- साइकोलॉजिस्ट्स का मानना कि एग्जाम फोबिया पेरेंट्स की ही देन

- बच्चों पर प्रेशर बनाना छोड़ दें तो बेहतर होगा रिजल्ट

GORAKHPUR: फलां का लड़का नाइंथ में इतना मा‌र्क्स लाया था और तुम सिर्फ इतना परसेंट ही ला सके। अगर ऐसा ही रहा तो बोर्ड एग्जाम में क्या करोगे? सोसाइटी में मेरी क्या इज्जत रह जाएगी? आम तौर पर सभी पेरेंट्स की सोच और उनका बिहेवियर ऐसा ही होता है। सोसाइटी में अपनी इज्जत को बरकरार रखने के लिए वह बच्चों पर इस कदर प्रेशर बिल्डअप कर देते हैं कि स्टूडेंट्स न चाहते हुए भी एग्जाम के टेरर का शिकार हो जाते हैं। एग्जाम में पेरेंट्स के लिए कुछ खास कर गुजरने की चाहत में बच्चों पर इतना प्रेशर हो जाता है कि बच्चे की परफॉर्मेस बेहतर होने के बजाए खराब हो जाती है। इसलिए एग्जाम के दौरान पेरेंट्स को चाहिए कि वह अपने बच्चों पर बिल्कुल प्रेशर न डालें और बजाए डांटने फटकारने के इसका कॉन्फिडेंस बढ़ाएं।

बच्चों पर थोप देते हैं अपना प्रेशर

पेरेंट्स आजकल बच्चों की परफॉर्मेस के बेसिस पर खुद का स्टेटस चमकाने में लगे हैं। साइकोलॉजिस्ट्स की मानें तो पेरेंट्स आसपास के समाज को देखकर खुद को स्टेटस बनाने लगते हैं। इसमें जब उनका बच्चा बेहतर परफॉर्म करता है तो उनका कद बढ़ता है, वहीं खराब परफॉर्मेस पर वह खुद को अपमानित महसूस करते हैं। बच्चे बेहतर परफॉर्म करते रहे, इसका डर असर मायने में पेरेंट्स पर होता है। पेरेंट्स के अंदर प्रेशर होता है, वह अपने बिहेवियर के जरिए इसे अपने बच्चों में ट्रांसफॉर्म कर देता है। इससे बच्चों पर प्रेशर बिल्डअप हो जाता है और वह परफॉर्म करने बोझ तले दबकर तमाम कोशिशों में लग जाते हैं। उनका टारगेट पास होना नहीं बल्कि पेरेंट्स की विश को पूरा करना होता है, जिससे कई बार उनकी तैयारियां अफेक्ट करती हैं।

लास्ट टाइम एक्टिव होते हैं पेरेंट्स

एग्जाम का टेरर पेरेंट्स को एग्जाम के कुछ वक्त पहले ही होता है। सारा साल बच्चा क्या कर रहा है? उसकी क्या तैयारी है? उसने कितनी पढ़ाई की? क्वार्टरली एग्जाम में उसकी क्या परफॉर्मेस थी, यह सब जानने के बजाए वह पूरा साल बच्चों से कुछ नहीं पूछते। मगर जब फाइनल एग्जाम सिर पर होते हैं, तो उन्हें बच्चों की याद आती है। इस दौरान वह बच्चों पर इस कदर पढ़ाई का प्रेशर डाल देते हैं कि बच्चों की तैयारी भी ठीक से नहीं हो पाती। वहीं इसमें से कुछ पेरेंट्स ऐसे होते हैं, जो वर्किंग होते हैं। इनके पास इतना वक्त ही नहीं होता है कि वह बच्चों पर ध्यान दे सके। ऐसी कंडीशन में भी बच्चों की परफॉर्मेस पर असर पड़ता है।

वर्जन

बच्चों पर एग्जाम का कोई प्रेशर नहीं होता है। यह प्रेशर पेरेंट्स के अंदर होता है, बस वह अपने बिहेवियर से इसे बच्चों में ट्रांसफॉर्म कर देते हैं। इसके बाद बच्चों पर प्रेशर ऑफ गुड परफॉर्मेस फॉर पेरेंट्स आ जाता है, जिससे कई बार उनका रिजल्ट खराब हो सकता है। पेरेंट्स को चाहिए कि एग्जाम के समय बच्चों पर किसी तरह का दबाव न डालें। वह जैसे पढ़ाई कर रहा है उसे करने दें। बस सोच को पॉजिटिव रखें, इससे उसका मनोबल बढ़ेगा और वह अच्छा परफॉर्म करेगा।

- डॉ। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

पेरेंट्स अपने बच्चों पर ठीक एग्जाम से पहले ध्यान देते हैं। इसकी वजह से उनकी परफॉर्मेस खराब होती है। अगर वह शुरू से ही रोजाना सिर्फ एक घंटे ही वक्त दें, तो उन्हें इसका असर दिखने लगेगा। इसके बाद का काम टीचर्स को है, वह एक कुम्हार की तरह होता है। वह उसे जिस तरह से ढालेगा, बच्चा वैसा ही बनेगा।

- डॉ। अमित गोयल, डायरेक्टर, गोयल क्लासेज

बच्चों को पढ़ने से पहले अपना टाइम टेबल सेट कर लेना चाहिए। इससे उनके सभी कोर्सेज का आसानी से रीविजन भी हो जाएगा, वहीं एक साथ सभी सब्जेक्ट भी तैयार होते रहेंगे। जो सब्जेक्ट्स तैयार हो, उस पर थोड़ा कम वक्त दें, जिसमें उन्हें लगता है कि कमजोर हैं, उसपर वक्त ज्यादा दें, इसका उन्हें जरूर फायदा मिलेगा। पेरेंट्स भी बच्चों पर प्रेशर डालने के बजाए, उनका मोराल बूस्टअप करें, जिससे वह बेहतर परफॉर्म करें।

- शाहनवाज अहमद, साइंस टीचर

मेरे पेरेंट्स पढ़ने-लिखने को लेकर ज्यादा प्रेशर नहीं बनाते है और मुझसे यह उम्मीद रखते हैं कि मैं अच्छा परफॉर्म करूंगी। मैं अपने पेरेंट्स के इस कॉन्फिडेंस पर खरी उतरती भी हूं। सभी पेरेंट्स को चाहिए कि पढ़ाई में बच्चों का जितना दिल लग रहा है, उतने ही देर पढ़ने दें। फोर्सफुली पढ़ाने पर बच्चा पढ़ने तो बैठ जाएगा, लेकिन उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। इससे 10 घंटे से ज्यादा पढ़ने पर भी कोई फायदा नहीं हो पाएगा।

- निकहत तौफीक, स्टूडेंट

टिप्स फॉर बेस्ट परफॉर्मेस

- बच्चों को 7-8 घंटे की भरपूर नींद लेने दें।

- अपनी ख्वाहिश को बच्चों पर मत थोपें, बल्कि उसका जिसमें इंटरेस्ट है उस पर ध्यान दें।

- ज्यादा पढ़ने के बजाए कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि थोड़ा पढ़ाई करें लेकिन पढ़ाई पर क्वालिटी टाइम स्पेंड करें।

- तैयारी से पहले सभी पेपर को शेड्यूल कर लें और टाइम टेबल के अकॉर्डिग ही पढ़ाई करें।

- एक सिटिंग में 30 से 40 मिनट बाद 10-15 मिनट का ब्रेक जरूर लें। लगातार कई घंटे बैठने पर गलतियां होने के चांस काफी ज्यादा होते हैं।

- पढ़ने के दौरान टॉपिक बदल-बदल कर पढ़ाई करें।

- बच्चों के माइड में निगेटिव थॉट्स न फीड करें, उन्हें बूस्टअप करें कि वह बेहतर कर सकता है।

- थॉट्स और बिहेवियर में कोई चेंज न करें।

- बच्चों को रोजाना एक घंटे ही वक्त दें, लेकिन जरूर दें।