गोरखपुर (ब्यूरो)।यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए 2021 में विज्ञापन जारी हुआ था। लेकिन समय से भर्ती प्रक्रिया शुरू किए जाने के बजाय वीसी प्रो। राजेश सिंह के कार्यकाल के अंतिम महीनों में अब जून 2023 में इंटरव्यू कराए जा रहे हैं। इसे लेकर कई सवाल सोशल मीडिया से लेकर कैंपस में खड़े किए जा रहे हैं। हिंदी डिपार्टमेंट के प्रो। कमलेश गुप्त ने इस मामले की शिकायत राजभवन में की है।

नए वीसी के लिए विज्ञापन जारी

वीसी प्रो। राजेश सिंह का कार्यकाल 4 सितंबर 2023 को खत्म हो रहा है। नए वीसी की नियुक्ति को लेकर राजभवन से विज्ञापन जारी हो गया है। ऐसे में आरोप लगाए जा रहे हैं कि इस वक्त टीचर्स की नियुक्ति करना कुलपति के पद की शक्तियों का दुरुपयोग है।

प्रोफेसर ने उठाए सवाल

टीचर्स की नियुक्ति को लेकर हिंदी डिपार्टमेंट के प्रो। कमलेश गुप्त ने सोशल मीडिया पोस्ट पर आरोप लगाते हुए लिखा 'विश्वविद्यालय के अगले कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया को विलंबित करते हुए कुलपति पद का विज्ञापन होने के बाद भी प्रो। राजेश सिंह द्वारा शिक्षक पदों पर चयन की प्रक्रिया जारी रखने की कोशिश कुलपति पद में निहित शक्तियों का घोर दुरुपयोग है.Ó

नए वीसी की नियुक्ति में देरी का प्रयास

प्रो। गुप्त ने लिखा कि 'उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति के चयन के लिए अधिनियम में तीन व्यक्तियों की समिति गठित किए जाने का प्रावधान है, जो कुलाधिपति के समक्ष कुलपति पद के योग्य 3 से लेकर 5 व्यक्तियों का नाम दाखिल करती है। उक्त समिति में से एक व्यक्ति संबंधित विश्वविद्यालय के कार्य परिषद द्वारा निर्वाचित होता है। अधिनियम की धारा 12(2)(क) के अनुसार कार्य परिषद के प्रतिनिधि के निर्वाचन की प्रक्रिया कुलपति के कार्यकाल पूर्ण होने के कम-से-कम तीन माह पूर्व पूरी हो जानी चाहिए थी, जो नहीं हो सकी। यह न केवल प्रो। राजेश सिंह द्वारा अधिनियम की व्यवस्था का सरासर उल्लंघन है। ऐसा करके उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय के अगले कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया को विलंबित करने की योजनाबद्ध कोशिश की है.Ó

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दिया जवाब

यूनिवर्सिटी के मीडिया एवं जनसंपर्क कार्यालय की ओर से बताया गया कि 'दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया 2021 से चल रही है। यह एक रूटीन प्रक्रिया है। प्रो। कमलेश गुप्त को विश्वविद्यालय के खिलाफ बार-बार बयान देने तथा उसकी गरिमा को धूमिल करने के लिए निलंबित किया गया है एवं उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा रही है। उनके बयान को आधार बना कर खबर प्रकाशित करना पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ है। उनके सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए बयान को आधार बना कर खबर प्रकाशित करने पर विश्वविद्यालय विधिसम्मत कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र एवं तैयार है।