एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड आदि समेत अन्य जांच के लिए मशीन दगा देने पर जांच के लिए बाहर का रास्ता भी दिखा देते हैं। इन तमाम समस्याओं को लेकर जब दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने रियलिटी चेक किया तो सिस्टम की पोल खुल गई।

बाहर से करानी पड़ रही टीएमटी और इको जांच

मरीज व तीमारदारों की मानें तो सिर्फ जिला अस्पताल ही नहीं बल्कि अर्बन और रूरल पीएचसी पर भी बुरा हाल है। एक रुपए की पर्ची पर इलाज तो हो जाता है, लेकिन साठगांठ में शामिल डाक्टर व मेडिकल स्टाफ जांच के लिए प्राइवेट जांच केंद्रों पर भेजने से बाज नहीं आते हैैं। चाहे बाहर से ब्रांडेड कंपनी की दवा हो या फिर जांच, इसके लिए मरीजों को भेज दिया जाता है। जिला अस्पताल में सबसे अधिक दिक्कत हार्ट पेशेंट्स को हो रही है। हृदय रोग विभाग में 70 से 80 मरीज इलाज के लिए प्रतिदिन पहुंचते हैं। इनमें 25 से 30 मरीजों को टीएमटी और इको जांच करानी पड़ती है। यह जांच मजबूरी में मरीज बाहर से करा रहे हैं, क्योंकि यह दोनों मशीन एक साल से जिला अस्पताल में खराब पड़ी हैं। हृदय रोगियों को भी बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। हृदय रोग की दवाएं काफी महंगी हैं, जो अस्पताल से नहीं मिल रही हैं।

डेली आते हैैं 1800-2000 पेशेंट

जिला अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन करीब 1800-2000 पेशेंट इलाज के लिए पहुंचते हैं। इनमें 60 परसेंट मरीज रूरल एरिया से आते हैं। रजिस्ट्रेशन से लेकर डॉक्टर तक पहुंचने में मरीजों को घंटों लग जाते हैं। इसके बाद मरीजों के हाथ दो पर्चियां आती हैं। एक वह जो एक रुपए देकर रजिस्ट्रेशन विंडो से बनवाते हैं, दूसरी वह जिसमें डॉक्टर बाहर की दवाएं व जांच लिखते हैं। डॉक्टर सिर्फ जांच ही नहीं लिखते बल्कि दो-तीन दवाएं अस्पताल की लिखने के बाद एक छोटी सी पर्ची पर बाहर की कई दवाएं लिख देते हैं। मरीज भी जांच, और दवा के सिंडिकेट में उलझकर रह जाता है और जेब ढीली करने को मजबूर हो जाता है।

जन औषधि केंद्र की नहीं लिखते दवाएं

जिला अस्पताल कैंपस में जन औषधि केंद्र है। यहां दवाएं सस्ती हैैं। इसमें दवाओं का स्टाक भी ठीक है, लेकिन डॉक्टर जन औषधि केंद्र की दवाएं नहीं लिख रहे हैं। जबकि यह दवाएं जेनेरिक होने से बाजार से 70 से 80 गुना सस्ती होती हैं। बाजार में जिस एंटीबायोटिक की कीमत 200 रुपए के आसपास है। वही जन औषधि केंद्र पर 30 से 40 रुपए में मिल जाती है।

इन टेस्ट के लिए भेजते है बाहर

जांच - चार्ज (रुपए में)

- अल्ट्रासाउंड - 800-1000

- डिजिटल एक्स-रे - 200-400

- एक्स-रे - 200-300

- सिटी स्कैन - 2000-4000

- सीबीसी - 200-350

- लिपिड प्रोफाइल - 350-550

- थायराइड - 300-500

- शुगर - 50-100

वर्जन

जिला अस्पताल में कुछ जांच छोड़ लगभग सभी जांच फ्री ऑफ कास्ट हैं। जांच के लिए मरीजों को बाहर नहीं भेजा जाता है। अगर ऐसा हो रहा है तो इसकी जांच करवाई जाएगी। कुछ मशीनें खराब हैैं। उनकी मरम्मत कराई जाएगी। टेक्निशियन को बोल दिया गया है।

डॉ। जेएसपी सिंह, एसआईसी, जिला अस्पताल