गोरखपुर (अनुराग पांडेय)।साइकोलॉजिस्ट की मानें तो यूथ इसको पार्ट टाइम बिजनेस के रूप में भी देख रहा है। पैसे कमाने के लिए रील बनाने के चक्कर में उसका रियल कॅरियर खत्म होता जा रहा है।

केस- 1

मम्मी के मोबाइल से बच्ची हो गई बीमार

गोरखनाथ एरिया में 8 साल की बच्ची मम्मी के मोबाइल की वजह से बीमार हो गई। बच्चे को स्वस्थ्य करने के लिए पेरेंट्स को साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी पड़ी। स्टडी में मालूम हुआ मम्मी के मोबाइल पर इंस्टाग्राम में बच्ची रील्स बनाना सीख गई। इसके बाद वो डेली रील्स बनाने लगी। स्कूल में जाकर भी वो दोस्तों से रील्स के बारे में ही बात करती थी। घर आकर वो बच्ची रील्स पर आए लाइक कमेंट गिनना शुरू कर देती थी। कम लाइक कमेंट आने की वजह से वो बच्ची खाना-पीना तक छोड़ दी थी। अगर मोबाइल नहीं मिलता तो वो रोने चिल्लाने लगती थी। इसके बाद परिवार वालों ने लगातार उसकी काउंसिलिंग कराई तब जाकर वो मोबाइल छोड़ पाई है।

केस 2

रील्स के चक्कर में तुड़वाया हाथ पैर

शाहपुर एरिया में 11वीं में पढऩे वाले एक स्टूडेंट को रील्स का ऐसा चस्का लगा कि वो बाइक लेकर स्टंट करने लगा। इकलौता बेटा होने की वजह से उसकी पसंदीदा रेसर बाइक पेरेंट्स ने कम ही एज मेें दिला दी। स्टंट करने के चक्कर में वो डेली गाड़ी तोड़ फोड़कर लाता था। उसे घर वाले बनवाते थे। एक दिन स्टंट के चक्कर में उसका एक्सीडेंट हुआ और उसके पैर टूट गए। डॉक्टर ने उसके पैरों का ऑपरेशन करके राड डाला। पेरेंट्स को उनके बेटे के दोस्तों ने बताया कि रील्स बनाने के चक्कर में उसका एक्सीडेंट हुआ है। एक्सीडेंट के बाद भी जब उसकी आदत में सुधार नहीं आया तो पेरेंट्स साइकोलॉजिस्ट के पास पहुंचे।

ये दो केस सिर्फ एग्जामपल भर हैं। साइकोलॉजिस्ट की मानें तो ये रील स्लो प्वाइजन है। खास तौर से ये बच्चों के दिमाग पर जंक फूड की तरह गलत असर डाल रहा है। इससे जल्द छुटकारा नहीं पाया गया तो नई जेनरेशन को ये बीमारी बर्बाद कर देगी।

स्कूलों में भी बच्चे रील्स की बाते करते हैं

स्कूलों में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में भी ये बात सामने आई है। टीचर ने पेरेंट्स को बता रहे हैं कि स्कूल में आपका बच्चा हमेशा रील्स और उसके लाइक, कमेंट और व्यू के बारे में बात करता है। ये अधिकतर स्कूलों के टीचर्स की शिकायत रहती है। टीचर कहते हैं कि पहले बच्चे क्रिकेट या फिल्मों के बारे में बात करते थे। अब वो केवल अपने रील्स पर ही चर्चा करते दिखते हैं। इससे उनकी मेमोरी भी कमजोर हो रही है।

डिप्रेशन के शिकार

साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि वीडियो बनाने और देखने वाले डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं। ऐसा इसलिए है कि ये लोग वीडियो देखकर उसकी नकल करना चाहते हैं। बच्चे या वयस्क दोनों ही चाहते हैं कि वे अपने वीडियो में अच्छी एक्टिंग करें। जब लाइक, कमेंट और व्यू कम मिलते हैं तो वे निराश होते हैं। उन्हें लोगों के प्रति गुस्सा भी आता है। धीरे-धीरे वे डिप्रेशन में चले जाते हैं।

क्या है रील्स?

ऐसे वीडियो जो 30 सेकेंड तक के होते हैं। उसे रील्स में अपलोड किया जाता है। कुछ वीडियो 2 मिनट तक के भी होते हैं। टिकटॉक के बाद अब रील्स का चस्का लोगों पर हावी हो गया है। इसे मनोरंजन के लिए तैयार करते हैं। ऐसे वीडियो बड़ी-बड़ी सेलिब्रिटी से लगाए आम आदमी भी बनाता है। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर वीडियो अपलोड किया जाता है, उसे रील्स कहते हैं। रील्स पर अच्छे व्यू मिलने पर अब पैसे भी मिलते हैं।

कुछ सवाल जो बता देगा कि आपको लत लगी है

1. क्या आप रील्स बनाने देखने में एक घंटा समय देते हैं।

2. खेलने-कूदने या लोगों से मिलने से से अधिक मजा रील्स देखने में आता है।

3. किसी दिन रील्स ना देखें तो आपको बेचैनी होती है।

4. बीमार होने पर या जब भी घर में समय मिलता है तो आप रील देखने लगते हैं।

5. देर रात तक जगकर आप मनोरंजन के लिए रील देखते हैं।

इस तरह पाएं छुटकारा -

- परिवार और दोस्तों के साथ अधिक बात करें।

- आउटडोर गेम में बच्चों के साथ खुद को भी इनवॉल्व करें।

- पेरेंट्स घर पर मोबाइल रख दें, बच्चों के साथ बात करें या फिर कोई खेल खेलें।

- पेरेंट्स अपने मोबाइल से फालतू एप को हटा दें।

- बच्चों को कहानियां सुनाएं।

रील्स में अच्छे बुरे दोनों कंटेंट होते हैं। शुरू में पता नहीं चलता है लेकिन धीरे-धीरे वे कंटेंट आप पर हावी होने लगते हैं। बच्चे इसे देखकर अनुशासनहीनता कर रहे हैं। ये जंक फूड की तरह बच्चों पर बुरा असर डालते हैं।

सीमा श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट

माइंड सेट हो चुका है, जरा भी काम से अलग हो रहे हैं, लोग रील्स देखने लग रहे हैं। हम एडिक्ट हो गए हैं। खास तौर से यूथ कुछ भी गलत करने में संकोच नहीं कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि वे इससे पापुलर हो रहे हैं।

श्वेता जॉनसन, साइकोलॉजिस्ट

एक समय लोग टिक-टॉक के पीछे लोग भाग रहे थे। अब उसकी जगह रील्स ने ली है। जो बच्चे क्रिकेट और फिल्मों की बातें करते थे वे अब लाइक, कमेंट और व्यू की चर्चा कर रहे हैं। इससे निकलना होगा।

अजय शाही, डायरेक्टर, आरपीएम एकेडमी

कई स्कूलों में आई कैंप लगाए गए थे। जिसमे बड़ी संख्या में बच्चे मायोपिक निकले। इसका सबसे बड़ा कारण घंटो शॉर्ट वीडियो और रील्स को देखना था। समस्या ये भी है कि यहां स्क्रीनिंग नहीं है, बच्चे क्या देख रहे हैं पता ही नहीं।

अमरीश चंद्रा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, सेंट पॉल्स स्कूल